नयी दिल्ली, 24 मार्च (भाषा) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी द्वारा अपने पश्चिमी अपतटीय क्षेत्रों के कुओं में अपेक्षा की तुलना में कम पानी डालने की वजह से देश को पिछले चार साल में 11,276 करोड़ रुपये मूल्य के 38 लाख टन कच्चे तेल का नुकसान हुआ है। देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने यह कहा।
ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) के मुंबई हाई, नीलम और हीरा क्षेत्रों से उत्पादन कम हो रहा है। ऐसे में बचे हुए तेल को ऊपर लाने के लिये कुओं में उच्च दबाव के साथ पानी डाला जाता है।
कैग की संसद में बृहस्पतिवार को पेश रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘कुओं में पर्याप्त पानी नहीं डाला गया।’’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘उपयोग किये जाने वाले बुनियादी ढांचे के पुराना पड़ने, पाइपलाइन से लगातार रिसाव, व्यवहार्यता रिपोर्ट की बातों का क्रियान्वयन नहीं होने की वजह से कुओं में पानी जरूरत से कम डाला गया।’’
इससे जलाशयों में दबाव कम हुआ और कच्चे तेल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा।
कैग ने कहा, ‘‘जरूरत से कम पानी डालने से ओएनजीसी को लेखा अवधि (2014-15 से 2018-19) के दौरान 7,802.50 करोड़ रुपये मूल्य के कच्चे तेल के उत्पादन का नुकसान हुआ। इससे भारत सरकार को सांविधिक शुल्कों के रूप में राजस्व में 3,474.29 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।’’
कैग ने कहा कि इस नुकसान को उत्पादन टलना नहीं कहा जा सकता। यह कच्चे तेल का स्थायी नुकसान है। इसके अलावा इस तेल के थोड़े हिस्से के दोहन के लिए भी अतिरिक्त निवेश की जरूरत होगी। ‘‘इसके लिये आर्थिक नजरिये से समीक्षा की भी आवश्यकता है।’’
ओएनजीसी के कुल उत्पादन में मुंबई हाई, नीलम और हीरा क्षेत्रों की हिस्सेदारी करीब 59 प्रतिशत है। ये फील्ड क्रमश: 1976 और 1984 में परिचालन में आये और पुराने पड़ने के साथ इनसे उत्पादन कम हो रहा है।
कैग ने कहा कि कुओं में पानी पर्याप्त नहीं डाला जाना कच्चे तेल के उत्पादन में कमी का एक प्रमुख कारण है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट अवधि के दौरान कम पानी डालने के कारण 37.9 लाख टन कच्चे तेल का उत्पादन नहीं किया जा सका। ‘‘इस तेल का मूल्य 11,276.79 करोड़ रुपये बैठता है। इससे ओएनजीसी को 7,802.50 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जबकि सांविधिक शुल्क को देखते हुए सरकार को राजस्व के मोर्चे पर 3,474.29 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।’’
भाषा
रमण अजय
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