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Sunday, 9 November, 2025
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जीएम-मुक्त भारत गठबंधन का दावा, आईसीएआर के जीनोम-संपादित चावल के आंकड़ों में ‘हेराफेरी’

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नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) जीएम-मुक्त भारत गठबंधन ने बृहस्पतिवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि मंत्रालय पर जीनोम-संपादित चावल की किस्मों के प्रचार में ‘वैज्ञानिक धोखाधड़ी’ करने का आरोप लगाया। गठबंधन ने आरोप लगाया कि सफलता के झूठे दावे गढ़ने के लिए आधिकारिक परीक्षण आंकड़ों में हेराफेरी की गई है।

एक संवाददाता सम्मेलन में, गठबंधन ने अखिल भारतीय समन्वित चावल अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीआर) की आईसीएआर की वार्षिक प्रगति रिपोर्ट (2023 और 2024) के आंकड़े प्रस्तुत किए। दावा किया कि ये निष्कर्ष वैज्ञानिक हेराफेरी के एक पैटर्न को उजागर करते हैं, जहां आईसीएआर के निष्कर्ष सीधे उसके अपने आंकड़ों का खंडन करते हैं।

ये आरोप दो जीनोम-संपादित चावल किस्मों – पूसा डीएसटी-1 और डीआरआर धान 100 (कमला) – पर केंद्रित हैं, जिनकी घोषणा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चार मई, 2025 को वैश्विक स्तर पर पहली बार की थी।

गठबंधन ने बयान में कहा, ‘‘जैसा कि देश में जैव प्रौद्योगिकी लॉबी की आदत बन गई है, पहले भी बीटी बैंगन और जीएम सरसों के मामले में ऐसा देखा गया था, एक बार फिर कुछ जीनोम-संपादित किस्मों को भारत के लिए चमत्कारी बीज के रूप में पेश करने के लिए विज्ञान से समझौता किया जा रहा है।’’

पूसा डीएसटी-1 (आईईटी 32043) के बारे में दावा किया गया था कि यह लवणीय और क्षारीय मिट्टी में अपनी गैर-जीएम मूल किस्म एमटीयू-1010 से बेहतर प्रदर्शन करती है।

बीपीटी 5204 से प्राप्त डीआरआर धान 100 ‘कमला’ (आईईटी 32072) की उपज 17 प्रतिशत अधिक, 20 दिन पहले पकने वाली और नाइट्रोजन का अधिक कुशलता से उपयोग करने वाली घोषित की गई थी।

हालांकि, गठबंधन द्वारा उद्धृत आईसीएआर की अपनी रिपोर्टों के अनुसार, पूसा डीएसटी-1 ने ‘सीमित बीज मात्रा’ के कारण वर्ष 2023 में सूखे या लवणता सहिष्णुता के लिए कोई परीक्षण डेटा नहीं दिखाया।

वर्ष 2023 के परीक्षणों में, इसने मूल एमटीयू-1010 की तुलना में बराबर या 4.8 प्रतिशत कम उपज दिखाई, और 20 में से 12 स्थानों पर कमज़ोर प्रदर्शन किया।

वर्ष 2024 में, इस किस्म ने तटीय या अंतर्देशीय लवणता परीक्षणों में कोई उपज लाभ नहीं दिखाया, क्षारीय मिट्टी में केवल 1.6 प्रतिशत मामूली लाभ हुआ।

गठबंधन ने आरोप लगाया कि फिर भी, सारांश तालिका चुनिंदा रूप से एक क्षेत्र में केवल आठ स्थानों के परिणामों पर आधारित‘ होकर 30 प्रतिशत अधिक उपज’ का दावा करती है।

डीआरआर धान 100 ‘कमला’ के लिए, गठबंधन ने दावा किया कि वर्ष 2023 में, इस किस्म ने 19 परीक्षण स्थलों में से आठ में कमज़ोर प्रदर्शन किया और दो क्षेत्रों (पूर्वी और मध्य) में अपने मूल की तुलना में काफी खराब प्रदर्शन किया। दक्षिणी क्षेत्र में, उपज में वृद्धि केवल 4.3 प्रतिशत थी।

गठबंधन ने कहा कि वर्ष 2024 में, कई स्थानों के आंकड़ों को बिना किसी स्पष्टीकरण के हटा दिया गया और केवल छह स्थानों के परिणामों का उपयोग करके 17.21 प्रतिशत उपज वृद्धि का अनुमान लगाया गया।

गठबंधन के विश्लेषण के अनुसार, कुल औसत उपज मूल किस्म की तुलना में चार प्रतिशत कम थी और कोई भी प्रकाशित क्षेत्रीय आंकड़ा ‘20 दिन पहले पकने’ के दावे का समर्थन नहीं करता है।

गठबंधन ने कहा कि 50 प्रतिशत पुष्पन या फूल खिलने (डीएफएफ) के दिनों के संबंध में, वार्षिक रिपोर्ट में कमला और मूल किस्म के बीच 20 दिन के अंतर को दर्शाने वाला कोई आंकड़ा नहीं है।

कमला के लिए कुल औसत डीएफएफ 101 दिन और बीपीटी 5204 के लिए 104 दिन है।

स्वतंत्र शोधकर्ता सौमिक बनर्जी ने कहा, ‘‘यदि उपयोग की जा रही तकनीक वास्तव में सुरक्षित, सटीक और प्रभावी है, तो सभी आंकड़े प्रकाशित करने और उचित परीक्षण करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए, जैसा कि सभी जीएमओ के लिए किया जाता है।’’

कार्यकर्ता और गठबंधन सदस्य कविता कुरुगंती ने कहा, ‘‘कृषि में गलत विज्ञान का इस्तेमाल, वह भी सार्वजनिक क्षेत्र से, लाखों किसानों के जीवन और आजीविका पर सीधा असर डालता है। इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए — यह मौलिक मानवाधिकारों का मामला बन जाता है।’’

गठबंधन ने जीनोम-संपादित चावल की किस्मों के बारे में सभी प्रचारात्मक दावों को तुरंत वापस लेने, आईसीएआर के परीक्षण आंकड़ों और कार्यप्रणाली की एक स्वतंत्र वैज्ञानिक समीक्षा, आईसीएआर और कृषि मंत्रालय की सार्वजनिक जवाबदेही, और विश्वसनीय जैव सुरक्षा नियम लागू होने तक जीनोम-संपादित फसलों के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग की है।

आईसीएआर के अधिकारियों से टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं हो सका।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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