कोलंबो, 22 जून (भाषा) श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने बुधवार को संसद में कहा कि भारत द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता ‘‘धर्मार्थ दान’’ नहीं है और देश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।
उन्होंने कहा कि इन ऋणों को चुकाने की योजना होनी चाहिए।
श्रीलंका 1948 में अपनी आजादी के बाद से सबसे भीषण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जिसके चलते वहां भोजन, दवा, रसोई गैस और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत हो गई है।
विक्रमसिंघे ने संसद को बताया, ‘‘हमने भारतीय ऋण सहायता के तहत चार अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज लिया है। हमने अपने भारतीय समकक्षों से अधिक ऋण सहायता का अनुरोध किया है, लेकिन भारत भी इस तरह लगातार हमारा साथ नहीं दे पाएगा। यहां तक कि उनकी सहायता की भी अपनी सीमाएं हैं। दूसरी ओर, हमारे पास भी इन ऋणों को चुकाने की योजना होनी चाहिए। ये धर्मार्थ दान नहीं हैं।’’
उन्होंने आर्थिक संकट का मुकाबला करने के लिए सरकार द्वारा अब तक किए गए उपायों के बारे में संसद को बताया।
प्रधानमंत्री ने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उच्च पदस्थ अधिकारियों का एक दल स्थानीय आर्थिक स्थितियों का आकलन करने के लिए बृहस्पतिवार को कोलंबो पहुंचने वाला है।
विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका अब केवल ईंधन, गैस, बिजली और भोजन की कमी से कहीं अधिक गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से पतन का सामना करना पड़ा है। आज हमारे सामने यही सबसे गंभीर मुद्दा है। इन मुद्दों को केवल श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करके ही सुलझाया जा सकता है। ऐसा करने के लिए, हमें सबसे पहले विदेशी मुद्रा भंडार के संकट का समाधान करना होगा।’’
विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका की एकमात्र उम्मीद अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से है।
भाषा पाण्डेय रमण
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