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दशक पुराने गैस स्थानांतरित होने के मामले में अदालती फैसला रिलायंस-बीपी के लिए झटका

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नयी दिल्ली, 16 फरवरी (भाषा) मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और उसकी भागीदार बीपी पीएलसी को झटका देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले को पलट दिया है। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने दोनों कंपनियों के क्षेत्रों के पास स्थित क्षेत्रों से स्थानांतरित होकर आई गैस के उत्पादन और उसकी बिक्री के लिए उनपर किसी तरह का मुआवजा नहीं देने की व्यवस्था दी थी। यानी इसके लिए रिलायंस और उसके भागीदार पर कोई दायित्व नहीं डाला गया था।

यह पूरा विवाद ब्लॉक या क्षेत्र केजी-डीडब्ल्यूएन-98/3 (केजी-डी6) से संबंधित है। यह ब्लॉक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा साल 2000 में नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (एनईएलपी) के तहत पहले बोली दौर में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और कनाडा की निको रिसोर्सेज के एक संघ को दिया गया था। बीपी ने एक दशक से अधिक समय बाद ब्लॉक में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली थी।

उसी दौर में, केजी-डीडब्ल्यूएन-98/2 (केजी-डी5) केयर्न एनर्जी इंडिया लिमिटेड को दिया गया था, जिसे बाद में सार्वजनिक क्षेत्र की ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) ने दो चरणों में अधिग्रहीत कर लिया था। एक निकटवर्ती गोदावरी ब्लॉक 1997 में नामांकन के आधार पर ओएनजीसी को दिया गया था।

रिलायंस ने केजी-डी6 से उत्पादन 2009 में, जबकि ओएनजीसी ने जनवरी, 2024 में उत्पादन शुरू किया।

यह विवाद जुलाई, 2013 में उस समय शुरू हुआ, जब रिलायंस के केजी-डी6 के साथ अपने केजी-डी5 और जी-4 ब्लॉक के जलाशय संपर्क पर संदेह करते हुए ओएनीसी ने 22 जुलाई, 2023 को हाइड्रोकॉर्बन महानिदेशक (डीजीएस) को गोदावरी और केजी-डीडब्ल्यूएन-98/2 ब्लॉक पर उपलब्ध भूवैज्ञानिक और भूभौतिकीय आंकड़ों के आधार पर लिखा कि इस बात के प्रमाण हैं कि यहां से गैस केजी-डी6 में जा रही है। सीधे शब्दों में कहें तो इसका मतलब यह था कि रिलायंस ब्लॉक और ओएनजीसी ब्लॉक के भूमिगत गैस पूल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

…और चूंकि रिलायंस ने पहले उत्पादन शुरू किया था, इसलिए इसने ओएनजीसी के संसाधनों को भी खाली कर दिया होगा।

ओएनजीसी ने केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) से अनुरोध किया कि वह उसे जीएंडजी डेटा के साथ-साथ ब्लॉक केजी-डीडब्ल्यूएन-98/3 के समीपवर्ती क्षेत्र के उत्पादन और कुओं के डेटा उपलब्ध कराए।

यह मुद्दा मीडिया में लीक हो गया और एक दैनिक में एक छोटी सी खबर छपी। इसे ओएनजीसी के निदेशक मंडल के समक्ष पेश किया गया। बोर्ड ने प्रबंधन से इस मामले की समीक्षा करने को कहा।

प्रबंधन ने बाद में बोर्ड को इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट भेजी। बोर्ड ने प्रबंधन से अपने हितों की रक्षा के लिए कानूनी कदम उठाने को कहा। ओएनजीसी के सामने दो विकल्प थे, या तो वह रिलायंस द्वारा उसकी गैस की ‘चोरी’ के लिए एफआईआर दर्ज करे या क्षतिपूर्ति का दावा करते हुए सिविल मुकदमा दायर करे। बोर्ड को लगा कि सिविल मामला दशकों तक खिंच सकता है।

एक रास्ता रिट याचिका दायर करना था, जिस पर उच्च न्यायालयों द्वारा तुरंत ध्यान दिया जाता है। ओएनजीसी ने डीजीएच और मंत्रालय के खिलाफ रिट दायर करने का फैसला किया। रिलायंस तीसरी प्रतिवादी थी।

यह याचिका 15 मई, 2014 को आम चुनावों की मतगणना से एक दिन पहले दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर की गई थी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 10 सितंबर, 2014 को इस मामले का निपटान करते हुए सरकार को इसपर निर्णय करने को कहा।

इस मामले में डीगोलियर और मैक नॉटन (डीएंडएम) को तृतीय पक्ष अध्ययन करने के लिए नियुक्त किया गया था। 19 नवंबर, 2015 की अपनी अंतिम रिपोर्ट में डीएंडएम ने अन्य बातों के साथ-साथ यह निष्कर्ष निकाला कि ‘एकीकृत विश्लेषणों ने ओएनजीसी और रिलायंस द्वारा संचालित ब्लॉकों में जलाशयों के जुड़ाव और निरंतरता का संकेत दिया।

रिपोर्ट में गोदावरी पीएमएल और केजी-डीडब्ल्यूएन-98/2 से केजी-डीडब्ल्यूएन-98/3 ब्लॉक में स्थानांतरित गैस की मात्रा और 31 मार्च, 2015 तक स्थानांतरित मात्रा से गैस के संबंधित उत्पादन को मापा गया। एक अप्रैल, 2009 से 31 मार्च, 2015 तक, गोदावरी पीएमएल और केजी-डीडब्ल्यूएन-98/2 ब्लॉक की डी1 खोज से क्रमशः 7.009 अरब घनमीटर और 4.116 बीसीएम गैस केजी-डीडब्ल्यूएन-98/3 ब्लॉक में स्थानांतरित हुई थी। डीएंडएम ने रिलायंस द्वारा उत्पादित ओएनजीसी की गैस का मूल्य- लगभग 10,000 करोड़ रुपये भी दिया।

डीएंडएम की रिपोर्ट पेश करने के बाद, सरकार ने 15 दिसंबर, 2015 को एक एकल सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह शामिल थे। इसने कहा कि रिलायंस और निको को पहले से पता था कि केजी बेसिन में अन्वेषण के लिए उनकी विकास योजना ओएनजीसी के ब्लॉक में गैस भंडार को समाप्त कर देगी। हालांकि, रिलायंस ने इसे खारिज कर दिया और शाह समिति को बताया कि रिपोर्ट में ‘भूकंपीय डेटा और बहुत सीमित कुआं डेटा पर सरल विचार दर्शाया गया है।

समिति ने अपनी 28 अगस्त, 2016 की रिपोर्ट में कहा कि ओएनजीसी ब्लॉक से रिलायंस क्षेत्र में गैस प्रवाहित हुई थी, लेकिन मुकेश अंबानी की कंपनी की ओर से इस मामले में किसी तरह का कोई अपराध नहीं पाया गया।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी) ने अपने आदेश में रिलायंस और उसके साझेदारों से 31 मार्च, 2016 को समाप्त होने वाले सात वर्षों में लगभग 338.33 मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट गैस का उत्पादन करने के लिए 1.47 अरब डॉलर की क्षतिपूर्ति की मांग की थी। सरकार का कहना था कि यह गैस ओएनजीसी के ब्लॉक से रिसकर बंगाल की खाड़ी में उनके निकटवर्ती केजी-डी6 में चली गई थी।

बाद में यह मामला अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में गया।

जुलाई, 2018 में, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके भागीदारों के खिलाफ भारत सरकार के 1.55 अरब डॉलर के दावे को खारिज कर दिया। तीन सदस्यीय पैनल ने 2-1 के बहुमत से तीनों भागीदारों को 83 लाख डॉलर का मुआवजा भी दिया।

सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ के समक्ष मध्यस्थता फैसले को चुनौती दी तथा इसे रद्द करने की अपील की।

मई, 2023 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मध्यस्थता फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि ‘मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा लिया गया दृष्टिकोण निश्चित रूप से एक ‘संभावित दृष्टिकोण’ है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

इसके बाद सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष पुनरीक्षा याचिका दायर की। खंडपीठ ने 15 फरवरी को मई, 2023 की एकल पीठ के फैसले को रद्द कर दिया। एकल पीठ ने सरकार के दावे को खारिज करते हुए 2018 के मध्यस्थता निर्णय को सही ठहराया था। इस आदेश की विस्तृत प्रति अभी उपलब्ध नहीं है।

रिलायंस ने अभी 15 फरवरी के आदेश पर टिप्पणी नहीं की है। ऐसी संभावना है कि कंपनी इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी।

भाषा अजय अजय अनुराग

अनुराग

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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