(अभिषेक सोनकर)
कोलकाता, 25 जनवरी (भाषा) केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने बृहस्पतिवार को संसाधनों के अधिकतम उपयोग वाली चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए धातुओं के पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) को अहम बताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया सीमित संख्या में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ घटाती है।
कोयला और खान मंत्री जोशी ने यहां आयोजित 11वें अंतरराष्ट्रीय सामग्री पुनर्चक्रण सम्मेलन (आईएमआरसी) को संबोधित करते हुए कहा कि खनिजों के भंडार सीमित हैं और इस्पात एवं एल्युमीनियम जैसी धातुओं के पुनर्चक्रण से इन सामग्रियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ कम हो जाता है।
उन्होंने अपने वीडियो संबोधन में कहा कि पुनर्चक्रण टिकाऊ होने की वजह से महत्वपूर्ण है। यह धातु प्रसंस्करण में ऊर्जा की खपत को कम करके उपलब्ध संसाधनों की खपत में अहम भूमिका निभाता है।
जोशी ने कहा, ‘‘सरकार भारत को चक्रीय अर्थव्यवस्था का केंद्र बनाना चाहती है। हालांकि, इसके साथ खनन भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह क्षेत्र देश में करोड़ों लोगों को आजीविका मुहैया कराता है।’’
उन्होंने कहा कि रिसाइक्लिंग प्रक्रिया से धातुओं के कबाड़ को कूड़ाघर से हटाने में मदद मिलती है, कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करने में मदद करती है और ऊर्जा की खपत भी कम होती है।
इस अवसर पर नीति आयोग के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत ने रिसाइक्लिंग को ‘एक सामाजिक-आर्थिक अवसर’ बताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया रोजगार सृजन का भी एक अवसर है।
कांत ने कहा, ‘‘हम सभी को धरती का ध्यान रखना चाहिए। यह भारत के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था की प्रासंगिकता बढ़ाता है। यह एक लाख करोड़ डॉलर का कारोबार है और हर किसी को भारत को वैश्विक अगुवा बनाने के लिए अपने क्षेत्र में चैंपियन होना चाहिए।’’
सम्मेलन की आयोजक संस्था ‘मैटेरियल रिसाइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (एमआरएआई) के अध्यक्ष संजय मेहता ने कहा कि भारत के कुल इस्पात उत्पादन में कबाड़ का योगदान 30-35 प्रतिशत है। इसी तरह कई लौह एवं अलौह धातुओं के उत्पादन में भी कबाड़ से मदद मिलती है।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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