नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) रेल क्षेत्र में अगले 10 साल के दौरान भारी पूंजीगत खर्च देखने को मिलेगा। सोमवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि रेलवे की क्षमता वृद्धि पर ध्यान देने की जरूरत होगी, जिससे 2030 तक इसकी क्षमता मांग से अधिक रहे। इसके लिए क्षेत्र पर भारी पूंजीगत खर्च करने की जरूरत होगी।
रेल क्षेत्र में पूंजीगत खर्च 2014 तक बमुश्किल 45,980 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष था और इसके चलते यह क्षेत्र बढ़ती मांग को पूरा करने में असमर्थ था। ऐसे में अत्यधिक भीड़भाड़ की खबरें अक्सर सुनने को मिलती थीं।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार 2014 के बाद पूंजीगत व्यय में पर्याप्त बढ़ोतरी करके रेलवे क्षेत्र में सुधार के गंभीर प्रयास किए गए।
समीक्षा में कहा गया कि भारतीय रेल के लिए 2009-14 के दौरान औसत वार्षिक पूंजीगत व्यय 45,980 करोड़ रुपये था, जिसे 2021-22 के दौरान 2,15,058 करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया।
कोविड महामारी से संबंधित अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भारतीय रेल लाखों लोगों को प्रतिदिन उनकी मंजिल तक पहुंचा रही है और राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला को सुचारू बनाए रखने में सफल रही है।
समीक्षा में कहा गया कि वर्ष 2009-14 के दौरान प्रतिवर्ष औसतन 720 किलोमीटर ट्रैक या रेल की तुलना में 2014-21 के दौरान प्रति वर्ष औसतन 1,835 किलोमीटर रेल बिछाई गई।
भारतीय रेल कवच जैसी स्वदेशी तकनीकों, वंदे भारत रेलगाड़ियों और स्टेशनों के पुनर्विकास के जरिये सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा को बढ़ावा दे रही है।
समीक्षा के मुताबिक, भारतीय रेल ने 2020-21 के दौरान 1.23 अरब टन माल ढुलाई की और 1.25 अरब यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाया।
समीक्षा में आगे कहा गया कि रेल दुर्घटनाओं की संख्या 2018-19 में 59 से घटकर 2019-20 में 55 रह गई।
कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए भारतीय रेल ने 31 दिसंबर 2021 तक 1,841 किसान रेल सेवाओं का संचालन किया।
भाषा पाण्डेय अजय
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