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Friday, 20 December, 2024
होमदेशअर्थजगतRSS से जुड़ी ट्रेड यूनियन की बजट में मांग — IT छूट को 10 लाख रुपये करें, योजनाओं को कानूनी दर्जा दें

RSS से जुड़ी ट्रेड यूनियन की बजट में मांग — IT छूट को 10 लाख रुपये करें, योजनाओं को कानूनी दर्जा दें

भारतीय मजदूर संघ ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट पूर्व चर्चा के दौरान शहरी मनरेगा और एक महामारी बेरोजगारी भत्ते के लिए भी कहा.

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नई दिल्ली: आरएसएस से जुड़ी ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने मोदी सरकार से आयुष्मान भारत, अटल पेंशन योजना और पीएम-किसान सम्मान निधि योजना जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं को एक कानूनी स्वरूप देने का आग्रह किया है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट पूर्व चर्चा के दौरान ट्रेड यूनियन ने बेरोजगारी मिटाने से जुड़ी ग्रामीण योजना की तर्ज पर शहरी मनरेगा शुरू करने की मांग के साथ आयकर छूट की सीमा को बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने को भी कहा. आरएसएस से जुड़ा यह संगठन चाहता है कि उसकी सभी मांगें 2021 के बजट में शामिल की जाएं.

बीएमएस के राष्ट्रीय महासचिव गिरिजेश उपाध्याय ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये अहम सरकारी योजनाएं केवल योजनाएं हैं. उनके लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और ये प्रशासन की दया पर निर्भर हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम दीर्घकालिक समाधान चाहते हैं न कि थोड़े समय के लिए कोई दखल. आयुष्मान भारत (जो मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती है) एक अच्छी योजना है लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि यह लंबे समय तक जारी रहेगी? कोई भी वित्त मंत्री इसे बदल सकता है. अटल पेंशन योजना, किसान सम्मान निधि और इसी तरह की अन्य योजनाओं में भी यही स्थिति है. हमारी मांग है कि सरकार को ये योजना लगातार जारी रहने की व्यवस्था करने के लिए एक कानून बनाना चाहिए.

बीएमएस के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘जब यूपीए सरकार ने मनरेगा लागू किया तो योजना को विधायी रूप देने के लिए एक बिल लाया गया. अब कोई भी कार्यकारी आदेश के जरिये मनरेगा को बदल या खत्म नहीं कर सकता है. इसलिए सरकार को सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपनी योजनाओं को वैध बनाना चाहिए. सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं को कानूनी दर्जा देने में क्या कठिनाई है?’

ये सभी सुझाव बजट पूर्व परामर्श के दौरान रखे गए जो वित्त मंत्री ने सप्ताहांत में बीएमएस के साथ किया था.

आयकर छूट सीमा बढ़ाने और सरकारी योजनाओं को कानूनी ढांचा प्रदान करने के अलावा बीएमएस ने आगामी बजट में एक महामारी बेरोजगारी भत्ता, लाभ में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) में विनिवेश पर परामर्श और असंगठित क्षेत्र के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर बजट आवंटन बढ़ाने की मांग भी की है.


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शहरी मनरेगा

सीतारमण के साथ बातचीत के दौरान बीएमएस ने मांग की कि सरकार शहरी मनरेगा शुरू करे क्योंकि कोविड-19 संकट ने यह उजागर किया है कि शहरों में प्रवासी कामगारों को किस तरह असमानता झेलनी पड़ती है.

उपाध्याय ने कहा, ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना कोविड के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में समय पर अमल के लिहाज से एक अच्छी योजना थी, लेकिन संकट केवल ग्रामीण क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है. शहरी क्षेत्र पर अधिक मार पड़ी है. कंपनियां बंद हो गई हैं और एक के बाद एक सेक्टर की हालत खराब हो रही है. इसलिए हम चाहते हैं कि वित्त मंत्री अगले बजट में प्रवासियों और ऐसे ही अन्य कर्मचारियों के लिए शहरी मनरेगा की घोषणा करें.’

आरएसएस से जुड़ा श्रमिक संगठन यह भी चाहता है कि मोदी सरकार निर्माण, सिनेमा, यात्रा, हथकरघा, आतिथ्य और ऑटोमोबाइल जैसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों के अनौपचारिक श्रमिकों के लिए एक महामारी बेरोजगारी भत्ते की घोषणा करे.

एक अन्य बीएमएस अधिकारी ने कहा कि इन क्षेत्रों की स्थिति सुधरने के बाद भत्ता बंद किया जा सकता है.

अनुबंध नौकरियों पर कानून

बीएमएस ने अनुबंध वाली नौकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए या तो एक नया कानून लाने या मौजूदा कानून में ही संशोधन करने की मांग की है.

एक अन्य बीएमएस पदाधिकारी ने कहा, ‘हर क्षेत्र में लगभग 80 प्रतिशत नौकरियां संविदा पर होती हैं और उन्हें अच्छी तरह से परिभाषित भी नहीं किया गया है. इन नौकरियों में सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है और ऐसे कर्मचारी नियोक्ताओं की दया पर निर्भर होते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘नोटिस और वित्तीय लाभ दिए बिना नौकरी से हटा देने में ज्यादा स्पष्टता नहीं हैं. नियमित और संविदा कर्मचारियों के बीच बहुत अधिक विसंगति है. हम सरकार और निजी क्षेत्र में अनुबंध के तहत नौकरियों को नियमित करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित अनुबंध नौकरी नीति की मांग करते हैं.’

पदाधिकारी ने कहा कि संगठन चाहता है कि ग्रेच्युटी की अवधि पांच साल से बदलकर एक वर्ष की जाए क्योंकि अधिकांश नौकरियां अस्थायी हो रही हैं.

अपनी अन्य मांगों में संगठन चाहता है कि सरकार लाभकारी सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश पर परामर्श करे और आगामी बजट में असंगठित क्षेत्र की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर एक बड़ा बजट आउटले रखा जाए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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