नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) न केवल शहद उत्पादन के कारोबार में बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करेगा बल्कि छोटे मधुमक्खी पालकों को एकजुट कर शहद में मिलावट की समस्या से निपटने में भी मदद करेगा। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव, अभिलाक्ष लिखी ने कहा कि केंद्र सरकार की योजना एनबीएचएम का कार्यान्वयन देश में ‘मीठी क्रांति’ हासिल करने के लिए एक बड़ा कदम साबित होगा।
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘एनबीएचएम शहद में मिलावट से निपटने के लिए शहद के लिए ढांचागत सुविधाओं और छोटे मधुमक्खी पालकों को संगठित तरीके से जोड़ने में मदद करेगा।’’
अधिकारी ने कहा कि एनबीएचएम का उद्देश्य देश के सभी हिस्सों में शहद परीक्षण प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क बनाना है और इसके लिए मधुमक्खी पालकों के 100 किसान-उत्पादक संगठन (एफपीओ) केंद्र बनेंगे।
राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (एनबीबी) द्वारा सहकारी समितियों नेफेड, ट्राइफेड और एनडीडीबी के सहयोग से किया गया था। कार्यक्रम में 600 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
एनबीबी ने शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों जैसे मधुमक्खी पराग, मधुमक्खी मोम, मधुमक्खी के डंक और प्रोपोलिस की ट्रेसबिलिटी के लिए मधुक्रांति पोर्टल लॉन्च किया है।
देश भर में एनबीएचएम के प्रभावी कार्यान्वयन पर जोर देते हुए, एनबीबी के कार्यकारी निदेशक एन के पाटले ने कहा कि मधुमक्खी पालकों और अन्य हितधारकों को वस्तुत: लाभ दिलाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ाने के लिए यह सलाह दी जाती है कि शहद के उत्पादन के साथ-साथ रॉयल जेली, मधुमक्खी पराग, मधुमक्खी मोम, मधुमक्खी डंक, प्रोपोलिस इत्यादि जैसे अन्य मधुमक्खी उत्पादों का भी उत्पादन किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि आईसीएआर पूरे भारत में एआईसीआरपी केंद्रों के तहत ‘परागण उद्यान’ बनाने की राह पर है। उन्हेंने कहा कि गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड में इस तरह का पहला परागण उद्यान स्थापित किया गया है।
नेफेड के अतिरिक्त प्रबंध निदेशक पंकज प्रसाद ने कहा कि उनकी सहकारी संस्था, मधुमक्खी पालकों और शहद प्रसंस्करणकर्ताओं के 65 संकुल और एफपीओ बना रही है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अभिजीत भट्टाचार्य ने कहा कि एनडीडीबी का डेयरी सहकारी समितियों की तर्ज पर शहद एफपीओ बनाने की सोच है ताकि डेयरी सहकारी समितियों और दूध संघों के पास उपलब्ध ढांचागत सुविधाओं का लाभ मिल सके।
ट्राइफेड की महाप्रबंधक सीमा भटनागर ने कहा कि यह सहकारी संस्था पहले से ही देश के आदिवासी हिस्सों में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने और जंगली शहद की खरीद में शामिल है और उसने वर्ष 2020-21 के दौरान विभिन्न देशों को 115 लाख रुपये के शहद का निर्यात भी किया है।
भाषा राजेश राजेश रमण
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