नई दिल्ली: साल 2022 की पहली तीन तिमाहियों (जनवरी से सितम्बर) के दौरान चीन से भारत का आयात पहले ही 89 अरब डॉलर को पार कर चुका है और साल के अंत तक इसके 100 अरब डॉलर को पार कर जाने की उम्मीद है, जो मुख्य रूप से पूंजीगत या औद्योगिक वस्तुओं (कैपिटल ऑर इंडस्ट्रियल गुड्स) द्वारा प्रेरित है.
ऐसा इन दोनों देशों के बीच चल रहे सीमा तनाव के मद्देनजर चीनी सामानों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद हुआ है.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 के सितंबर महीने तक, भारत ने चीन से $62 बिलियन का सामान आयात किया था और यह आंकड़ा केवल एक वर्ष में 44 प्रतिशत बढ़ गया है.
चीनी सामानों के आयात में हुई यह वृद्धि भारत के समग्र आयात में आई वृद्धि की तुलना में काफी अधिक है. जनवरी और सितंबर 2022 के बीच, भारत का कुल आयात बिल लगभग 551.8 बिलियन डॉलर था, जो पिछले साल के 406 बिलियन डॉलर के आयात बिल से 35 प्रतिशत अधिक है.
चीन से हो रहे आयात में आई तेज वृद्धि का मतलब है कि भारत के कुल आयात में उसकी हिस्सेदारी 2021 (जनवरी-सितंबर) के 15.3 फीसदी से बढ़कर 2022 (जनवरी-सितंबर) में 16.2 फीसदी हो गई है.
चीन के साथ भारत के विदेशी व्यापार पर एक गहरी नज़र डालने से पता चलता है कि हमारे आयात में आई अधिकांश वृद्धि ‘इनपुट गुड्स’ या पूंजीगत वस्तुओं, जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया जाता है, के बढ़ते आयात की वजह से हुई है.
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूएनस्टैट्स द्वारा संकलित ‘कॉमट्रेड डेटाबेस’ से पता चलता है कि चीन से भारत का आयात बड़े पैमाने पर पूंजी या औद्योगिक वस्तुओं के आयात के कारण बढ़ रहा है. पिछले 10 सालों (2011 से 2021 तक) में, चीन से भारत के पूंजीगत सामानों के आयात में हर साल औसतन 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
भारत में, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अगस्त 2022 तक आयातित वस्तुओं के प्रकार के लिए यूनिट-लेवल डेटा (इकाई के स्तर का आंकड़ा) प्रदान किया है. साल 2022 में जिन वस्तुओं का आयात मूल्य 1 बिलियन डॉलर से अधिक था, उनमें से ‘लोहा और इस्पात’ के मामले में चीन से आयात में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई. जनवरी-अगस्त 2021 की समय अवधि के दौरान, भारत ने 0.74 बिलियन डॉलर मूल्य के लौह और इस्पात का आयात किया था. साल 2022 में यही आंकड़ा 54 फीसदी की छलांग के साथ 1.14 अरब डॉलर का हो गया.
इसी तरह, चीन से प्लास्टिक और उससे बने सामानों के आयात में भी साल 2022 में अनुपातिक रूप से अधिक बढ़ोत्तरी हुई है. वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, भारत ने जनवरी-अगस्त 2022 में लगभग 4 बिलियन डॉलर मूल्य के प्लास्टिक उत्पादों का आयात किया, जबकि 2021 की समान अवधि में यह महज 2.7 बिलियन डॉलर था.
इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उनके पुर्जे – जो चीन से भारत के आयात में लगभग एक तिहाई हिस्सा रखते हैं – का आयात भी साल 2021 के 16 बिलियन डॉलर से 37 प्रतिशत बढ़कर साल 2022 में लगभग 22 बिलियन डॉलर हो गया है.
यह भी पढ़ें: 40 साल बाद परिवार की तलाश में निकली भारतीय महिला- अजमेर से हुई अगवा, कराची में बेची गई थी
आयात में आए इस उछाल के मुख्य लाभार्थी हैं भारतीय निर्माता
दोनों देशों के बीच के कड़वे सीमा संबंधों के मद्देनजर भारत में अक्सर चीनी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया जाता रहा है. हालांकि, आंकड़े यह बताते हैं कि चीन से भारत के आयात में कभी भी उपभोक्ता वस्तुओं का दबदबा नहीं रहा है, और इसलिए ‘बहिष्कार’ की मांगों का इस पर ज्यादा असर नहीं होगा.
कॉमट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 में, भारत ने चीन से 2.84 बिलियन डॉलर मूल्य की उपभोक्ता वस्तुओं का आयात किया था, जो इस देश से उसके कुल आयात का दसवां हिस्सा भी नहीं है. साल 2011 से 2021 तक चीन से उपभोक्ता वस्तुओं के आयात में औसतन 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. हालांकि, इस देश से पूंजीगत और औद्योगिक वस्तुओं के आयात में आई 3 से 4 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि से इसकी भरपाई होती रही है.
ये आंकड़े इस लोकप्रिय धारणा के खिलाफ जाता है कि चीन से हो रहे आयात के प्रमुख वाहक भारतीय उपभोक्ता हैं. वास्तव में, यह भारतीय निर्माता हैं जो चीनी आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं.
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में भारत के कुल पूंजीगत वस्तुओं आयात का करीब 40 फीसदी चीन से हुआ था.
तो ऐसा क्यों है कि हमारे उद्योगों को चीनी इनपुट गुड्स पर निर्भर रहना पड़ता है?
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस में विजिटिंग प्रोफेसर सोन रे के अनुसार, इस प्रश्न एक उत्तर यह है कि चीनी ‘इंटरमीडिएट या इनपुट’ गुड्स बाजार में काफी प्रतिस्पर्धी हैं, और यह भी कि मूल्य निर्धारण और ट्रांसपोर्ट लॉजिस्टिक्स दोनों उनके पक्ष में काम करते हैं.
रे ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे निर्माता चीनी पूंजीगत वस्तुओं को क्यों चुनते हैं, इसका कारण वह कीमत है जिस पर वे इनकी पेशकश करते हैं. ‘इकोनॉमिक्स ऑफ़ स्केल (बड़े पैमाने पर उत्पादन की अर्थव्यवस्था) और अन्य कारक चीन को प्रतिस्पर्धी मूल्य की पेशकश करने की अनुमति देते हैं, जिससे उत्पादन की इनपुट लागत कम हो जाती है. जर्मनी या किसी अन्य औद्योगिक सामान के उत्पादन के अनुकूल देश से इनके विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन इनके मुकाबले चीनी इनपुट गुड्स काफी प्रतिस्पर्धी हैं.’
वे कहती हैं कि पूंजीगत वस्तुओं का आयात घरेलू विकास को भी गति प्रदान करता है.
इस बारे में समझाते हुए रे ने कहा, ‘पूंजीगत या औद्योगिक वस्तुओं के आयात का मतलब है कि ये उत्पाद हमारी (घरेलू उपयोग या निर्यात के लिए) वैल्यू चेन (मूल्य श्रृंखला) में आने वाले हैं. यह रोजगार पैदा करेगा और उत्पादन की गतिविधियों को बढ़ाएगा, जो किसी भी राष्ट्र के लिए उपयोगी हैं. ऐसे में महंगे विकल्पों के लिए जाना व्यावहारिक नहीं है.’
चीन से भारत के आयात में इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल मशीनरी का भी बोलबाला है और फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के अजय सहाय इसे राहत की बात मानते हैं.
सहाय ने कहा, ‘यह अच्छी बात है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल मशीनरी चीन से भारत के आयात में एक बड़ा हिस्सा रखती है, क्योंकि भारत इन उत्पादों के निर्माण के स्थानीयकरण के साथ आगे बढ़ रहा है.’
उन्होंने बताया, ‘सरकार ने ‘प्रदर्शन से जुड़े प्रोत्साहन (परफॉरमेंस लिंक्ड इन्सेन्टिव्स)’ के नाम पर देश में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन देने की घोषणा की है. भारत में पहले से ही बहुत सारा निवेश आ चुका है, जो आने वाले वर्षों में सकारात्मक परिणाम देना शुरू कर देगा. हम इलेक्ट्रॉनिक्स के कुल आयात और चीन से आयातित वस्तुओं, दोनों में गिरावट आने की उम्मीद कर रहे हैं.’
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के सीनियर फेलो बोर्नाली भंडारी का भी मानना है कि व्यापार करने की लागत और परिचालन के पैमाने के कारण चीनी निर्माताओं को वैश्विक निर्माताओं पर बढ़त मिली हुई है.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन चीन से पूंजीगत वस्तुओं के आयात से भारत को लाभ होता है या नहीं, इसकी विस्तृत पड़ताल की जरूरत है हमें यह पता लगाने की जरूरत है कि भारत आने वाले इन चीनी इनपुट गुड्स पर कितना मूल्य संवर्धन (वैल्यू एडिशन) किया जा रहा है. घरेलू स्तर पर जितना अधिक वैल्यू एडिशन किया जाता है, उतना ही अधिक उत्पादन होता है, यह उतना ही अधिक रोजगार प्रदान करता है और इसके विपरीत भी इसी तरह की बात लागू होती है. इसके लिए क्षेत्र-दर-क्षेत्र विश्लेषण की आवश्यकता है.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: भारतीय मां अपने छोटे बच्चे के साथ हफ्ता में 9 घंटे बिताती हैं वही अमेरिकी 13 घंटे, राज्य उठाए कदम