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Friday, 15 November, 2024
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केंद्र ने मार्च-मई, 2022 के दौरान ‘जायद’ फसल का लक्ष्य 52.72 लाख हेक्टेयर तय किया

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नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) कृषि मंत्रालय ने मार्च-मई, 2022 की अवधि के दौरान धान को छोड़कर जायद (गर्मी) की फसल रकबा 52.72 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान लगाया है। इसमें अधिकतम रकबा गुजरात और पश्चिम बंगाल का होगा।

जायद फसल, जिसे ग्रीष्मकाल भी कहा जाता है, मार्च-मई के बीच बोई जाती है, जो रबी (सर्दियों) की फसल कटाई और खरीफ (मानसून) की बुवाई के बीच की अवधि में होती है।

एक वर्चुअल राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि गर्मियों की फसलें न केवल अतिरिक्त आय प्रदान करती हैं, बल्कि किसानों के लिए रबी और खरीफ के बीच रोजगार के अवसर भी पैदा करती हैं, जिससे फसल की गहनता में वृद्धि होती है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने दलहन, मोटे अनाज, पोषक तत्व और तिलहन जैसी ग्रीष्मकालीन फसलों की खेती के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से नई पहल की है।

एक सरकारी बयान में तोमर के हवाले से कहा गया, ‘‘हालांकि गर्मी के मौसम में आधे से अधिक फसलें दलहन, तिलहन और पोषक तत्वों की होती है, लेकिन सिंचाई के स्रोत वाले किसान गर्मी के मौसम में चावल और सब्जियां उगा रहे हैं।’’

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि चावल सहित जायद फसलों की खेती का रकबा 2017-18 में 29.71 लाख हेक्टेयर से 2.7 गुना बढ़कर 2020-21 में 80.46 लाख हेक्टेयर हो गया है।

इस वर्ष जायद सत्र के दौरान कुल 52.2 लाख हेक्टेयर में से गुजरात में अधिकतम 8.27 लाख हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 6.53 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 6.18 लाख हेक्टेयर, बिहार में 6.08 लाख हेक्टेयर, मध्य प्रदेश में 5.62 लाख हेक्टेयर और ओडिशा में 4.41 लाख हेक्टेयर में खेती की जानी है।

जायद सत्र के दौरान 21.05 लाख हेक्टेयर में दलहन, 13.78 लाख हेक्टेयर में तिलहन और 17.89 लाख हेक्टेयर में मोटे/पोषक तत्वों की खेती की जाएगी।

सम्मेलन में मंत्री ने फसलों के उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की दृष्टि से नवीन तकनीकों को अपनाने की सुविधा के लिए पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया।

उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता तिलहन और दालों का उत्पादन बढ़ाना है जिनका भारी मात्रा में आयात करने की आवश्यकता होती है।

कृषि अनुसंधान निकाय आईसीएआर द्वारा विकसित नई किस्मों पर तोमर ने कहा कि राज्यों को गर्मियों की फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए नई किस्मों के बीजों का उपयोग करना चाहिए।

मंत्री ने राज्यों को अपनी उर्वरक जरूरतों के लिए पहले से योजना बनाने और केंद्र को अनुमान प्रदान करने के लिए भी कहा ताकि उर्वरक विभाग इसे समय पर उपलब्ध करा सके। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि राज्यों को एनपीके उर्वरकों और तरल यूरिया का उपयोग बढ़ाना चाहिए और डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) उर्वरकों पर निर्भरता कम करनी चाहिए।

सम्मेलन के दौरान, भारतीय बीज प्रमाणन पर एक कार्य पुस्तिका का विमोचन किया गया।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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