भारत में कई उपभोक्ता-केंद्रित उद्योग हैं जो एकाधिकार के साथ खड़े हैं. इनमें से कई में सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शीर्ष दो कंपनियों की पकड़ को कमज़ोर कर रही है. बड़ी बात यह है कि सरकार मौजूदा दिग्गजों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय नए प्रवेशकों को सशक्त बनाकर ऐसा कर रही है. इसके लिए एक उभरता हुआ, लेकिन प्रभावी उपकरण है—ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स या ओएनडीसी.
यह अप्रत्याशित नहीं है और ये अलग भी नहीं है. भारत को हर क्षेत्र में बड़ी कंपनियों की ज़रूरत है. यही कारण है कि सरकार का दृष्टिकोण—दिग्गजों के पर काटने के बजाय दूसरे छोटे प्रवेशकों को सशक्त बनाने के लिए—एक स्वागत योग्य कदम है.
जहां तक ग्राहकों का संबंध है, दो सबसे अधिक दिखाई देने वाले क्षेत्र हैं फूड डिलीवरी और ई-कॉमर्स, जिनमें स्विगी और ज़ोमैटो फूड एरिया में और अमेज़ॅन-फ्लिपकार्ट ई-कॉमर्स में आते हैं. फूड डिलीवरी और ई-कॉमर्स ऐसे क्षेत्रों के प्रमुख उदाहरण हैं जहां सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से दो कंपनियों के प्रभुत्व (डुओ पॉली) को तोड़ने के लिए एक तंत्र बनाया है.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा पिछले साल दिसंबर में स्थापित ओएनडीसी प्लेटफॉर्म, वेंडर्स और बायर्स को एक दूसरे के साथ सीधे जुड़ने के लिए मंच देता है. हाल ही में, ओएनडीसी फूड डिलीवरी क्षेत्र में धीरे-धीरे स्विगी और ज़ोमैटो के विकल्प के रूप में उभर रहा है.
यह दोनों फूड डिलीवरी ऐप्स अपने प्रभुत्व के साथ-साथ अपने ही डिलीवरी ड्राइवर्स का उपयोग करते हैं. यह अपने प्लेटफार्मों के इस्तेमाल के लिए रेस्तरां पर अधिक कमीशन लगा सकते हैं. हालांकि, रेस्तरां मालिक इसका विरोध कर रहे हैं. भारत के महानगरों में कई रेस्तरां इन प्लेटफार्मों से बाहर तो निकल गए थे, लेकिन वो इन दो प्लेटफार्मों द्वारा प्रदान की जाने वाली व्यापक पहुंच के लिए लौट आए हैं.
ओएनडीसी, हालांकि, अभी नया है लेकिन ये फूड डिलीवरी ऐप्स को बायपास करने में रेस्तरां के लिए एक संभावित विकल्प हो सकता है. रेस्तरां को अपनी डिलीवरी खुद करनी होगी, लेकिन ओएनडीसी इसकी सुविधा भी देता है और रेस्तरां डन्ज़ो, शिपरॉकेट या लोडशेयर जैसी कंपनियों के साथ बेहतर सौदे करने के लिए स्वतंत्र हैं जो उनके लिए फूड डिलीवर कर सकते हैं. यदि यह चलता रहेगा तो, यह डिलीवरी स्पेस में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है, जिससे रेस्तरां अधिक प्रभावी ढंग से बातचीत कर सकेंगे. इसमें ग्राहकों को फायदा होता है.
ओएनडीसी प्लेटफॉर्म ई-कॉमर्स स्पेस के लिए भी ऐसा ही कर सकता है. फिलहाल, अमेज़न या फ्लिपकार्ट पर प्रोडक्ट की तलाश करने वाला उपभोक्ता केवल उन वस्तुओं में से चुन सकता है जो इन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं. एक बार ओएनडीसी को अपनाने के बाद, उपभोक्ताओं के पास प्लेटफॉर्म पर प्रोडक्ट्स तक पहुंच होगी, जिससे उन्हें सामान के साथ-साथ कीमतों के मामले में अधिक विकल्प मिलेंगे.
अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट अभी तक ओएनडीसी पर साइन-अप नहीं है, लेकिन इसमें शामिल होने के लिए उन पर भी सरकार से काफी अनौपचारिक दबाव है.
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लोकतंत्रीकरण का मार्ग
सरकार ने बाज़ार में प्रवेश किए बिना फूड डिलीवरी और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के लिए आधार तैयार किया है, लेकिन केवल स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए यह अधिक प्रत्यक्ष दृष्टिकोण अपना रही है.
फिलहाल, ऐप्पल के आईओएस प्लेटफॉर्म और गूगल के एंड्रॉयड ओएस का प्रभुत्व लगभग गायब है. इसने उन्हें ऐप डेवलपर्स के साथ समझौते की शर्तों को निर्धारित करने की अनुमति दी है. पिछले साल अक्टूबर में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने गूगल को आदेश दिया था कि वह उपयोगकर्ताओं को पहले से इंस्टॉल किए गए ऐप्स को हटाने की अनुमति दे, जिससे पता चलता है कि गूगल एक प्रमुख तरीके से प्रतिस्पर्धा कर रहा था.
अब, एक नया ‘स्वदेशी’ मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम, भरओएस, जिसे जेएएनडीके ऑपरेशंस प्राइवेट लिमिटेड (जेएएनडीकेओपीएस) ने बनाया है, जो आईआईटी मद्रास में स्थापित एक गैर-लाभकारी संगठन है. जबकि सरकार सीधे तौर पर भरओएस के विकास में शामिल नहीं थी, इसका समर्थन इस तथ्य से स्पष्ट है कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और धर्मेंद्र प्रधान ने मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम लॉन्च किया और मुखर चीयरलीडर्स रहे हैं.
हालांकि, भार ओएस एंड्रॉइड पर आधारित है, इसमें ऐसी विशेषताएं शामिल हैं जो ऐप डेवलपर्स के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ाती हैं और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प देती हैं. भरओएस में कोई भी ऐप प्री-लोडेड नहीं होगा, जिससे उपभोक्ता ठीक वही डाउनलोड कर सकेंगे जो वे चाहते हैं और ऐप डेवलपर्स को इस प्रकार एक समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देता है.
गूगल या ऐप्पल के बाज़ार शेयरों में पैठ बनाना एक बड़ा काम होगा, लेकिन फिर भी सरकार को कोशिश करते देखना अच्छा है.
यदि आप किसी क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा में और भी अधिक प्रत्यक्ष सरकारी भागीदारी देखना चाहते हैं, तो दूरसंचार से आगे मत जाइए. वोडाफोन और आइडिया के विलय का मतलब था कि जो रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के खिलाफ अपनी पकड़ बना सके, मगर ऐसा हुआ नहीं.
इसके बजाय, वोडाफोन आइडिया दिवालिएपन के करीब आ गये और केवल इसलिए बच गये क्योंकि सरकार अपने बकाया को इक्विटी में बदलने पर सहमत हुई. संक्षेप में सरकार ने दूरसंचार उद्योग में वोडाफोन में एक-तिहाई हिस्सेदारी हासिल करके अपने अस्तित्व को सुरक्षित किया है.
सरकार का समग्र दृष्टिकोण सही है. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के माध्यम से नियंत्रण स्थापित करने और इस तरह कंपनियों को व्यापार करने और विस्तार करने से रोकने के बजाय, सरकार ने प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने वाले वातावरण का निर्माण करके अधिक हल्का-फुल्का दृष्टिकोण अपनाया है.
उदाहरण के लिए कुछ अन्य क्षेत्र हैं जहां डुओ पॉली उभर रही है, लेकिन जहां सरकार कार्रवाई नहीं करेगी. नागरिक उड्डयन में जनवरी-मार्च 2023 की तिमाही में इंडिगो और टाटा के स्वामित्व वाली एयरलाइंस की संयुक्त बाज़ार हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से थोड़ी अधिक हो गई. गो फर्स्ट की मौजूदा समस्याओं को देखते हुए, इस संयुक्त बाज़ार की हिस्सेदारी में जल्द ही और वृद्धि होने की संभावना है. इसे यूं कहा जा सकता है कि सरकार विमानन क्षेत्र में एक बार फिर से प्रवेश कर सती है, लेकिन यह हास्यास्पद है क्योंकि वो इससे बाहर निकलने के लिए बेताब है.
जब राइड-हेलिंग ऐप की बात आती है, तो उबर और ओला समान रूप से प्रभावी होते हैं. यहां भी, इस बात की बहुत कम संभावना है कि सरकार इस पकड़ को तोड़ने के लिए कुछ भी करेगी. उपभोक्ताओं की उम्मीदें ब्लूस्मार्ट जैसे नए प्रवेशकों से जुड़ी हैं, जिन्हें सरकार के नवीकरणीय ऊर्जा प्रोत्साहन से फायदा हुआ है.
और ऐसा ही होना चाहिए. यह दृष्टिकोण कानूनी रूप से प्रभावी खिलाड़ियों को कम करने के बजाय प्रवेश बाधाओं को कम करके और नए अवसर पैदा करके प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है. यह केवल स्लाइस को पुनर्वितरित करने के बजाय पाई का आकार बढ़ाता है.
लेखक का ट्विटर हैंडल @SharadRaghavan है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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