scorecardresearch
Sunday, 28 April, 2024
होमदेशअर्थजगतRBI विकास को लेकर कम चिंतित है, लेकिन खाद्य और तेल की कीमतों की बढ़ने की संभावना

RBI विकास को लेकर कम चिंतित है, लेकिन खाद्य और तेल की कीमतों की बढ़ने की संभावना

RBI ने पॉलिसी रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा है. आरबीआई विकास को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के टारगेट के हिसाब से रखने के लिए बाज़ार में रुपये के प्रवाह को कम करना चाह रही है.

Text Size:

जैसी कि उम्मीद थी, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) यानी एमपीसी ने पॉलिसी रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है. रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण देता है.

आरबीआई विकास को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के टारगेट के हिसाब से रखने के लिए बाज़ार में रुपये के प्रवाह को कम करना चाह रही है.

वर्षा के असमान वितरण के कारण सब्जियों की कीमतों में बढ़ोत्तरी, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में फिर से बढ़त और वैश्विक खाद्य कीमतों पर हाल ही में बढ़ते दबाव के कारण चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति अनुमान 5.1 प्रतिशत से बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया है.

दूसरी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को 100 आधार अंकों से संशोधित किया गया है. अनुमानों में सामान्य मानसून का अनुमान लगाया गया है और सामान्य से कम मानसून की स्थिति में बदलाव हो सकता है.

मुद्रास्फीति के पूर्वानुमानों में पहले की तुलना में अधिक मुद्रास्फीति का अनुमान बताता है कि पॉलिसी रेपो रेट लंबे समय तक ऊंची रहेगी और ब्याज दर में कटौती की उम्मीद अगले वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में ही की जा सकती है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

विकास के मामले में, आरबीआई कम चिंतित लग रहा था, क्योंकि अधिकांश हाई-फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स लचीली आर्थिक गतिविधि की तस्वीर पेश करते हैं. आरबीआई ने तिमाही अनुमानों में कोई बदलाव किए बिना चालू वित्त वर्ष के लिए अपने विकास अनुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है.

मुद्रास्फीति के फिर से बढ़ने का ताज़ा खतरा

जून में एमपीसी की बैठक के बाद से, खाद्य मुद्रास्फीति पर लघु-अवधि का अनुमान और अधिक खराब हो गया है. खाद्य पदार्थों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. कीमतों में बढ़ोत्तरी सिर्फ टमाटर तक ही सीमित नहीं है; अन्य सब्जियों, गेहूं, चावल, दालों, मसालों और अब वनस्पति तेलों की कीमतों में हाल के सप्ताहों में वृद्धि देखी गई है.

वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल देखा गया है. कुछ वस्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य का संकेत देने वाला एफएओ खाद्य मुद्रास्फीति में जुलाई में फिर से उछाल देखा गया.

यह उछाल वनस्पति तेलों की कीमतों में वृद्धि के कारण हुआ. वनस्पति तेल उप-सूचकांक (Sub-Index) जून से 14 अंक ऊपर था, जिसमें कि लगातार सात महीने की गिरावट के बाद पहली बार वृद्धि दर्ज की गई थी. काला सागर अनाज पहल (Black Sea Grain initiative) के कार्यान्वयन को समाप्त करने के रूस के फैसले के कारण सूरजमुखी तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में उछाल आया है.

पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र और तुर्की ने रूस को यूक्रेनी बंदरगाहों से निर्यात योग्य आपूर्ति के सुरक्षित मार्ग की अनुमति देने की पहल पर सहमत किया था. रूस ने अब इस समझौते से हटने का फैसला किया है, जिससे अनाज और वनस्पति तेलों की कीमतों पर दबाव बढ़ गया है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

यह भी पढ़ेंः भारत चाहता है कि रुपया ग्लोबल बने, लेकिन रुपये की कम मांग और चीन के युआन की बढ़त इसमें रुकावट हैं


वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में फिर से बढ़ोत्तरी

पिछले महीने की तुलना में जुलाई में औसत वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं. सऊदी अरब ने जुलाई में तेल उत्पादन में प्रतिदिन 1 मिलियन बैरल की कटौती करने का फैसला किया.

बाद में, सऊदी के ऊर्जा मंत्री ने दैनिक कटौती को अगस्त तक बढ़ाने का फैसला किया.

रूस ने भी उत्पादन में प्रतिदिन 500,000 बैरल की अतिरिक्त कटौती करने का फैसला किया है. प्रोडक्शन में कटौती के कारण जुलाई में तेल की कीमतों में लगभग लगातार वृद्धि हुई है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति व्यापक आधार वाली होती जा रही है

उपभोक्ता मामलों के विभाग (डीसीए) और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि टमाटर की कीमतों के अलावा प्याज की कीमतों में भी तेजी आई है. दालें, अनाज और दूध की कीमतों में भी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. पिछले एक साल में गेहूं और चावल की कीमतों में क्रमशः 6 और 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है.

अनाज की कीमतों में तेज उछाल के जवाब में, सरकार ने खुले बाजार में 5 मिलियन टन गेहूं और 2.5 मिलियन टन चावल लाने का फैसला किया है. सरकार ने कीमतों को कम करने के लिए चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

आर्थिक गतिविधि लचीली बनी हुई है

हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स बताते हैं कि विकास अभी स्थिर बना हुआ है. सीमेंट उत्पादन और इस्पात खपत जैसे आर्थिक गतिविधियों के संकेतकों में मजबूत वृद्धि देखी गई है.

यात्री कारों की बिक्री में वृद्धि कम हुई है, हालांकि, ट्रैक्टर की बिक्री और बिजली उत्पादन में सुधार हुआ है.

वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण निर्यात में स्वाभाविक रूप से कमी आई है. घरेलू ऋण में दोहरे अंक की वृद्धि के साथ बैंक ऋण वृद्धि मजबूत है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

कुल मिलाकर, वैश्विक विकास मंदी और भू-राजनीतिक तनाव के जोखिमों को छोड़कर, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ग्रोथ ट्रैजेक्टरी को लेकर कम चिंतित दिखता है.

लिक्विडिटी को लेकर हैरत में डालने वाला कदम

पिछले महीने से बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी सरप्लस में रही है. पॉलिसी रेट में 250-बेसिस की बढ़ोत्तरी के बावजूद भी ऋण की बढ़ोत्तरी के रूप में इसका प्रभाव देखने को मिला.

आरबीआई लिक्विडटी को वापस खींचने के लिए परिवर्तनीय दर रिवर्स रेपो (Variable Rate Reverse Repo, वीआरआरआर) का ऑक्शन कर रहा है. लेकिन वीआरआरआर नीलामियों पर बैंकों की प्रतिक्रिया फीकी रही है.

उन्होंने नीलामी में पूरी तरह से सदस्यता नहीं ली है और धनराशि को अपने पास रखना या जमा प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉज़िट्स, सीडी) और कॉमर्शियल पेपर्स (सीपी) जैसे अन्य चीज़ों (Instruments) में निवेश करना पसंद किया है.

सरप्लस लिक्विडिटी को वापस लेने के लिए, आरबीआई ने अब एक कुंद सा टूल पेश किया है: वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (Incremental Cash Reserve Ratio, आईसीआरआर). 12 अगस्त से, सभी बैंकों को 19 मई से 28 जुलाई के बीच नेट डिमांड एंड टाइम लायबिलिटीज़ पर इन्क्रीमेंटल 10 प्रतिशत का सीआरआर बनाए रखना आवश्यक है.

इस कदम का उद्देश्य 2,000 रुपये के करेंसी नोटों को जमा करने सहित विभिन्न कारकों के कारण लिक्विडिटी सरप्लस को वापस लेना है. हालांकि यह एक अस्थायी उपाय था, यह घोषणा सबको हैरान करने वाली थी क्योंकि इसे विमुद्रीकरण के बाद से लागू नहीं किया गया था.

(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.)
(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः अमेरिका की रेटिंग में गिरावट से ज्यादा चीन और आरबीआई की मुद्रा नीति है चिंता का सबब


 

share & View comments