नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) सूचीबद्ध कंपनियों का रॉयल्टी भुगतान एक दशक में दोगुना से अधिक हो गया है। वित्त वर्ष 2022-23 में 233 कंपनियों ने रॉयल्टी के रूप में 10,779 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो वित्त वर्ष 2013-14 में 4,955 करोड़ रुपये था। बाजार नियामक सेबी के एक अध्ययन में यह कहा गया है।
अध्ययन में पाया गया कि सूचीबद्ध कंपनियों में से चार में से एक मामले में अपने संबंधित पक्षों को शुद्ध लाभ के 20 प्रतिशत से अधिक रॉयल्टी का भुगतान किया।
इसके अलावा, दो में से एक बार, रॉयल्टी का भुगतान करने वाली सूचीबद्ध कंपनियों ने लाभांश का भुगतान नहीं किया या शेयरधारकों को भुगतान किए गए लाभांश की तुलना में संबंधित पक्षों को अधिक रॉयल्टी का भुगतान किया।
यह अध्ययन देश के सभी क्षेत्रों में 233 सूचीबद्ध कंपनियों के संबंध में वार्षिक रिपोर्ट, कंपनी-स्तरीय जानकारी पर आधारित है। इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2013-14 से वित्त वर्ष 2022-23 तक 10 साल की अवधि के दौरान अपने संबंधित पक्षों को रॉयल्टी भुगतान किया है, वह कारोबार का पांच प्रतिशत से भी कम है।
आमतौर पर किसी कंपनी द्वारा रॉयल्टी भुगतान प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों या किसी अन्य कंपनी के साथ किये गये सहयोग अथवा अन्य कंपनी के ट्रेडमार्क/ब्रांड नाम के उपयोग के लिए किया जाता है।
भारत के संदर्भ में, सूचीबद्ध कंपनियां अपनी होल्डिंग कंपनियों या होल्डिंग कंपनी से जुड़ी अनुषंगी कंपनियों को ब्रांड के उपयोग, प्रौद्योगिकी जानकारी के हस्तांतरण आदि के लिए रॉयल्टी भुगतान करती हैं।
अध्ययन के अनुसार, 2013-14 से 2022-23 के दौरान, 233 सूचीबद्ध कंपनियों ने कंपनी के कारोबार का पांच प्रतिशत के भीतर रॉयल्टी भुगतान किया। ऐसे मामलों की संख्या 1,538 थी।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने अपने अध्ययन में संबंधित पक्षों को किये गये रॉयल्टी भुगतान के संबंध में कंपनियों के स्तर पर खुलासे की कमी के साथ-साथ खुलासे को लेकर एकरूपता के अभाव को लेकर चिंता जताई है।
सेबी ने कहा, ‘‘सूचीबद्ध कंपनियां अपनी वार्षिक रिपोर्ट में रॉयल्टी भुगतान के औचित्य और दर के संबंध में उचित खुलासे नहीं कर रही हैं। इसके अलावा, कंपनियां यह खुलासा भी नहीं कर रही हैं कि रॉयल्टी का भुगतान ब्रांड के उपयोग के लिए दिया जा रहा है या फिर प्रौद्योगिकी जानकारी के लिए।’’
भाषा रमण अजय
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