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Sunday, 22 December, 2024
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EPS पेंशन बढ़ाकर 5,000 रुपए की जाए, MNREGA को शहरों में भी शुरू करें-RSS के मजदूर संघ की मांगें

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट से पहले हुई बैठक के दौरान बीएमएस ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयकर में छूट, एफडी योजनाओं के लिए निरंतर ब्याज दरों आदि की भी मांग की.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े ट्रेड यूनियन, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने नरेंद्र मोदी सरकार से 2004 में बंद की जा चुकी पुरानी पेंशन प्रणाली को पुनः बहाल करने और कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) 1995 के तहत 65 लाख लोगों को भुगतान की जाने वाली पेंशन की न्यूनतम राशि को 1,000 रुपए से बढ़कर 5000 रुपए करने का आग्रह किया है. इसने आयुष्मान भारत चिकित्सा योजना को सभी ईपीएस 1995 के पेंशनभोगियों के लिए भी लागू किए जाने को भी कहा है.

शनिवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के बजट पूर्व परामर्श के दौरान बीएमएस ने कहा कि पेंशन सबके लिए एक समान होनी चाहिए और यह कुछ ही श्रमिकों और कामगारों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए. इसने यह बात देखते हुए की थी कि पिछली बार जब इस तरह की बढ़ोतरी दी गई थी तो इसका लाभ सिर्फ 14 लाख पेंशनभोगियों को ही दिया गया था.

इसने कहा कि सरकार को पेंशन के मामले में जितनी जल्दी हो सके सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का सम्मान करना चाहिए जिसमें इसने कहा था कि यह (पेंशन) सेवानिवृत्ति के समय मौजूद नियमों पर निर्धारित किया जाना चाहिए. इसने संसदीय स्थायी समिति की इस सिफारिश की ओर भी सरकार का ध्यान आकर्षित कराया कि न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपए से बढ़ाकर 3,000 रुपए की जानी चाहिए.

शहरी क्षेत्रों में देखी जा रही बेरोजगारी की ऊंची दर का उल्लेख करते हुए, बीएमएस ने सरकार से एक शहरी मनरेगा कार्यक्रम शुरू करने के लिए भी कहा,जो कोरोना की वैश्विक की महामारी के दौरान अपनी नौकरी खो चुके कई लोगों को रोजगार प्रदान कर पायेगा.

इसके अलावा इस ट्रेड यूनियन ने यह भी मांग की कि वरिष्ठ नागरिकों को आयकर से छूट दी जाए और रिटायर्ड के बाद की आय सुनिश्चित करने के लिए फिक्स्ड डिपाजिट स्कीम पर मिलने वाली ब्याज दरों को स्थिर रखा जाए.


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 शहरी मनरेगा समय की मांग

बीएमएस ने सरकार से ग्रामीण इलाकों में चलाई जा रही योजना की तर्ज पर ‘मनरेगा’ के शहरी संस्करण को शुरू करने के लिए कहा क्योंकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा संकलित नवीनतम मासिक आंकड़ों के अनुसार शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 8.21 प्रतिशत हो गई है.

इस ट्रेड यूनियन ने केंद्रीय वित्त मंत्री से ग्रामीण मनरेगा की गारंटीड रोजगार अवधि को 100 दिनों से बढ़ाकर 200 दिन करने और इसे कृषि कार्य से भी जोड़ने का भी आग्रह किया.

बीएमएस के राष्ट्रीय महासचिव विनय कुमार सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह ग्रामीण मनरेगा ही था जिसने प्रवासी श्रमिकों के लिए कोविड महामारी के दौरान जीवन-यापन करना आसान बनाया. संकट के समय अपनी उपयोगिता बखूबी साबित करने वाली मनरेगा योजना को और मजबूत किया जाना जरुरी है. वित्त मंत्री को इसके तहत गारंटीड रोजगार के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 200 करनी चाहिए.’

सिन्हा ने आगे कहा कि, ‘ग्रामीण इलाकों में चल रही योजना की तर्ज पर एक शहरी मनरेगा की भी लगातार मांग की जा रही है … अर्थव्यवस्था में तेजी के बावजूद, कोरोना के ओमीक्रॉन संस्करण द्वारा फिर से आर्थिक हालात में सुधार को नुकसान पहुंचाए जाने का डर लगातार बना हुआ है. सरकार को शहरी इलाकों में उच्च बेरोजगारी दर को देखते हुए एक शहरी रोजगार योजना शुरू करनी चाहिए.’

उन्होंने यह भी कहा कि अचानक आने वाले संकट काल में पीएम गरीब कल्याण योजना जैसे कार्यक्रम वांछित हैं लेकिन श्रमिकों की जल्द सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए मनरेगा जैसी नीतिगत योजनाओं की आवश्यकता है.

ईएसआई स्वास्थ्य योजना पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए

भारतीय मजदूर संघ का यह भी कहना था कि आयुष्मान भारत चिकित्सा योजना एक अच्छी योजना है पर कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) योजना मजदूरों के लिए अब तक की सबसे अच्छी स्वास्थ्य बीमा योजना है.

इस ओर ध्यान दिलाते हुए कि ईएसआई योजना (जो केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा संचालित की जाती है) के तहत बीमारी के कारण उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी के मामले में वित्तीय मदद का भी प्रावधान है. बीएमएस ने कहा कि इसका दायरा बीड़ी श्रमिकों और उन लोगों तक बढ़ाया जाना चाहिए जो बागानों में काम करते हैं.

सिन्हा ने कहा, ‘आयुष्मान भारत योजना के विपरीत, ईएसआई स्वास्थ्य बीमा अधिक समावेशी योजना है. सरकार को इसके तहत और अधिक क्षेत्रों के कर्मचारियों को लाना चाहिए.’

अनुबंध आधारित मजदूरों को नियमित करें

अपनी अन्य मांगों के तहत बीएमएस ने अनुबंध पर काम कर रहे मजदूरों को नियमित किए जाने की मांग की और कहा कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बिक्री का भी विरोध करती रही है. यूनियन ने कहा कि उन्हें सीधे-सीधे बेचने के बजाय घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को अन्य क्षेत्रों में लाया जाना चाहिए और उन्हें संयुक्त उद्यमों में शामिल किया जाना चाहिए.

सिन्हा का कहना था कि नौकरियों को आउटसोर्स करने और अनियमित कामगार और अल्पावधि के लिए श्रमिकों को काम पर रखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. यह बेरोजगारी की समस्या को और बढ़ा रहा है. इन अनुबंध पर काम कर रहे श्रमिकों के लिए समान वेतन उपलब्ध नहीं है. हम अनुबंध आधारित श्रमिकों के लिए उत्पादकता से जुड़े बोनस और एड होक बोनस की मांग करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अगर हम काम-काज में कैजुअलाइजेशन को बढ़ावा देते हैं तो अर्थव्यवस्था ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएगी क्योंकि श्रमिक हमेशा एक और अच्छी नौकरी की तलाश में रहते हैं. इसके कारण उत्पादकता अपने सबसे अच्छे स्तर पर नहीं होती है और इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाना चाहिए.’

(इस खबर अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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