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Saturday, 21 December, 2024
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गोल्डमैन सैक्स ने मौजूदा आर्थिक संकट को बताया 2008 से बड़ा और व्यापक, वृद्धि दर का अनुमान घटाया

यह बात ऐसे समय आयी है जब जून तिमाही में वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर 5 प्रतिशत पर आ गयी. इसके बाद आरबीआई ने 2019-20 के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 6.1 प्रतिशत कर दिया है.

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मुंबई : प्रतिभूति तथा निवेश प्रबंधन से जुड़ी वैश्विक कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर नीचे जाने के जोखिम के साथ 6 प्रतिशत कर दिया है. साथ ही कहा है कि मौजूदा आर्थिक संकट 2008 से बड़ा है. उसने कहा कि देश के समक्ष खपत में गिरावट एक बड़ी चुनौती है और इसका कारण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के संकट को नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि आईएल एंड एफएस के भुगतान संकट से पहले ही खपत में गिरावट शुरू हो गयी थी.

कई लोग खपत में नरमी का कारण एनबीएफसी संकट को बता रहे हैं. एनबीएफसी में संकट सितंबर 2018 में शुरू हुआ. उस समय आईएल एंड एफएस में पहले भुगतान संकट का मामला सामने आया था. उसके बाद इन संस्थानों से खपत के लिये वित्त पोषण थम गया.

ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन सैक्स की वाल स्ट्रीट में मुख्य अर्थशास्त्री प्राची मिश्रा के अनुसार उसके विश्लेषण से पता चलता है कि खपत में जनवरी 2018 से गिरावट जारी है. यह अगस्त 2018 में आईएल एंड एफएस द्वारा चूक से काफी पहले की बात है.

उन्होंने कहा कि खपत में गिरावट कुल वृद्धि में कमी में एक तिहाई योगदान है. इसके साथ वैश्विक स्तर पर नरमी से वित्त पोषण में बाधा उत्पन्न हुई है.

यहां एक कार्यक्रम में प्राची ने कहा, ‘नरमी की स्थिति है और वृद्धि के आंकड़े 2 प्रतिशत नीचे आये हैं.’

हालांकि, उन्होंने कहा कि दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि बढ़ने की उम्मीद है. इसका कारण आरबीआई की सस्ती मौद्रिक नीति है. केंद्रीय बैंक ने प्रमुख नीतिगत दर में रिकार्ड पांच बार कटौती की है. कुल मिलाकर रेपो दर में पांच बार में 1.35 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है. फरवरी से हो रही इस कटौती के बाद रेपो दर 5.15 प्रतिशत पर आ गई है. इसके अलावा कंपनियों के कर में कटौती जैसे उपायों से भी धारणा मजबूत होगी और वृद्धि में तेजी आएगी.

अर्थशास्त्री ने कहा कि निवेश और निर्यात लंबे समय से घट रहा है लेकिन खपत में तीव्र गिरावट चिंता का नया कारण है.

उन्होंने कहा, ‘मौजूदा नरमी पिछले 20 महीने से जारी है… यह नोटबंदी या 2008 की वित्तीय संकट जैसी उन चुनौतियों से अलग है, जिसकी प्रकृति अस्थायी थी.

यह बात ऐसे समय आयी है जब जून तिमाही में वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर 5 प्रतिशत पर आ गयी. इसके बाद आरबीआई ने 2019-20 के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 6.1 प्रतिशत कर दिया है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्वबैंक जैसी एजेंसियों ने भी भारत की वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है.

श्रेई इंफ्रा फाइनेंस के चेयरमैन हेमंत कनोड़िया ने कहा कि कंपनी के शोध के अनुसार समस्या का 40 प्रतिशत कारण वैश्विक व्यापार में नरमी है. वहीं 30 प्रतिशत कमी का कारण खपत में नरमी है. शेष का कारण वित्त पोषण को लेकर बाधाएं हैं.

उन्होंने कहा कि कंपनी ने कर्ज वितरण को रोक दिया और बारिश के दिनों के लिये नकदी को रखना उचित समझा. इसके कारण निर्माण उपकरण किराये पर लेने के मामले में 30 प्रतिशत की तीव्र गिरावट आयी.

अमीरों’ की संपत्ति 9.62 प्रतिशत बढ़ी, पर संख्या घटकर 2.56 लाख रह गई

वहीं इस मंदी के दौर में भी अमीरों की सम्पत्ति बढ़ रही है. देश में अमीरों (एचएनआई) की संपत्ति की वृद्धि दर 2018 में घटकर 9.62 प्रतिशत रह गई है, जो एक साल पहले 13.45 प्रतिशत थी. हालांकि, इन अमीरों या अरबपतियों की संख्या में इस दौरान कमी आई है. एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है.

कार्वी वेल्थ मैनेजमेंट की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में बड़े अमीरों की संख्या घटकर 2.56 लाख रह गई है, जो 2017 में 2.63 लाख थी. ऐसे लोग जिनके पास 10 लाख डॉलर से अधिक का निवेश योग्य अधिशेष है बड़े अमीरों की श्रेणी में आते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन अमीरों के पास 2018 में कुल 430 लाख करोड़ रुपये की संपत्तियां थीं. 2017 में इनके पास 392 लाख करोड़ रुपये की संपत्तियां थीं.

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अमीर अधिक अमीर हो रहे हैं जबकि गरीब अधिक तेजी से और गरीब हो रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीरों के पास मौजूद संपत्तियां में से 262 लाख करोड़ रुपये की वित्तीय संपत्तियां हैं जबकि शेष अचल संपत्तियां हैं. कुल मिलाकर इसका अनुपात 60:40 पर कायम है. वित्तीय संपत्तियों में सबसे अधिक 52 लाख करोड़ रुपये सीधे इक्विटी निवेश के रूप में हैं. इस वर्ग में वृद्धि 2017 के 30.32 प्रतिशत के मुकाबले 2018 में घटकर 6.39 प्रतिशत पर आ गई है.

दूसरी तरफ मियादी जमा या बांड में इन अमीरों का निवेश बढ़ा है और यह 45 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. इनमें वृद्धि 8.85 प्रतिशत की रही जो पिछले साल 4.86 प्रतिशत थी.

वित्तीय संपत्तियों में बीमा में निवेश 36 लाख करोड़ रुपये रहा जबकि बैंक जमा 34 लाख करोड़ रुपये है.

देश के अमीरों के पास सोने में निवेश 80 लाख करोड़ रुपये का है. रीयल एस्टेट क्षेत्र में उनका निवेश 74 लाख करोड़ रुपये है. एक साल पहले संपत्ति में निवेश 10.35 प्रतिशत था वहीं 2018 में यह कम होकर 7.13 प्रतिशत रह गया.

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