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Friday, 22 November, 2024
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भारत चाहता है कि रुपया ग्लोबल बने, लेकिन रुपये की कम मांग और चीन के युआन की बढ़त इसमें रुकावट हैं

भारत का सख्त पूंजी नियंत्रण, रुपये का प्रबंधन और महत्वपूर्ण रूप से, वैश्विक निर्यात का एक छोटा हिस्सा इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बनाने की इच्छा के विपरीत है.

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हाल के वर्षों में, क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बेहतर बनाने के साधन के रूप में व्यापार चालान (Trade Invoicing) और सेटलमेंट में गैर-यूएसडी मुद्राओं के उपयोग पर विचार करने के बारे में चर्चा हुई है. रूस पर प्रतिबंध लगाने और अन्य हालिया भू-राजनीतिक घटनाक्रमों ने वैकल्पिक मुद्राओं को खोजने की तात्कालिकता या आवश्यकता बढ़ा दी है, जिनका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के चालान (Invoicing) के लिए किया जा सकता है और मॉनिटरी अधिकारियों द्वारा विदेशी मुद्रा के रूप में रखा जा सकता है.

इस पृष्ठभूमि में, रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर आरबीआई द्वारा नियुक्त पैनल एक स्वागत योग्य कदम है. पैनल ने भारतीय रुपये को विश्व स्तर पर अधिक मान्यता प्राप्त करने और अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में उपयोग किए जाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के उद्देश्य से कई अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक उपाय सामने रखे हैं.

अधिक व्यापक रूप से, पैनल भारत के प्रतिबंधात्मक व्यापार (Restrictive Trade) और पूंजी नियंत्रण ढांचे की समीक्षा की सिफारिश करता है. रुपये को वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय बनने के लिए, सभी तरह से उचित कदम उठाने की ज़रूरत है: फ्री कनवर्टिबिलिटी, पूंजी के इनफ्लो और आउटफ्लो को नियंत्रित करने वाली नीतियों की सुनिश्चितता, बेहतर वित्तीय बाजार और वैश्विक व्यापार में एक बड़ा हिस्सा.

रुपये में ट्रेड सेटलमेंट में बाधाएं

शॉर्ट-टर्म में, ग्रुप ने भारतीय रुपये और स्थानीय मुद्राओं में इन्वॉयसिंग, सेटलमेंट और पेमेंट के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था पर प्रस्तावों की जांच करने, नॉन-रेजीडेंट्स के लिए रुपया खाते (Rupee Account) खोलने को प्रोत्साहित करने, देशों के साथ भारतीय भुगतान प्रणाली के एकीकरण और स्थानीय मुद्रा व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए स्वैप व्यवस्था को चालू करने के लिए एक मानक दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है.

अन्य अल्पकालिक उपायों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश व्यवस्था को तर्कसंगत बनाना और वैश्विक बांड सूचकांकों (Global Bond Indices) में सरकारी प्रतिभूतियों को शामिल करने की सुविधा शामिल है.

आरबीआई द्वारा 11 जुलाई, 2022 को एक सर्कुलर के माध्यम से भारतीय रुपये में ट्रेड के इनवॉयसिंग, पेमेंट और सेटलमेंट की व्यवस्था को सक्षम बनाने के बाद रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में तेजी आई. इस सिस्टम के तहत, ओवरसीज़ बैंकों को स्थानीय बैंकों में विशेष रुपया खाते (Special Rupee Accounts) खोलने की अनुमति है.

हाल ही में, भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने द्विपक्षीय स्तर पर रुपये और दिरहम के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली (Local Currency Settlement System) को बढ़ावा देने के लिए एक समझौता किया. जबकि कई बैंकों ने सीमा पार व्यापार में रुपये की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए 18 देशों के साथ विशेष रुपया खाते (Special Rupee Accounts) खोले हैं, लेकिन अब तक प्रगति सीमित है.

भारत का सख्त पूंजी नियंत्रण, रुपये का प्रबंधन और, सबसे महत्वपूर्ण बात, वैश्विक निर्यात का एक छोटा हिस्सा रुपये को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बनाने की आकांक्षाओं के विपरीत है.

Graphic by Manisha Yadav, ThePrint
ग्राफिकः मनीषा यादव । दिप्रिंट

रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में चुनौतियां तब उभरकर सामने आईं जब रूस ने भारत से रियायती रूसी तेल के लिए युआन में भुगतान करने को कहा.

भारत से पर्याप्त आयात की कमी के कारण रूस को रुपये में भुगतान नहीं हो पा रहा था. जबकि भारत द्वारा रूस को किया जाने वाला निर्यात थोड़ा गिर गया है, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से रूस से आयात बढ़ गया है. रूसी अधिकारी रुपये रखने में सहज नहीं हैं.


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दूसरी ओर, कैलेंडर वर्ष के पहले तीन महीनों के दौरान रूस को चीन का निर्यात बढ़ गया. भारत से युआन में भुगतान की मांग करने से उन्हें चीनी आयात के लिए युआन में पेमेंट करना आसान हो जाता.

मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में चीन की कोशिश

भले ही चीन के पास सख्त पूंजी नियंत्रण उपाय हैं, फिर भी वह रेनमिनबी के अंतर्राष्ट्रीय उपयोग पर जोर देने की कोशिश कर रहा है.

साफ तौर पर एक लाभ यह है कि चीन का अधिकांश देशों के साथ ट्रेड सरप्लस है. यह द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय व्यवस्थाओं (Bilateral Currency Swap Arrangements) पर एग्रीमेंट के माध्यम से रेनमिनबी के उपयोग को और बढ़ावा दे रहा है. हाल ही के शोध कार्य से पता चलता है कि चीन के साथ करेंसी स्वैप पर एग्रीमेंट करने से द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है और कुल व्यापार में चीनी हिस्सेदारी बढ़ सकती है. इसके अलावा, करेंसी स्वैप उन देशों पर अधिक सकारात्मक प्रभाव डालती हैं जिनके पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है.

रेनमिनबी को 2016 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) में शामिल किया गया था. 2022 में, एसडीआर में रेनमिनबी का वेटेज 10.92 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.28 प्रतिशत कर दिया गया, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त में रेनमिनबी की अधिक भूमिका दर्शाता है.

आरबीआई के पैनल के अनुसार, स्थानीय मुद्रा व्यापार और द्विपक्षीय/बहुपक्षीय स्वैप व्यवस्था को संस्थागत और मानकीकृत करने की दिशा में प्रयास समानांतर रूप से चलने चाहिए. जिन देशों के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस है, उनके पास रुपये की लिक्विडिटी तक पहुंच होनी चाहिए ताकि वे रुपये में भुगतान कर सकें.

इसी तरह, जिन देशों के पास रुपये का अधिशेष है, उनके पास सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड, एफडीआई और Interest-bearing Deposits वाली जमा आदि में रुपये का निवेश करने के लिए रास्ते का एक तरीका होना चाहिए. इसके लिए पूंजी नियंत्रण उपायों की मौलिक समीक्षा की आवश्यकता होगी, और नॉन-रेज़ीडेंट्स के लिए ऑफशोर आईएनआर खाते खोलने, अन्य मुद्राओं में निर्यात के बराबर आईएनआर निर्यात के उपचार जैसे अन्य उपायों की आवश्यकता होगी.

रुपये के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए पूंजी नियंत्रण उपायों की समीक्षा

भारत ने विदेशी पूंजी के इनफ्लो और आउटफ्लो पर प्रतिबंधों को आसान बनाने में काफी प्रगति की है, लेकिन और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. विशेष रूप से, ग्रुप ऋण में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के लिए व्यवस्था को पुनर्व्यवस्थित करने की सिफारिश करता है.

ऋण में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) को विभिन्न चैनलों के माध्यम से अनुमति दी जाती है: मीडियम ट्रम फ्रेमवर्क, पूरी तरह से Accessible Route और वॉलन्टरी रिटेंशन रूट.

चैनलों की बहुलता ने निवेश व्यवस्था को जटिल बना दिया है. यह एफपीआई द्वारा निवेश सीमा के कम उपयोग में भी परिलक्षित होता है. आरबीआई की रिपोर्ट में सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड दोनों में विदेशी निवेश के लिए व्यवस्था को सरल बनाने के उपायों की सिफारिश की गई है.

Graphic by Manisha Yadav, ThePrint
ग्राफिकः मनीषा यादव । दिप्रिंट

विदेशों में स्थानीय मुद्रा बांड जारी करना मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण का एक महत्वपूर्ण तत्व है. मसाला बॉन्ड के नाम से रुपये में मूल्यवर्ग वाले (Rupee Denominated) बांड भारतीय संस्थाओं द्वारा भारत के बाहर जारी किए जाते हैं. ग्रुप मसाला बांड पर 5 प्रतिशत विदहोल्डिंग टैक्स की समीक्षा की सिफारिश करता है क्योंकि यह विदेशी निवेशकों के लिए बॉन्ड में रुचि कम हो जाती है. इसके अलावा, क्रेडिट और विनिमय दर जोखिम से बचाव के सीमित रास्तों की वजह से भी विदेशी निवेशकों की इसमें रुचि कम होती है.

अधिक अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए पेमेंट सिस्टम का लाभ लेना

इस क्षेत्र में भारत की बड़ी उपलब्धियों में से एक इसकी भुगतान प्रणाली है. इन्हें भागीदार देशों तक विस्तारित करने की आवश्यकता है. भुगतान प्रणालियों के जुड़ाव से सीमा पार रेमिटेंस का अधिक लागत प्रभावी हस्तांतरण सक्षम हो सकता है और रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

फरवरी 2023 में, RBI और मॉनिटरी अथॉरिटी ऑफ सिंगापुर (MAS) ने दोनों देशों के निवासियों के लिए रेमिटेंस के लागत-कुशल (cost-efficient) ट्रांसफर को सक्षम करने के लिए यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) और PayNow को जोड़ा. हाल ही में भारत और फ्रांस, फ्रांस में UPI का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं. यूपीआई भुगतान स्वीकार करने वाले कुछ अन्य विदेशी बाजारों में मलेशिया, यूएई, नेपाल और यूके शामिल हैं.

ऑफशोर ब्रांच के जरिए रुपये में बैंकिंग सेवाओं का दायरा बढ़ाना

बैंकों को ऑफशोर मार्केट में हर तरह की बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने की अनुमति दी जानी चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन में रुपये की अधिक भूमिका को सक्षम बनाने के लिए रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है.

(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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