नयी दिल्ली, चार मई (भाषा) कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने कहा है कि किसानों को स्वेच्छा से गैर-रासायनिक उर्वरक आधारित कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहनों का एक व्यापक और पूर्णतया विश्वसनीय सेट तैयार करने की आवश्यकता है।
नीति अनुसंधान संस्थान पीआईएफ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, कृषि और किसान कल्याण विभाग के सचिव चतुर्वेदी ने सुझाव दिया कि प्राकृतिक खेती को एक खास बाजार तक सीमित नहीं रहने देना चाहिए और इसे मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए ताकि आम लोगों को पोषण संबंधी उत्पाद उपलब्ध कराए जा सकें।
कार्यक्रम में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि पोषण, पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य सुरक्षा हासिल करने के लिए कृषि में आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है और इस संबंध में गैर-रासायनिक खेती की व्यवहार्यता स्थापित करने के लिए कठोर अनुभवजन्य शोध की आवश्यकता है।
फेडरेशन यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के हरपिंदर संधू और पीआईएफ की अदिति रावत ने विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों में पुनर्योजी खेती की व्यवहार्यता और मापनीयता का आकलन करने के लिए एक अखिल भारतीय अध्ययन के को पद्धति प्रस्तुत की। अध्ययन का उद्देश्य भविष्य की नीति और प्रथाओं का मार्गदर्शन करने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य उत्पन्न करना है।
कार्यक्रम में उपस्थित अन्य विशेषज्ञों ने भी भारत के कृषि-जलवायु क्षेत्रों में पुनर्योजी खेती को अपनाने में तेजी लाने के लिए वैज्ञानिक डेटा, मापनीय मॉडल और शोधकर्ताओं, सरकार और चिकित्सकों के बीच मजबूत सहयोग की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
भाषा अनुराग अजय
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