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Saturday, 21 December, 2024
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उच्च वृद्धि, धीमा विकास – मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था को क्या नुकसान पहुंचा रहा है

मध्यप्रदेश का विकास कृषि से प्रेरित है जबकि उद्योग पिछड़ गया है. शिक्षा की गुणवत्ता और मातृ मृत्यु दर जैसे सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर राज्य का प्रदर्शन खराब है.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था 2011-12 और 2021-22 के बीच औसतन लगभग 6.6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ी है, जो इस अवधि के दौरान 1 ट्रिलियन रुपए और उससे अधिक की राज्य जीडीपी (जीएसडीपी) वाले राज्यों में चौथी सबसे ऊंची वृद्धि दर है, ऐसा दिप्रिंट को एक विश्लेषण में पता चला है.

हालांकि, विकास की इस उच्च दर ने इसे एक औद्योगिक राज्य नहीं बनाया है. इसके अलावा, मध्य प्रदेश अब अधिक कृषि प्रधान है. लेकिन इसका पांच पड़ोसी राज्यों और राष्ट्रीय औसत की तुलना में कई सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय संकेतकों पर खराब प्रदर्शन किया है.

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय 2011-12 के आधार वर्ष का उपयोग करके राज्य के घरेलू उत्पादों (अलग-अलग राज्यों का उत्पादन) की गणना करता है. चूंकि 2011-12 से पहले की अवधि के लिए राज्यों का आधार मूल्य जिस पर वास्तविक/मुद्रास्फीति-समायोजित वृद्धि की गणना की जाती है, उपलब्ध नहीं है, दिप्रिंट का विश्लेषण 2011-12 और 2021-22 के बीच की अवधि तक सीमित है.

इस अवधि के दौरान, मध्य प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (राज्य में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य) में प्रति वर्ष औसतन 6.65 प्रतिशत की वृद्धि हुई – जो गुजरात (8.35 प्रतिशत), कर्नाटक (7.33 प्रतिशत) और हरियाणा (6.7 प्रतिशत) के बाद चौथी सबसे बड़ी वृद्धि दर है.

अपने पांच पड़ोसी राज्यों से तुलना करने पर, एमपी की जीएसडीपी वृद्धि गुजरात के बाद दूसरे स्थान पर है, जिसमें राजस्थान (5.45 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (5.41 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (5.22 प्रतिशत) और महाराष्ट्र (4.71 प्रतिशत) पीछे हैं.

लेकिन यह वृद्धि प्रति व्यक्ति आय के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति को नहीं दर्शाती है. 1 ट्रिलियन रुपए और उससे अधिक के जीएसडीपी वाले 21 राज्यों में से, यह 2011-12 में 18वें स्थान पर था – छत्तीसगढ़, बिहार और उत्तर प्रदेश से ऊपर थे. तब से 1.2 लाख रुपए प्रति व्यक्ति आय के साथ राज्य 2021-22 तक 16वीं रैंक तक पहुंचने के लिए केवल दो सीढ़ियां ही ऊपर चढ़ सका.

मंत्रालय के संशोधित अनुमान के अनुसार, राष्ट्रीय औसत प्रति व्यक्ति आय 1.48 लाख रुपए है.

अपने पड़ोसियों में, मध्य प्रदेश इस मामले में छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान इस फेहरिस्त में इससे आगे हैं.

और कृषि विकास से राज्य को अधिक आय मिली है, हालांकि यह आवश्यक रूप से सर्वांगीण विकास (ऑल राउंड डेवलपमेंट) के बराबर नहीं है.

सोनीपत स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर विकास वैभव कहते हैं, “ऐतिहासिक विकासात्मक अनुभवों के आधार पर, आर्थिक विकास का मार्ग कृषि द्वारा नहीं बल्कि उद्योग या सेवाओं द्वारा संचालित किया गया है. यह व्यापक रूप से माना जाता है कि कृषि उत्पादकता, उद्योग या सेवाओं की तुलना में उतनी तेजी से नहीं बढ़ती है. परिणामस्वरूप, कृषि मजदूरी और उस पर निर्भर लोगों की आजीविका में तेजी से वृद्धि नहीं हो सकती है.”

वह आगे कहते हैं, “गृह राज्य में कम औद्योगीकरण का मतलब कुशल या अर्ध-कुशल मजदूरों के पास बेहतर अवसरों की तलाश में अन्य औद्योगिक केंद्रों की ओर पलायन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.”


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अनाज में बसा है मध्य प्रदेश का विकास

अब सवाल यह उठता है कि जीएसडीपी के मामले में चौथी सबसे ऊंची विकास दर होने के बावजूद मध्य प्रदेश अभी भी उसकी तुलना में इतनी समृद्ध क्यों नहीं हुआ है? इसका जवाब उस विकास पथ में बसा है जिसे राज्य ने कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए चुना है. आंकड़ों से पता चलता है कि मध्य प्रदेश अब अपनी आय के लिए एक दशक पहले की तुलना में कृषि पर अधिक निर्भर है. अपने पड़ोसियों की तुलना में, 2011 के बाद से इसमें अभूतपूर्व कृषि विकास देखा गया है.

ऊपर ग्राफ़ में, कृषि से संबंधित उत्पादन को प्राइमरी सेक्टर गिना जाता है, जबकि विनिर्माण सेकेंडरी और सेवाएं टर्शियरी (तृतीयक) सेक्टर के अंतर्गत आती हैं.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, इस अवधि के दौरान राज्य में खाद्यान्न उत्पादन दोगुना हो गया. 2011-12 में, राज्य में लगभग 149 लाख टन खाद्यान्न (चावल, गेहूं, मोटे अनाज, दालें) की खेती होती थी, जो 2021-22 तक बढ़कर लगभग 349 लाख टन हो गई – जो सालाना चक्रवृद्धि लगभग 9.12 प्रतिशत की बढ़ोतरी है.

इसके विपरीत, उसका कोई भी पड़ोसी राज्य इस सफलता की बराबरी नहीं कर सका. इस अवधि के दौरान गुजरात में खाद्यान्न उत्पादन 1.72 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 1.58 प्रतिशत, राजस्थान में 1.02 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 0.96 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है.

कृषि उत्पादन भी अब मध्य प्रदेश की आय का एक बड़ा हिस्सा है.

2011-12 में राज्य द्वारा अर्जित प्रत्येक 100 रुपए के लिए, उद्योग का योगदान 27 रुपए था, जबकि कृषि का योगदान 34 रुपए था. 2021-22 तक, उद्योग की हिस्सेदारी घटकर 19 रुपए हो गई, वहीं कृषि से राज्य की कमाई प्रति 100 रुपए पर बढ़कर 48 रुपए हो गई थी.


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लेकिन उद्योग जगत पिछड़ गया

दूसरे शब्दों में कहें तो मध्य प्रदेश में कृषि के विकास की तीव्र गति अन्य प्रमुख आय-सृजन क्षेत्र की कीमत पर आई — उद्योग, जिसमें विनिर्माण, निर्माण और बिजली उत्पादन और गैस जैसी भौतिक उपयोगिताएं (फिजिकल यूटिलिटीज) शामिल हैं.

विनिर्माण, जो उद्योग की रीढ़ है, राज्य में पिछड़ा हुआ है.

विनिर्माण उत्पादन की वृद्धि के मामले में, मध्य प्रदेश का प्रदर्शन अपने पड़ोसी राज्यों में से सिर्फ महाराष्ट्र से बेहतर है, जिसने इस 10 साल की अवधि में 3.32 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि देखी, जबकि मध्य प्रदेश की 6.22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दूसरी ओर, गुजरात में विनिर्माण इस दशक में हर साल 10 प्रतिशत की दर से बढ़ा, इसके बाद छत्तीसगढ़ (7 प्रतिशत), राजस्थान (6.97 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (6.37 प्रतिशत) ने लिस्ट में अपनी जगह बनाई है.

यह भी उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र एक अत्यधिक औद्योगिकीकृत राज्य है, जिसके उत्पादन में उद्योग का हिस्सा 25 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश में यह 17 प्रतिशत है, इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय 2.1 लाख रुपये है – जो मध्य प्रदेश से दोगुनी है.

सामाजिक विकास संकेतकों (सोशल डेवलपमेंट इंडिकेटर) पर भी मध्य प्रदेश का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुसार खराब रहा है, जिसका मतलब यह हो सकता है कि राज्य की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की कृषि-आधारित वृद्धि के परिणामस्वरूप जरूरी नहीं कि राज्य के लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ हो.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 (2019-21) के अनुसार, मध्य प्रदेश में 15-49 आयु वर्ग की एक तिहाई (29 प्रतिशत) महिलाओं ने 10 साल से अधिक की स्कूली शिक्षा हासिल की है, जबकि राष्ट्रीय औसत 41 प्रतिशत है. इस डेटा आधार पर, मध्य प्रदेश अपने सभी पड़ोसी राज्यों से पीछे है; महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में, 10 साल से अधिक की स्कूली शिक्षा पूरी करने वाली महिलाओं का प्रतिशत क्रमशः 50 प्रतिशत और 39 प्रतिशत था.

अपने पड़ोसियों की तुलना में, मध्य प्रदेश में मातृ मृत्यु अनुपात (प्रति 1 लाख जीवित जन्मों पर मृत्यु की संख्या) 173 है, जो राष्ट्रीय औसत 97 से कहीं अधिक है.

इसके अलावा, इसने नीति आयोग के 2019-20 स्वास्थ्य सूचकांक में 37 अंक प्राप्त किए, जो केवल बिहार और उत्तर प्रदेश से ऊपर है. इसने नीति आयोग के 2016-17 स्कूल शैक्षिक गुणवत्ता सूचकांक में भी 47 के स्कोर के साथ खराब प्रदर्शन किया – जो इसके सभी पड़ोसी राज्यों से भी बदतर है.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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