नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) उद्योग निकायों ने मंगलवार को कहा कि सरकार के ‘पुराने’ उर्वरक नियम समान स्तर की प्रतिस्पर्धा के बजाय प्रतिकूल स्थिति बना रहे हैं तथा घरेलू निर्माताओं की तुलना में चीनी आयात को तरजीह दे रहे हैं और इससे ‘मेक इन इंडिया’ पहल कमजोर हो रही है।
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों प्राधिकरणों द्वारा शासित, उर्वरक नियंत्रण ढांचे की समवर्ती प्रकृति ने कई संशोधनों को जन्म दिया है, लेकिन यह घरेलू जरूरतों और वैश्विक विकास के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रही है।
उद्योग निकायों ने ‘एक राष्ट्र, एक लाइसेंस’ नीतियों को लागू करने, घरेलू और विदेशी निर्माताओं के बीच नियामकीय समानता सुनिश्चित करने और प्रति यूनिट निरीक्षकों की संख्या दो तक सीमित करने सहित व्यापक सुधारों का आह्वान किया।
घुलनशील उर्वरक उद्योग संघ (एसएफआईए) ने बयान में कहा कि एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम ने हाल ही में घुलनशील उर्वरकों के लिए निविदाएं जारी कीं, जिसमें स्पष्ट रूप से ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों को शामिल नहीं किया गया, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे वर्तमान नियामकीय ढांचा स्थानीय उत्पादन को हतोत्साहित करता है, जबकि आयात को सुविधाजनक बनाता है।
भारत के उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) के तहत, घरेलू स्टार्टअप को कई लाइसेंस प्राप्त करने होंगे, कार्यालय बनाए रखने होंगे और हर राज्य में गोदाम स्थापित करने होंगे जहां उनके उत्पाद वितरित किए जाएंगे। इसके विपरीत, विदेशी आपूर्तिकर्ताओं को न्यूनतम अनुपालन आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सभी भारतीय राज्यों में बेचने के लिए केवल बुनियादी आयात औपचारिकताओं की आवश्यकता होती है।
वर्ष 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत स्थापित एफसीओ को उर्वरक की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और उस अवधि के दौरान वितरण की निगरानी करने के लिए डिज़ाइन किया गया था जब भारत आयात पर बहुत अधिक निर्भर था।
बयान में कहा गया, ‘‘हालांकि, आधुनिक घरेलू उत्पादन क्षमताओं के अनुकूल होने के लिए इस ढांचे को संघर्ष करना पड़ा है।’’
आईआईएम नागपुर इनक्यूबेशन सेल के मार्गदर्शक सुभाष बुद्धे ने कहा कि भारत का 11 करोड़ 26.2 लाख टन फल और सब्जियों का उत्पादन पांच लाख टन आयातित, गैर-सब्सिडी वाले उर्वरक पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
बुद्धे ने कहा, ‘‘एक विनिर्माण इकाई की निगरानी कम से कम 32 एफसीओ निरीक्षकों द्वारा की जाती है, जिससे विनियमन की आड़ में अत्यधिक जांच और उत्पीड़न होता है। यह अत्यधिक विनियमन स्टार्टअप विकास को रोकता है और घरेलू नवाचार को बढ़ावा देने के बजाय भारत को आयात पर निर्भरता की ओर धकेलता है।’’
अहमदाबाद के चैंबर फॉर एग्री इनपुट प्रोटेक्शन (सीएआईपी) के अध्यक्ष जयंतीभाई कुंभानी ने कहा कि फार्मास्युटिकल्स सहित किसी अन्य उद्योग को निरीक्षकों की इतनी कड़ी निगरानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ मामलों में, एक ही जिले में कई निरीक्षक एक उर्वरक इकाई की निगरानी कर सकते हैं, जिससे भारतीय उद्यमियों पर अनुचित दबाव बनता है।’’ उन्होंने गैर-सब्सिडी वाले उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए एफसीओ सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
महाराष्ट्र के जमीनी स्तर के कृषि-उद्यमी संघ ओएएमए के अध्यक्ष विजय ठाकुर ने भी यही राय व्यक्त की है।
विनियामक बोझ विशेष रूप से घुलनशील उर्वरकों को प्रभावित करता है, जो बागवानी विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भाषा राजेश राजेश अजय
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