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Wednesday, 15 May, 2024
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‘बस 8 मिनट और सामान आपके घर पर’- ऑनलाइन ग्रोसरी खरीदारों को समय की नहीं, कीमत और क्वालिटी की परवाह

सर्वे के मुताबिक, क्विक डिलिवरी ऐप्स को बाजार मुकाबले में बने रहने के लिए अपने बिजनेस मॉडल को बदलने की जरूरत पड़ सकती है. 61 फीसदी ऑनलाइन ग्राहक अपने किराने के सामान के लिए 3 से 24 घंटे इंतजार करने को तैयार हैं.

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नई दिल्ली: क्या ऑनलाइन ग्रोसरी शॉपर्स वाकई चाहते हैं कि उनकी ग्रॉसरी आठ मिनट में डिलीवर हो जाए? अगर एक नए सर्वेक्षण पर विश्वास किया जाए तो इसका जवाब होगा ‘नहीं’.

क्विक डिलिवरी सर्विस इस बीच काफी तेजी से बढ़ी हैं. उसके बावजूद अधिकांश यूजर्स इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि उनकी ग्रोसरी कितनी जल्दी उन तक पहुंचा दी जाएगी. ऑनलाइन खरीदारी करते समय उनका ध्यान उत्पादों की कीमत और उसकी क्वालिटी पर होता है. एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण से यह बात निकलकर सामने आई है.

गवर्नेंस, जनता और उपभोक्ता हितों के मुद्दों पर सर्वेक्षण करने वाले एक प्रमुख सामुदायिक मंच ‘लोकल सर्किल्स’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि ऑनलाइन खरीदारी करने वाले 61 फीसदी लोग अपने किराने के सामान के लिए 3 से 24 घंटे इंतजार करने को तैयार हैं.

सर्वे के मुताबिक, इनमें से सिर्फ 3 प्रतिशत खरीदार ऐसे थे जिन्होंने 30 मिनट के भीतर ग्रोसरी की डिलीवरी चाहिए थी और इसके लिए वो डिलीवरी चार्ज देने के लिए भी तैयार थे. यह सर्वे पूरे भारत के 254 जिलों में 87,000 घरेलू उपभोक्ताओं की प्रतिक्रियाओं पर आधारित था.

लोकल सर्कल्स ने अपने में कहा रिपोर्ट, ‘यह साफ है कि ऑनलाइन ग्रोसरी खरीदने वाले ज्यादातर घरेलू उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी कीमत ज्यादा मायने रखती है. दरअसल प्रोडक्ट की कीमत और गुणवत्ता प्रमुख पैरामीटर हैं जिसके आधार पर वे यह तय करते हैं उन्हें किस ग्रोसरी ऐप से अपना ऑर्डर देना है.’

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सर्वे के अनुसार, किराने का सामान ऑनलाइन खरीदने वालों में से 52 प्रतिशत यूजर्स महीने या फिर सप्ताह में एक बार अपना ऑर्डर देना पसंद करते हैं, जबकि 23 फीसदी लोग अपने ऑर्डर ‘अपनी जरूरत’ के आधार पर देते हैं.

सर्वे बताता है कि सिर्फ 17 फीसदी ऑनलाइन किराना खरीदार ऐसे है जो तत्काल किसी चीज की जरूरत या सामान खत्म हो जाने की स्थिति में ऑनलाइन खरीदारी करना पसंद करते हैं. इस सर्वे में मेट्रो / टियर 1 शहरों से 48 प्रतिशत, टियर 2 शहरों से 32 प्रतिशत और टियर 3 व 4 और ग्रामीण जिलों से 20 प्रतिशत उत्तरदाताओं को शामिल किया गया था.


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‘रणनीति पर फिर से विचार करने की जरूरत’

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिग बास्केट, अमेज़ॅन फ्रेश और फ्लिपकार्ट ग्रोसरी जैसे प्लेटफॉर्म डिलीवरी स्लॉट चुनने का विकल्प देते हैं. यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में 28 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि इसे वे पसंद करते हैं. हालांकि कुछ क्विक डिलीवरी ऐप्स ने फिलहाल डिलीवरी चार्ज माफ किए हुए हैं,लेकिन जब वह एक बार चार्ज करना शुरू कर देंगे तो यह उनके लिए समस्या बन सकता है.

इसमें कहा गया है, ‘कुछ प्लेटफॉर्म उपभोक्ताओं को फास्ट ग्रोसरी डिलीवरी से जोड़ने के लिए डिलीवरी शुल्क माफ कर रहे हैं. लेकिन इस बात की संभावना है कि जिस समय ये डिलिवरी चार्जेस लगाए जाएंगे कुछ उपभोक्ता बढ़ी हुई कीमत के आधार पर उस ऐप से हटकर दूसरी तरफ जा सकते हैं.’

सर्वे इस बात की तरफ इशारा करता है कि अगर वे वास्तव में भारत में ग्रोसरी डिलीवरी मार्केट में अपने रास्ते बनाना चाहते है तो उन्हें अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करने की जरूरत पड़ सकती है. क्योंकि उनका तेजी से ग्राहकों तक सामान पहुंचाने की रणनीति ज्यादा कारगार साबित होती नजर नहीं आ रही है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह देखते हुए कि आधे से ज्यादा ऑनलाइन किराना यूजर्स अभी भी अपनी ग्रोसरी अपनी जरूरत के आधार पर महीने या फिर सप्ताह में एक बार ऑर्डर करते हैं. सिर्फ 17 फीसदी यूजर्स ऐसे हैं जो तुरंत डिलीवरी के लिए ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं. अध्ययन से संकेत मिलता है कि मौजूदा समय में क्विक ग्रोसरी ऐप का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर अचानक से सामान खत्म हो जाने या फिर अंतिम-मिनट की खरीदारी के लिए किया जा रहा है.’

अगर वे ऑनलाइन ग्रोसरी खरीदारों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाना चाहते हैं, तो क्विक डिलीवरी ऐप्स को कीमत, सर्विस और विकल्प पर ध्यान देना होगा और इसके साथ ही कई और जगहों पर भी अपनी सर्विस देनी होगी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या तेजी से घर तक ग्रोसरी पहुंचाने का दावा करने वाले ये ऐप पूंजी जुटाने में सक्षम हो पाएंगे और पहले से स्थापित प्लेटफॉर्मों के डिलिवरी समय को कम करने और 3 से 6 घंटे में ग्रोसरी आइटम घर तक पहुंचा पाने में सफल हो पाएंगे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या / संपादन: अलमिना खातून)


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