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Saturday, 4 May, 2024
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इंडिया-अमेरिका व्यापार संबंध गहरा हो रहा है, पर मोदी को संरक्षणवादी नीतियों में ढील देना पड़ सकता है

भारत और अमेरिका दोनों को व्यापार विविधीकरण पहल से लाभ होगा और चीन की दबावपूर्ण कार्रवाइयों के बारे में उनकी साझा चिंताएं उनके आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को और मजबूत कर सकती हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की आधिकारिक यात्रा भारत-अमेरिका आर्थिक जुड़ाव को गहरा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है. जबकि पिछले कुछ वर्षों में, बढ़ता व्यापार और पूंजी प्रवाह भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों को दर्शाता है, चीन की कार्रवाइयों के बारे में उनकी सामान्य चिंता उनके आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को और मजबूत कर सकती है.

व्यापार के मोर्चे पर, दोनों देशों को व्यापार विविधीकरण पहल से लाभ होगा. भारत, चीन के साथ अपने जोखिम को कम करने के लिए अमेरिका के साथ अपने व्यापार संबंधों को गहरा करने का प्रयास करेगा. जबकि अमेरिका के साथ भारत व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) की स्थिति में है, चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और इसके व्यापार घाटे का मुख्य स्रोत है.

अमेरिका के लिए, भारत व्यापार के विशाल अवसर प्रदान करता है, क्योंकि यह सबसे बड़े उपभोक्ता बाजारों और सबसे तेजी से बढ़ती बाजार अर्थव्यवस्था में से एक है. चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका भी भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहेगा.

अमेरिकी क्षेत्र में चीन के जासूसी गुब्बारे और ताइवान के प्रति अमेरिका के बढ़ते समर्थन के कारण दोनों महाशक्तियां कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आमने-सामने आ गई हैं.

भारत-अमेरिका मर्केंडाइज़ ट्रेड

अमेरिका के लिए भारत का आउटबाउंड शिपमेंट तेज गति से बढ़ रहा है. 2009-10 में अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. यह 2019-20 में बढ़कर 17.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 2022-23 में 28.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

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2019-20 से 2022-23 तक अमेरिका को भारत का निर्यात लगभग 48 प्रतिशत बढ़ गया. भारत के कुल व्यापारिक निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत से अधिक है.


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पिछले कुछ वर्षों में व्यापार की संरचना भारत के लिए अनुकूल हो गई है. 2009-10 में, इंजीनियरिंग सामान और इलेक्ट्रॉनिक सामान के मामले में अमेरिका के मुकाबले भारत की स्थिति व्यापार घाटे की थी, जिसका अर्थ है कि भारत का इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक सामान का आयात भारत के निर्यात से अधिक था. 2022-23 तक अमेरिका के साथ इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक सामान के मामले में इंडिया ट्रेड सरप्लस की स्थिति में है.

इसके विपरीत, 2022-23 में चीन को भारत का निर्यात लगभग 28 प्रतिशत घटकर 15.32 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष में आयात 4.16 प्रतिशत बढ़कर 98.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. वित्त वर्ष 2023 में व्यापार अंतर बढ़कर 83.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया, जबकि 2021-22 में यह 72.91 बिलियन अमेरिकी डॉलर था.

 

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट
Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

इनबाउंड और आउटबाउंड निवेश

अमेरिका भी भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रमुख स्रोतों में से एक है. हालांकि, एफडीआई इक्विटी प्रवाह का पैटर्न असमान रहा है.

2014-15 में अमेरिका से निवेश 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. ये 2020-21 में बढ़कर 13.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. 2021-22 में, अमेरिका से एफडीआई इक्विटी प्रवाह कम होकर 10.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. 2022-23 में, भारत में कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह वित्त वर्ष 22 में 58.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 23 में 46.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. एफडीआई प्रवाह में गिरावट का एक प्रमुख कारण अमेरिका से प्रवाह में मंदी थी जो 2022-23 में गिरकर 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते आर्थिक संबंध अमेरिका में भारतीय कंपनियों के बढ़ते निवेश में भी दिखते हैं. अमेरिका में भारतीय उद्योग के फुटप्रिंट पर कन्फेडेरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज़ (सीआईआई) की इंडियन रूट्स, अमेरिकन सॉइल नामक रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण के अनुसार, 163 कंपनियों ने सभी 50 अमेरिकी राज्यों के माध्यम से 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है.

भारतीय कंपनियों ने उन राज्यों में 4,25,000 से अधिक लोगों को रोजगार दिया है जहां उनके पास ठोस निवेश हैं. वे फार्मास्यूटिकल्स और हेल्थ केयर; सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार; उत्पादन; सेवाएं (वित्तीय, कानूनी, रसद, डिज़ाइन सहित); मोटर वाहन; भोजन और कृषि; पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी; ऊर्जा व अन्य क्षेत्रों में ऑपरेट करते हैं.

2020 में जारी रिपोर्ट के पिछले संस्करण में कहा गया था कि 155 कंपनियों ने 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था और 125,000 नौकरियां पैदा की थीं. जबकि 2020 के बाद से आठ नई कंपनियों ने निवेश किया है, लेकिन मौजूदा कंपनियों के एक बड़े हिस्से द्वारा अमेरिका में अपने ऑपरेशन को बढ़ाने की वजह से भी है.

इस साल की शुरुआत में, एयर इंडिया ने 200 से अधिक बोइंग विमानों की खरीद की घोषणा की – जिसके बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि यह एक ऐतिहासिक डील है जो कि “44 राज्यों में दस लाख से अधिक अमेरिकी नौकरियों को सपोर्ट करेगा”.

वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर फैक्टशीट के अनुसार, भारतीय कंपनियों ने 2022-23 में 13.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल आउटबाउंड प्रत्यक्ष निवेश किया. इसमें से अमेरिका को 2 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश मिला. अप्रैल 2021-मई 2023 के बीच अमेरिका में निवेश कुल आउटबाउंड प्रत्यक्ष निवेश का 17 प्रतिशत था.

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भारतीय पूंजी बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के रूप में विदेशी प्रवाह पर भी अमेरिका का प्रभुत्व है. मई 2023 तक इक्विटी, डेट (Debt) और हाइब्रिड इंस्ट्रूमेंट्स में अमेरिकी निवेशकों की टोटल एसेट अंडर कस्टडी (एयूसी) 20.8 लाख करोड़ रुपये थी. सभी एफपीआई द्वारा एयूसी 52.95 लाख करोड़ रुपये है.

महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल

दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों द्वारा शुरू की गई महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (आईसीईटी) पर पहल महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर अमेरिका और भारत के बीच सहयोग के लिए एक रूपरेखा के रूप में कार्य करती है.

इस अंब्रेला फ्रेमवर्क के तहत, क्वांटम कम्युनिकेशन, भारत में सेमीकंडक्टर ईको सिस्टम का निर्माण, रक्षा सहयोग में तेजी लाने, कॉमर्शियल स्पेस अवसरों की खोज, और मौजूदा व नए रिसर्च अवसरों और पार्टनरशिप को को बढ़ाने की संभावना है.

मार्च में, दोनों देशों ने सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए. यह भारत के लिए फायदेमंद है, खासकर देश में सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार की 10 अरब अमेरिकी डॉलर की प्रोत्साहन योजना के संदर्भ में.

प्रधानमंत्री की यात्रा इस क्षेत्र में निवेश और व्यापारिक संबंधों को आकर्षित करने के अवसरों को और तलाश सकती है.

चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका भारत के साथ संबंधों को गहरा करने का इच्छुक है. अमेरिका भारत पर 30 सशस्त्र ड्रोन्स की खरीद से संबंधित सौदे को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए दबाव डाल रहा है. इस सौदे पर भारत को लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च आएगा और इससे भारत की निगरानी मशीनरी को बढ़ाने में मदद मिलेगी.

कुछ विवादास्पद मुद्दे बने हुए हैं

अमेरिका ने भारत की संरक्षणवादी व्यापार नीतियों और व्यापार उदारीकरण की नीति को उलटने पर चिंता व्यक्त की है. अमेरिका भारत से व्यापार और निवेश प्रतिबंधों में ढील देने की प्रतिबद्धता चाहता है. अमेरिका संभवतः भारत को अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) – 14 देशों के समूह – के ट्रेड पिलर में शामिल होने के लिए प्रेरित करेगा.

भारत ने लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं, स्वच्छ ऊर्जा के अवसरों का दोहन और भ्रष्टाचार से निपटने पर आईपीईएफ के तीन स्तंभों पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन पर्यावरण, श्रम और सार्वजनिक खरीद जैसे मुद्दों पर बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं पर अपनी असुविधा के कारण ट्रेड पिलर से बाहर हो गया है.

भारत का मानना है कि पर्यावरण और श्रम पर प्रतिबद्धताएं विकासशील देशों के साथ भेदभाव कर सकती हैं. ट्रेड पिलर के तहत कृषि बाजारों तक मुफ्त पहुंच का भी भारत विरोध करता है.

दोनों देश अपने ट्रेड और इन्वेस्टमेंट संबंधों में अधिक टेक्नॉलजी ओरिएन्टेशन देखना चाहेंगे. यह देखना बाकी है कि तेजी से बदलते भू-राजनीतिक माहौल के बीच दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता के साथ अपने घरेलू हितों को कैसे संतुलित करेंगे.

(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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