नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) भारत अपने संशोधित विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने से पिछले आठ वर्षों में दूसरी बार बड़े अंतर से चूकने वाला है। सार्वजनिक बीमा कंपनी एलआईसी के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से 60,000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना खटाई में पड़ने से इसकी आशंका है।
चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 78,000 करोड़ रुपये जुटाने का संशोधित लक्ष्य रखा गया है। सरकार अब तक इनमें से सिर्फ 12,400 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है। इनमें से 2,700 करोड़ रुपये एअर इंडिया की बिक्री और एक्सिस बैंक में हिस्सेदारी बिक्री से 3,994 करोड़ रुपये मिले हैं।
वित्त वर्ष का अंतिम महीना शुरू हो जाने और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के आईपीओ के भी इस महीने आने को लेकर असमंजस हो जाने से विनिवेश राजस्व का लक्ष्य हासिल हो पाने की संभावना काफी कम दिख रही है।
इसके पहले वित्त वर्ष 2019-20 में भी मोदी सरकार 65,000 करोड़ रुपये के संशोधित विनिवेश लक्ष्य को पाने से चूक गई थी। उस साल सरकार सिर्फ 50,304 करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी।
दरअसल रूस और यूक्रेन के बीच सैन्य संकट गहराने से शेयर बाजारों में मची उथलपुथल को देखते हुए सरकार एलआईसी के आईपीओ को मार्च से आगे बढ़ाने की संभावना तलाशने लगी है। ऐसा होने पर विनिवेश लक्ष्य अधूरा रह जाएगा।
यूक्रेन पर रूस का हमला शुरू होने के बाद से शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है। सरकार इस बात को लेकर फिक्रमंद है कि आईपीओ अगर ऐसी स्थिति में लाया जाता है तो उसे निवेशकों का उतना अनुकूल समर्थन शायद न मिले। इससे सरकार को अपनी हिस्सेदारी बिक्री से मिलने वाली राशि उम्मीद से कम रह सकती है।
वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद के बाद से सरकार के लिए विनिवेश लक्ष्य से चूकने का यह दूसरा मौका होगा।
वर्ष 2015-16 में उसने 25,313 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान की तुलना में 42,132 करोड़ रुपये जुटाए थे। इसी तरह 2016-17 में उसने एक लाख करोड़ रुपये से अधिक विनिवेश राजस्व जुटाकर रिकॉर्ड ही बना दिया था।
भाषा
प्रेम पाण्डेय
पाण्डेय
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