नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बुधवार रात को वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी सुभाष चंद्र गर्ग को बिजली मंत्रालय भेज दिया गया. अब उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना है. सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी है.
राजस्थान कैडर के 1983 बैच के आईएएस अधिकारी गर्ग का कार्यकाल ख़त्म होने में 15 महीने बाकी हैं. उन्होंने जून 2017 में आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव के रूप में पदभार संभाला था और हाल ही में कैबिनेट की नियुक्ति समिति द्वारा मार्च 2019 तक वित्त सचिव नामित किए गए थे. गर्ग अक्टूबर 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले थे.
विवादास्पद सॉवरेन बॉन्ड मुद्दे के पीछे थे गर्ग
गर्ग विदेश में सॉवरेन बॉन्ड जारी करके धन जुटाने की सरकार की बजट घोषणा में अहम भूमिका निभाने वालों में सबसे आगे थे. इस कदम की आलोचना आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी, रघुराम राजन और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन रॉय और शामिका रवि शामिल थे. कुछ लोगों ने प्रस्ताव को पेश करने के एकतरफा तरीके को भी हरी झंडी दिखाई थी.
इस निर्णय को आरएसएस से संबद्ध रखने वाले स्वदेशी जागरण मंच ने भी आलोचना की थी, जिसमें इस बात की ओर इशारा किया गया था कि इस तरीके से धन जुटाने से भारत मुद्रा बाजारों में उतार-चढ़ाव की चपेट में आ जाता है और बाहरी क्षेत्र का जोखिम बढ़ जाता है.
यह भी पढ़ें : मोदी के बाद योगी भ्रष्ट अधिकारियों को सेवानिवृत्त करने की तैयारी में
सुभाष चंद्र गर्ग के बाहर जाने के साथ सरकार सॉवरेन बॉन्ड के विवादास्पद मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल सकती है.
बिमल जालान समिति
सुभास चंद्र गर्ग भारतीय रिज़र्व बैंक के अतिरिक्त आरक्षित निधि को सरकार को हस्तांतरित करने के लिए बिमल जालान समिति में सरकार के प्रतिनिधि भी थे. गर्ग भंडार के एक बार के हस्तांतरण के पक्ष में थे. इसको बाकी पैनल का समर्थन नहीं मिला था. अंततः आरबीआई ने संसाधनों के चरण-वार हस्तांतरण की राह को चुना था.
गर्ग कम से कम दो बैठकों में शामिल नहीं हुए और यह कहा जाता है कि पैनल की अंतिम बैठक समाप्त होने से पहले ही उसे छोड़ गए थे. उनके तहत आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा अनुमानित हस्तांतरित की गयी राशि 3 लाख करोड़ रुपये से काफी कम होने की संभावना है.
विवाद नया नाता नहीं है
गर्ग सबसे मुखर नौकरशाहों में से एक रहे हैं, जो पिछले साल केंद्रीय बैंक के साथ अपनी असहमति व्यक्त करने से नहीं कतराते थे. उस दौरान जब सरकार और उर्जित पटेल के नेतृत्व वाली आरबीआई दोनों कई मुद्दों पर आपस में भिड़े थे.
गर्ग ने पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की चेतावनी के जवाब में व्यंग्यात्मक रूप से ट्वीट किया था कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं, वे बाजारों के गिरावट का सामना करती हैं.
उन्होंने में अपने ट्वीट में लिखा कि ‘रुपये का कारोबार 73 डॉलर से कम था और ब्रेंट क्रूड 73 डॉलर प्रति बैरल से नीचे, सप्ताह के दौरान बाज़ार 4 प्रतिशत से अधिक और बांड 7.8 प्रतिशत से कम हुए. बाजारों में गुस्सा देखने को मिला?
यह भी पढ़ें : नई मोदी सरकार में पांच रिटायर्ड नौकरशाह शामिल
वित्त सचिवों को अतीत में भी अन्य मंत्रालयों से हटा दिया गया था, लेकिन आमतौर पर नई सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐसा होता है. उदाहरण के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में वित्त सचिव अरविंद मायाराम को 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में स्थानांतरित किया गया था.
लेकिन गर्ग के मामले में वित्त मंत्रालय में उनकी नियुक्ति और पदोन्नति में लाभ दोनों ही मोदी सरकार द्वारा हुआ था.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)