भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दिसंबर ‘रेपो रेट’ में 35 आधार-अंकों की वृद्धि की घोषणा की. इस वर्ष यह पांचवीं वृद्धि थी. इस नयी वृद्धि से रेपो रेट 6.25 प्रतिशत हो गई है. इस घोषणा की दिशा ‘समायोजन की वापसी’ के रूप कायम रखी गई.
इस साल के लिए मुद्रास्फीति दर 6.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है. आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 7 फीसदी से घटकर 6.8 प्रतिशत किया गया है. हालांकि मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन इसके बारे में रिजर्व बैंक के अपने अनुमानों के मद्देनजर ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक की मुद्रा नीति कमिटी (एमपीसी) मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित रखेगी. ‘कोर’ मुद्रास्फीति और ‘एंकर’ मुद्रास्फीति के बारे में अपेक्षाओं से आगे बढ़ने का स्पष्ट दावा स्वागतयोग्य है.
मुद्रास्फीति को लेकर चिंता, आर्थिक वृद्धि को लेकर उम्मीदों और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में वृद्धि की संभावना को देखकर ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक सख्त मुद्रा नीति जारी रखेगा.
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‘हेडलाइन’ मुद्रास्फीति में नरमी, ‘कोर’ मुद्रास्फीति में स्थिरता
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति सितंबर में 7.4 फीसदी से थोड़ा घटकर अक्टूबर में 6.8 फीसदी हुई. ‘हेडलाइन’ मुद्रास्फीति में गिरावट खाद्य सामग्री और ईंधन तक सीमित थी. ‘कोर’ मुद्रास्फीति (खाद्य सामग्री और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) 6 फीसदी पर बनी रही. खाद्य सामग्री की कीमतों में कमी भी व्यापक आधार वाली नहीं थी. सब्जियों और खाद्य तेलों के दाम नरम पड़े मगर अनाजों के दाम 12 फीसदी बढ़ गए. खासकर चावल और गेहूं की कीमतें सरकारी एजेंसियों के पास इंका भंडार कम होने के कारण ऊंची बनी रह सकती हैं.
‘कोर’ मुद्रास्फीति एक साल से 6 फीसदी से ऊपर के स्तर पर बनी हुई है. खासकर ‘घरेलू सामान और सेवाओं’, पर्सनल केयर के सामान, मनोरंजन और खेलकूद के सामान की महंगाई अक्टूबर में 6 फीसदी से ऊपर थी.
दुनियाभर उत्पादन सामग्री की कीमतें नरम हो रही हैं और कंपनियां लागत में कमी का लाभ उपभोक्ताओं में बांट रही हैं. धातुओं, रसायनों, वनस्पति तेलों की, जो मैनुफैक्चरिंग में प्रमुख सामग्री होती हैं, कीमतें घटने लगी हैं लेकिन उत्पादक और सर्विस प्रोवाइडर उपभोक्ताओं को इसका लाभ बहुत जल्दी नहीं देने वाले हैं. इसलिए ‘कोर’ मुद्रास्फीति आगामी महीनों में स्थिर रहेगी.
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अनिश्चित वैश्विक मुद्रास्फीति
बास्केट खाद्य सामग्री की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में मासिक परिवर्तन का अंदाजा देने वाले ‘एफएओ फूड प्राइस’ सूचकांक (एफएफपीआई) में मार्च के शिखर बिंदु से निरंतर गिरावट देखी जा रही है. नवंबर का आंकड़ा बताता है कि अनाजों और दुग्ध तथा मांस उत्पादों की कीमतों में कमी आई लेकिन वनस्पति तेल महंगे हुए. आगामी महीनों में इन उत्पादों की कीमतों में उलटफेर से घरेलू खाद्य सामग्री की कीमतें प्रभावित होंगी.
दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में नवंबर माह में नाटकीय कमी देखी गई लेकिन आगे यह कई कारणों पर निर्भर होगा मसलन रूसी कच्चे तेल के समुद्र मार्ग से निर्यात पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध और भावी उत्पादन में ‘ओपेक’ द्वारा कटौती करने के फैसले पर. कीमतों में ज्यादा गिरावट रोकने के लिए ओपेक उत्पादन में बड़ी कटौती करने की संकेत दे सकता है.
रिजर्व बैंक यह मान कर चल रहा है कि कच्चे तेल (भारतीय बास्केट) की औसत कीमत प्रति बैरल 100 अमेरिकी डॉलर रहेगी और इसी के आधार पर वह मुद्रास्फीति के अपने अनुमान लगाएगा.
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रुपये को बचाने की खातिर
रिजर्व बैंक ने पॉलिसी रेट में जो वृद्धि की है वह विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों की बड़बोली टिप्पणियों के अनुरूप है. रेट वृद्धि से रुपये को अगले सप्ताह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक से, जिसमें वह रेट में और वृद्धि की घोषणा करेगा, से पहले सहारा देगी.
रुपये ने नवंबर में सुधार दर्ज किया लेकिन डॉलर की मजबूती और चालू खाते के निरंतर घाटे के कारण वह दबाव में आ गया. अमेरिका और भारत में ब्याज दरों में घटता अंतर विदेश पूंजी के पलायन के कारण रुपये को चोट पहुंचा सकता है. फेड रिजर्व के गवर्नर ने ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट में हाल में दिए भाषण में संकेत दिया कि दरों में वृद्धि की गति कम करने की गुंजाइश तो है लेकिन दरों में वृद्धि का चक्र अनुमान से लंबा हो सकता है.
गवर्नर ने कहा कि माल की महंगाई में तेजी से कमी आई है लेकिन सेवाओं की कीमतों में वृद्धि प्राथमिकता बनी रहेगी. इसलिए, दरों में वृद्धि का परिमाण घट सकता है लेकिन दरों में वृद्धि का चक्र जारी रह सकता है.
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आर्थिक वृद्धि की बेहतर संभावनाएं
चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि के अनुमानों में कमी करने के बावजूद इसकी संभावनाएं अच्छी हैं. इसने रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति पर काबू पाने की ज्यादा गुंजाइश बनाई है. दुनियाभर में रबी की अच्छी फसल की उम्मीद, संपर्कों के जरिए दी जाने वाली सेवाओं में विस्तार आदि आर्थिक वृद्धि के निरंतर विकास के संकेत देते हैं. क्रेडिट के मामले में व्यापक आधार वाली वृद्धि के साथ बड़े उद्योगों द्वारा तेजी से उधार लेने के कारण निवेश को बढ़ावा मिलेगा.
मैनुफैक्चरिंग तथा सर्विसेज सेक्टर के लिए पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) सरीखे सूचकांक नवंबर में तीन महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए जो उत्पादन और घरेलू मांग में मजबूत तेजी दिखते हैं.
वैश्विक झटकों के सामने अर्थव्यवस्था के मजबूती से टिके रहने के कारण विश्व बैंक ने भी चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में वृद्धि के अपने अनुमान को 6.5 फीसदी से बढ़ाकर 6.9 फीसदी कर दिया है.
कुल मिलाकर, मुद्रास्फीति का अपने शिखर पर पहुंचना बीती बात भले हो गई हो, उस पर नजर रखना जरूरी है.
(राधिका पाण्डेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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