नयी दिल्ली, एक मई (भाषा) कंपनियों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों (सीईओ) और सामान्य कर्मचारियों के वेतन में असमानता चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। वैश्विक सीईओ का औसत वेतन 2019 के बाद वास्तविक रूप से 50 प्रतिशत बढ़ा है जबकि कर्मचारियों के औसत वेतन में बढ़ोतरी सिर्फ 0.9 प्रतिशत है।
ऑक्सफैम की एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। भारत में कंपनियों के सीईओ का सालाना वेतन भी औसतन 20 लाख डॉलर पहुंच चुका है।
यह अध्ययन बताता है कि सीईओ और आम कर्मचारियों के बीच वेतन की खाई चौंकाने वाले स्तर तक बढ़ चुकी है। हकीकत यह है कि अरबपति एक घंटे में एक औसत कर्मचारी की पूरे साल की आय से कहीं ज्यादा कमाई कर रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘सीईओ के वेतन में 2019 के 29 लाख डॉलर से 50 प्रतिशत की वास्तविक वृद्धि आ चुकी है। यह वृद्धि एक औसत कर्मचारी के वेतन में समान अवधि में हुई 0.9 प्रतिशत की वास्तविक वृद्धि से बहुत अधिक है।’
अध्ययन में विभिन्न देशों में सीईओ के वेतन का भी विश्लेषण किया गया है, जिसमें आयरलैंड और जर्मनी क्रमशः औसतन 67 लाख डॉलर और 47 लाख डॉलर के साथ शीर्ष पर हैं।
भारत में भी कंपनियों के सीईओ का औसत वेतन 2024 में 20 लाख डॉलर तक पहुंच गया है।
ऑक्सफैम इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहर ने इस वेतन असमानता पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘यह कोई प्रणालीगत गड़बड़ी नहीं है, बल्कि धन के लगातार ऊपर की ओर प्रवाह के लिए बनाई गई एक प्रणाली है, जबकि लाखों मेहनतकश लोग जीवन-यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’
यह वेतन असमानता ऐसे समय में बढ़ रही है जब जीवन-यापन की लागत तेजी से बढ़ रही है और श्रमिकों का वेतन महंगाई के साथ तालमेल बिठा पाने में नाकाम हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, वर्ष 2024 में वास्तविक वेतन में 2.7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन कई देशों में श्रमिकों का वेतन स्थिर रहा है।
अध्ययन में महिला-पुरुष के वेतन में अंतर पर भी प्रकाश डाला गया है। हालांकि वैश्विक स्तर पर महिला-पुरुष के बीच वेतन अंतर में मामूली कमी आई है, लेकिन यह अभी भी चिंताजनक रूप से उच्च स्तर पर है।
विश्लेषण के मुताबिक, 2022 और 2023 के दौरान महिला-पुरुष के बीच औसत वेतन अंतर 27 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गया।
ऑक्सफैम का यह अध्ययन बताता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सीमा शुल्क कदमों से वैश्विक स्तर पर श्रमिकों के लिए नौकरी छूटने और बुनियादी वस्तुओं की बढ़ती लागत का खतरा बढ़ गया है जो आगे चलकर असमानता बढ़ाने का काम करेगा।
बेहर ने आगाह करते हुए कहा कि अमेरिका की शुल्क नीतियां न केवल उसके कामकाजी परिवारों को नुकसान पहुंचाएंगी, बल्कि गरीब देशों के श्रमिकों के लिए भी विनाशकारी साबित होंगी।
यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर बढ़ती आय असमानता और श्रमिकों पर इसके गंभीर प्रभावों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत पर बल देता है।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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