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Friday, 29 March, 2024
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‘अनुमान कम, हासिल ज़्यादा’: मोदी सरकार बजट में क्यों रख सकती है कम टैक्स कलेक्शन का टारगेट

नई रणनीति पिछले सालों (2017-18 से 2020-21) से अलग होगी, जब सरकार ने करों के बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे थे, लेकिन हर बार उनमें 7-8% की कमी रह जाती थी.

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नई दिल्ली: अतीत से सबक लेते हुए, संभावना जताई जा रही है कि 2022-23 के केंद्रीय बजट के लिए, वित्त मंत्रालय कर संग्रह के मामूली लक्ष्य रख सकती है. इस क़दम के पीछे विचार ये है कि लक्ष्य में ‘अनुमान कम हो और हासिल ज़्यादा हो’, जिससे कि अतिरिक्त ख़र्च की ज़रूरत पड़ने की स्थिति में वित्तीय गुंजाइश पैदा की जा सके.

नई रणनीति विगत वर्षों (2017-18 से 2020-21) से अलग होगी, जब सरकार ने करों के बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे थे, लेकिन हर बार उनमें 7-8% की कमी रह जाती थी.

महालेखा नियंत्रक के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 वित्तीय रूप से एक कठिन वर्ष रहा, चूंकि कोविड-19 महामारी और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों और सरकार के कर राजस्व को बुरी तरह प्रभावित किया, लेकिन उससे पहले के तीन-चार वर्षों में भी, कर संग्रह के निर्धारित लक्ष्य हासिल नहीं किए गए थे, और उनमें सात से आठ प्रतिशत की कमी रह जाती थी.

बजट 1 फरवरी को पेश किया जाना है, और एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर संकेत दिए कि आर्थिक रिकवरी की बदौलत कर राजस्व में उछाल आने के बावजूद, वित्त मंत्रालय कर लक्ष्यों को कंजरवेटिव (परंपरागत) रख सकता है.

सरकार 2021-22 बजट के अनुमानित ख़र्च के ऊपर, 3.3 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त व्यय कर रही है, जिसे ग़रीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने, एयर इंडिया का निजीकरण की प्रक्रिया के तहत उसके कर्ज़ की अदायगी, निर्यात को बढ़ावा देने की विभिन्न स्कीमों के तहत प्रोत्साहन उपलब्ध कराने, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम के अंतर्गत ज़्यादा पैसा देने पर ख़र्च किया जा रहा है.

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बजट में वर्ष 2021-22 में सरकार के कुल ख़र्च का अनुमान 34.83 लाख करोड़ लगाया गया था, जो उससे पिछले वर्ष के मुकाबले 0.8 प्रतिशत कम था.

ऊपर हवाला दिए गए वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘लगता है कि पिछले बजट की रणनीति हमारे लिए काम कर रही है. हमने कंजरवेटिव अनुमान लगाए थे, और अब हमारे कर संग्रह में एक कुशन है, जो दूसरे क्षेत्रों में कमी की भरपाई कर सकता है, या सामाजिक कल्याण की स्कीमों के लिए, अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध करा सकता है’.


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सकल कर राजस्व में 9.5% अनुमानित वृद्धि

अगर सकल कर राजस्व में, नॉमिनल जीडीपी में हुई वृद्धि की प्रतिक्रिया स्वरूप, उसके अनुपात से ज़्यादा बढ़ोत्तरी होती है, तो उसे करों में उछाल कहा जाता है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, नॉमिनल जीडीपी के 2021-22 में 17.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है.

केंद्र ने 2021-22 वित्त वर्ष के लिए, 22.17 लाख करोड़ के सकल कर राजस्व में, 9.5 प्रतिशत की मामूली वृद्धि का अनुमान लगाया था. इसमें से प्रत्यक्ष कर से होने वाले राजस्व का अनुमान क़रीब 11 लाख करोड़ था, जबकि बाक़ी सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, और केंद्र के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे अप्रत्यक्ष करों से आना है जिसमें मुआवज़ा सेस भी शामिल है.

ये अनुमान 2020-21 के निचले आधार के हिसाब से लगाए गए थे, जब देश पहले कोविड लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित था, और इसलिए ये बेहद रूढ़िवादी है.

2020-21 के लिए अपने संशोधित अनुमानों में, सरकार ने कर संग्रह का अनुमान 19 लाख करोड़ रुपए लगाया था, जबकि बजट में ये राशि 24.23 लाख करोड़ थी. दोनों आंकड़ों में अंतर सरकार के कर संग्रह पर, लॉकडाउन के असर को दर्शाता है.

लेकिन, 31 मार्च 2021 तक, सरकार वास्तव में करों के रूप में 20.24 लाख करोड़ रुपए जुटाने में सफल हो गई, जो उसके संशोधित अनुमान से कम से कम 1 लाख करोड़ रुपए अधिक था.

सरकार कर संग्रह के रूढ़िवादी (कंजरवेटिव) लक्ष्य क्यों रख रही है, इसे समझने का एक और तरीक़ा ये होगा कि इस वित्त वर्ष में 30 नवंबर तक कर संग्रह पर नज़र डाली जाए.

पिछले पांच वर्षों में, महामारी के वर्ष को छोड़कर, सरकार आमतौर से नवंबर तक अपने कर संग्रह लक्ष्य का 56-58 प्रतिशत हासिल कर लेती थी. लेखा महानियंत्रक से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि 2021-22 में नवंबर तक, सरकार ने अपने लक्ष्य का तक़रीबन 70 प्रतिशत कर वसूल लिया था.

अप्रैल से नवंबर के बीच कर संग्रह में तेज़ी से आया उछाल, बुनियादी रूप से एक निचले आधार के सांख्यिकीय प्रभाव की वजह से है, चूंकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते कर संग्रह 12.6 प्रतिशत तक सिकुड़ गया था.

केंद्र को आमतौर पर, अपने कर राजस्व का बड़ा अंश साल के दूसरे हिस्से में हासिल होता है, क्योंकि टैक्स रिटर्न्स देरी से फाइल होते हैं, और दूसरे इसलिए भी कुछ कंपनियां अपने अग्रिम कर, एक ही किश्त में साल के अंत की ओर अदा करती हैं.

सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘इस रणनीति से सरकार को अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है’.

2021-22 के लिए वित्तीय घाटा- वो अंतराल जिसमें सरकार का ख़र्च उसकी आमदनी से ज़्यादा होता है- 15.068 लाख करोड़ या जीडीपी का 6.8 प्रतिशत रखा गया है.

वित्त वर्ष 2021-22 में कर राजस्व में स्वस्थ वृद्धि के कारण, अप्रैल-नवंबर की अवधि में सरकार के वित्तीय घाटे में 35.3 प्रतिशत की कमी आ गई थी, जो पूरे साल का हिसाब लगाने पर बजट लक्ष्य का 46.2 प्रतिशत था.

अप्रैल-नवंबर 2020 के बीच वित्तीय घाटा, पूरे साल के लक्ष्य का 135 प्रतिशत था, चूंकि महामारी से जुड़े लॉकडाउन ने सरकार के धन को तबाह कर दिया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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