scorecardresearch
शुक्रवार, 9 मई, 2025
होमदेशअर्थजगतदुधारू गायों की दुर्लभ नस्ल के संरक्षण, संवर्धन में जुटी है एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज

दुधारू गायों की दुर्लभ नस्ल के संरक्षण, संवर्धन में जुटी है एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज

Text Size:

चेन्नई, दो नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड डेयरी सर्विसेज, विशेषकर देश के दक्षिणी हिस्सों में अलामधी सीमन स्टेशन में दुधारू गायों और बैलों की अनूठी नस्लों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम कर रही है। एक शीर्ष अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

अलामाधी सीमन स्टेशन के प्रमुख गुणसेकरन एम ने कहा कि यहां के पास रेडहिल्स में एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज के इस सीमन स्टेशन में गोजातीय की लगभग 25 नस्लें हैं और यहां पिछले वित्त वर्ष में 95.61 लाख जमे हुए वीर्य की खुराक बेची गईं।

अलामाधी सीमेन स्टेशन उन पांच स्टेशनों में से एक है जो देशभर में एनडीडीबी डेयरी सेवाओं के तहत स्थापित किया गया है। चेन्नई के अलावा यह गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र और हरियाणा में स्थित है।

उनके अनुसार, ‘कंगयम’ बैल विशेष रूप से तमिलनाडु में लोकप्रिय बैल वश में करने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू’ में अपनी मजबूत क्षमता के लिए जाने जाते हैं। चित्तूर जिले की ‘पुंगनूर’ नस्ल आंध्र प्रदेश से देवी ‘लक्ष्मी’ और केरल से ‘वेचूर’ को दर्शाती है। उन्होंने कहा, दुनिया की सबसे छोटी नस्ल जिसे गिनीज रिकॉर्ड्स में जगह मिली है, वह ‘संबंधित क्षेत्र का गौरव’ है।

उन्होंने बताया कि ‘पुंगनूर’ और ‘वेक्टर’ नस्लें विलुप्त होने के कगार पर थीं, जिनमें क्रमशः लगभग 500 और 200 जानवर शामिल थे।

उन्होंने कहा, ‘कंगायम’ नस्ल की उत्पत्ति तमिलनाडु के दक्षिणी हिस्सों में कोंगु क्षेत्र से हुई है, जबकि ‘पुंगनूर’ मवेशियों की संख्या केवल 500 से 600 है, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।

‘पुंगनूर’ नस्ल के दूध में वसा की मात्रा अधिक होती है। सामान्य गाय में वसा की मात्रा लगभग तीन से 3.5 प्रतिशत होती है, इसकी तुलना में पुंगनूर नस्ल की गाय में वसा की मात्रा लगभग आठ प्रतिशत होती है।

उन्होंने कहा, “इस गाय का दूध प्रतिदिन औसतन तीन से पांच लीटर होता है और दैनिक आहार का सेवन पांच किलोग्राम होता है। ‘वेचूर’ नस्ल केरल के कोट्टायम जिले के वेचूर गांव में पाई जाने वाली सबसे छोटी मवेशी नस्ल है।

उन्होंने कहा, ‘..गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के अनुसार यह दुनिया की सबसे छोटी मवेशी नस्ल है और इसे आवश्यक भोजन की मात्रा की तुलना में बड़ी मात्रा में दूध पैदा करने के लिए महत्व दिया जाता है।’’

उन्होंने कहा, आज लगभग 200 ‘वेचूर’ गायें हैं, जिनमें से लगभग 100 सरकार द्वारा संचालित पशु चिकित्सा महाविद्यालय में हैं।

भाषा राजेश अजय राजेश

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments