(अम्मार जैदी)
नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) पेट्रोलियम मंत्रालय ने घरेलू उत्पादन वाले कच्चे तेल पर अप्रत्याशित लाभ कर लगाने के फैसले की समीक्षा किए जाने की मांग करते हुए कहा है कि यह कदम पेट्रोलियम उत्पादों के उत्खनन एवं उत्पादन संबंधी अनुबंधों में उल्लेखित वित्तीय स्थिरता के सिद्धांत के प्रतिकूल है।
पेट्रोलियम मंत्रालय ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय को लिखे अपने पत्र में कहा है कि अप्रत्याशित लाभ कर के इस फैसले की जद से उन तेल क्षेत्रों या ब्लॉक को छूट दी जाए जिन्हें उत्पादन साझा अनुबंध (पीएससी) और राजस्व साझा अनुबंध (आरएससी) के तहत कंपनियों को सौंपा गया है। इस पत्र की प्रति पीटीआई-भाषा के पास भी उपलब्ध है।
मंत्रालय का मानना है कि इन अनुबंधों में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों को आत्मसात करने की अंतर्निहित व्यवस्था मौजूद है क्योंकि बढ़े हुए दामों से हासिल राजस्व को बढ़े हुए लाभ हिस्से के तौर पर सरकार के साथ साझा किया जाता है।
सरकार ने एक जुलाई को घरेलू स्तर पर निकाले गए कच्चे तेल पर अप्रत्याशित लाभ कर लगाने का फैसला किया था। जहां पेट्रोल, डीजल एवं विमान ईंधन के निर्यात पर शुल्क लगाए गए वहीं स्थानीय स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (एसएईडी) लगाया गया।
शुरुआत में एसएईडी 23,250 रुपये प्रति टन था लेकिन अब यह घटकर 10,500 रुपये प्रति टन रह गया है।
हालांकि इस बारे में जब पेट्रोलियम और वित्त मंत्रालयों का रुख जानने की कोशिश की गई तो किसी ने भी ईमेल का जवाब नहीं दिया।
इस पत्र के अनुसार, पेट्रोलियम मंत्रालय का मानना है कि घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर यह शुल्क लगाने से पीएससी एवं आरएससी के अनुबंध वाली कंपनियां ऐसी स्थिति में आ जाती हैं जहां परिचालक को अप्रत्याशित लाभ कर से भी अधिक भुगतान करना पड़ जाता है। इस वजह से इन अनुबंधों वाली कंपनियों को इस कर से छूट दी जानी चाहिए।
पेट्रोलियम मंत्रालय ने कहा है कि इन अनुबंधों में संशोधन के लिए पहले ही अनुरोध मिल चुके हैं। इन कंपनियों ने अनुबंध की शर्तों के उल्लंघन और इसकी आर्थिक अव्यवहार्यता से जुड़ी चिंताएं जाहिर की हैं।
भाषा प्रेम
प्रेम रमण
रमण
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.