नई दिल्ली: बढ़ता आयात बिल, निर्यात में सुस्ती और रुपये में गिरावट आदि फैक्टर भारत की विदेशी व्यापार संबंधी वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ा रहे हैं. ऐसे में विभिन्न एजेंसियों का अनुमान है कि पहले से ही 10 साल के उच्च स्तर पर चल रहा देश का चालू खाता घाटा (सीएडी) चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के शीर्ष 3 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा.
भुगतान संतुलन पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, सीएडी जून 2022 को समाप्त तिमाही तक बढ़कर 1.8 लाख करोड़ रुपये हो गया है जो पिछले एक दशक का उच्चतम स्तर है और इसकी तुलना केवल वित्त वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही से ही की जा सकती है जिसमें यह 1.7 लाख करोड़ रुपये यानी उस तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद का 6.75 प्रतिशत हो गया था.
हालांकि, विशुद्ध गणना के लिहाज से इस बार घाटा अधिक है, जो सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के संदर्भ में लगभग आधा है.
करेंट एकाउंट बैलेंस अनिवार्य तौर पर वस्तुओं और सेवाओं के बदले किसी देश की तरफ से भुगतान की गई राशि और उन देश को भुगतान के तौर पर मिलने वाली राशि के बीच का अंतर होता है. अगर कहा जाए कि कोई देश चालू खाते के घाटे का सामना कर रहा है तो इसका मतलब है कि उसका आयात बिल उसके निर्यात बिल से अधिक है, और जब उसका निर्यात आयात से अधिक हो जाता है तो उसे सरप्लस कहा जाता है.
मौजूदा आंकड़े दर्शाते हैं कि दुनियाभर में वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री से भारत की आय (चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही तक) उसकी खरीद की तुलना में 1.8 लाख करोड़ रुपये या उस तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 2.8 प्रतिशत तक कम रही है.
मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस की ही एक इकाई इन्वेस्टमेंट इंफॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया (आईसीआरए) का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही (दूसरा तिमाही) में सीएडी 35-40 बिलियन डॉलर (2.8 से 3.2 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच सकता है. इसके साथ ही रेटिंग एजेंसी ने यह भी अनुमान जताया है कि जीडीपी प्रदर्शन के आधार पर सीएडी इसी तिमाही में भारत की जीडीपी का 4.2 से 4.8 फीसदी रह सकता है.
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व्यापार घाटा और चीन
चालू खाते यानी देश की तरफ से अर्जित या भुगतान की गई राशि अथवा माल, सेवाओं और रेमिटेंस के इनफ्लो और आउटफ्लो पर एक गहरी नजर डालें तो पता चलता है कि भारत के चालू खाते घाटे के लिए आम तौर पर व्यापारिक माल खाते के निगेटिव बैलेंस को जिम्मेदार माना जा सकता है. भारत आमतौर पर सेवाओं और रेमिटेंस के मामले में सरप्लस रहता है जबकि माल या मूर्त वस्तुओं के व्यापार में उसे घाटे का सामना करना पड़ता है.
वित्त वर्ष 2022-23 के पहले तीन महीनों में भारत का व्यापार घाटा—माल निर्यात की तुलना में आयात अधिक—करीब 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. इस घाटे को सेवाओं के निर्यात ने जरूर कुछ हद तक घटा दिया, जिसमें 31 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सरप्लस दर्ज किया गया था. इसके अलावा दूसरे स्रोत खासकर रेमिटेंस (विदेश में बसे लोगों की तरफ से अपने घर भेजे गए पैसे) से होने वाली आय करीब 22.9 बिलियन डॉलर रही.
यह डेटा स्पष्ट तौर पर यही दर्शाता है कि भारत में चालू खाता घाटे की असल समस्या यह है कि शुद्ध माल का आयात अनुपातहीन रहता है.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के डेटा से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही तक, भारत का व्यापार घाटा पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है.
वित्त वर्ष 2021-22 की पहली दो तिमाहियों में, भारत ने 76 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा दर्ज किया था, जो वित्त वर्ष 2022-23 की पहली दो तिमाहियों में बढ़कर 148 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है.
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चालू वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों में भारत का आयात तो 38.5 प्रतिशत बढ़ा जबकि निर्यात के मामले में आंकड़ा मात्र 17 प्रतिशत ही बढ़ा. इस दौरान सेवाओं के जरिये हासिल सरप्लस केवल 19 प्रतिशत (51.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 61.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक ही बढ़ा जो कि व्यापारिक माल के आयात बिल को पूरा करने में खर्च अतिरिक्त डॉलर की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं है.
इस घाटे का एक बड़ा हिस्सा चीन के साथ व्यापार पर केंद्रित रहा है, जो विशेषज्ञों के लिए चिंता का एक विषय है.
दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी की सीनियर फेलो राधिका पांडे कहती हैं, ‘भारत के व्यापार को अलग नज़रिये से देखने पर पता चलता है कि 2021-22 में कुल व्यापारिक घाटे में करीब 40 फीसदी योगदान अकेले चीन के साथ व्यापार घाटे का था. आयात के एक बड़े हिस्से के लिए किसी एक देश पर निर्भर रहना चिंता का विषय है. चीन के साथ व्यापार घाटा 2020-21 में 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2021-22 में 73 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.’
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‘चालू खाता घाटे में स्थिरता की उम्मीदें बरकरार’
आईसीआरआर वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में सीएडी का आंकड़ा जीडीपी के 4.2 से 4.8 प्रतिशत तक होने का अनुमान लगाने के साथ यह उम्मीद भी जताई है कि चालू वित्त वर्ष के अंत तक समग्र चालू खाता घाटा औसतन जीडीपी के लगभग 3.1 प्रतिशत तक रह सकता है.
आईसीआरए ने यह अनुमान इस आधार पर लगाया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में कमोडिटी की कीमतों में नरमी की उम्मीद है, और निर्यात सीजन के भी जोर पकड़ने की उम्मीद है, जिसका मतलब होगा कि वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही में चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 2.6 प्रतिशत तक घट सकता है.
आईसीआरए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘हमारा अनुमान है सीएडी वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में 35-40 बिलियन अमेरिकी डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद के 4.2 से 4.8 प्रतिशत के बीच पहुंच जाएगा.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हालांकि, हम थोड़े सतर्क लेकिन आशावादी हैं कि कमोडिटी कीमतों में नरमी और निर्यात सीजन में आने वाली मजबूती की बदौलत सीएडी वित्त वर्ष 2023 की दूसरी छमाही में जीडीपी के 2.6 प्रतिशत तक घट जाएगा. हालांकि वित्त वर्ष 2023 की दूसरी छमाही में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी से माल और सेवाओं के निर्यात में कमी की आशंका बनी हुई है.
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि भारत का औसत सीएडी 2021 में 1.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 3.5 फीसदी हो जाएगा. वहीं एसबीआई का अनुमान है कि यह हर हाल में 3 प्रतिशत के भीतर ही रहेगा. कुल मिलाकर, यदि सब कुछ सुचारू ढंग से चलता रहा, तो भारत का चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक लगभग 3 प्रतिशत के आसपास रह सकता है, लेकिन निश्चित तौर पर यह सब अभी भी प्रचलित व्यापक आर्थिक संकेतकों पर निर्भर करेगा.
यह पूछे जाने पर कि क्या 3 प्रतिशत मार्क को एक चिंता के तौर पर देखा जाना चाहिए, दिल्ली स्थित थिंक टैंक नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के सीनियर विजिटिंग फेलो बोर्नाली भंडारी का कहना था कि उनकी राय में घाटे को पूरा करने के लिए वित्तीय स्थिरता अधिक मायने रखती है.
उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘कोई भी कदम उठाए जाने से पहले ग्लोबल ग्रोथ की संभावनाओं, राजकोषीय घाटे, ऋण, ग्रोथ रेट और विदेशी प्रवाह जैसे फैक्टर्स को एक साथ मिलाकर देखना होगा. अन्य देशों की तुलना में ग्रोथ को लेकर हमारी संभावनाएं अपेक्षाकृत आशावादी हैं, विदेशी मुद्रा भंडार भी ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है, भले ही राजकोषीय घाटा बहुत अधिक है. अगर तमाम फैक्टर मिलाकर देखें तो लगता है कि देश का चालू खाता घाटा फिलहाल स्थिर है.’
हालांकि, राधिक पांडे आगाह करती है कि इनमें से कुछ संकेतकों, जैसे कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, और उच्च चालू खाता घाटे से उभरने की क्षमता का असर कितना ज्यादा होगा यह इस पर भी निर्भर करेगा कि आरबीआई अपने मुद्रा प्रबंधन को कैसे संभालता है. उन्होंने कहा, ‘चालू खाता घाटा बढ़ने से रुपये पर भी दबाव पड़ेगा.’
पांडे ने कहा, ‘मौद्रिक नीति कड़े होने के बीच विदेशी पूंजी के आउटफ्लो के साथ अगर आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार में आक्रामक ढंग से दखल का विकल्प चुनता है तो विदेशी मुद्रा भंडार से उल्लेखनीय निकासी हो सकती है.’
अनुवाद: रावी द्विवेदी
संपादन: इन्द्रजीत
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