गुरदासपुर/अमृतसर: हरजीत सिंह के भरपूर धान की फसल के सपने सचमुच मिट्टी में मिल गए जब उन्होंने देखा कि उनकी लगभग 17 हेक्टेयर ज़मीन पंजाब की 1988 के बाद सबसे बड़ी बाढ़ में डूब गई है.
सिंह ने अमृतसर के रामदास इलाके के जट्टा पिंड में अपने बर्बाद खेत दिखाते हुए दिप्रिंट से कहा, “मैंने इस साल बोआई के मौसम में 4 लाख रुपये से ज़्यादा निवेश किया था. सारी फसल खराब हो गई. पिछले एक हफ़्ते से खेतों में घुटनों तक पानी भरा हुआ था. फसल कैसे बच सकती है?” यह इलाका भारत-पाकिस्तान सीमा से कुछ किलोमीटर दूर है.
सिंह अकेले ऐसे किसान नहीं हैं जिनकी ज़िंदगी इस साल पंजाब की बाढ़ ने तबाह कर दी है. राज्य भर के किसानों को भारी नुकसान हुआ है. अब चिंता यह है कि बाढ़ का असर इस सीज़न की धान की पैदावार पर कितना होगा और क्या यह केंद्र सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) पर असर डालेगा. पंजाब PDS में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक है.
कृषि अर्थशास्त्री भी धान की कीमतों पर असर को लेकर चिंतित हैं. यह बाढ़ खरीफ सीज़न से ठीक पहले आई है. इस साल पंजाब में लगभग 32.46 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हुई है, जिसमें 6.80 लाख हेक्टेयर बासमती भी शामिल है. यह आंकड़े पंजाब कृषि विभाग के हैं.
4 सितंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया. मोदी सरकार पहले ही दो उच्च स्तरीय टीमें राज्य में स्थिति का आकलन करने के लिए भेज चुकी है. इन टीमों में कृषि, ग्रामीण विकास, सड़क, वित्त, जल शक्ति और ऊर्जा विभाग के अधिकारी शामिल हैं.
“पंजाब में बाढ़ की स्थिति है. फसलें नष्ट हो गई हैं. इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार पंजाब के किसानों और लोगों के साथ खड़ी है. अब हमें योजना बनाकर बाढ़ प्रभावित इलाकों को फिर से खड़ा करना होगा. पंजाब को इस संकट से बाहर निकालने के लिए अल्पकालिक, मध्यमकालिक और दीर्घकालिक योजनाएं बनानी होंगी.” चौहान ने X पर लिखा.
पंजाब में बाढ़ की जो परिस्थितियां हैं, उससे आदरणीय प्रधानमंत्री जी अत्यंत चिंतित हैं । उन्हीं के निर्देश पर मैं वहां के हालात समझने पंजाब गया था।
पंजाब में जलप्रलय की स्थिति है। फसलें तबाह और बर्बाद हो गई हैं। संकट की इस घड़ी में केंद्र सरकार पंजाब की जनता और किसानों के साथ खड़ी… pic.twitter.com/zSjfttbvh6
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) September 5, 2025
अमृतसर सबसे ज़्यादा प्रभावित
अमृतसर ज़िले में लगभग 2.10 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर खेती होती है और इसका बड़ा हिस्सा खरीफ सीज़न में धान की खेती के लिए इस्तेमाल होता है.
अमृतसर के मुख्य कृषि अधिकारी बलजिंदर सिंह भुल्लर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “इस साल अमृतसर ज़िले में कुल खेती वाले क्षेत्र में से किसानों ने 1.40 लाख हेक्टेयर में बासमती और 40,000 हेक्टेयर में नॉन-बासमती धान बोया है. हमारी शुरुआती जांच के अनुसार लगभग 70,000 हेक्टेयर इलाका बाढ़ के पानी से प्रभावित हुआ है.”
सिंह ने कहा कि स्थिति का पूरा आकलन तभी किया जा सकेगा जब बाढ़ का पानी उतर जाएगा. “अगर पानी एक हफ़्ते से ज़्यादा समय तक खेतों में भरा रहा तो फसल पूरी तरह नष्ट होने का ख़तरा है. लंबे समय तक पानी भरा रहने से फसल सड़ जाती है,” उन्होंने समझाया और बताया कि प्रभावित क्षेत्र का पैमाना भारी नुकसान की ओर इशारा करता है.
शुरुआती अनुमान के मुताबिक पूरे पंजाब में कम से कम 4 लाख हेक्टेयर धान की खेती वाला इलाका बाढ़ में डूबा हुआ है.
पंजाब के जिन ज़िलों में बाढ़ का सबसे ज़्यादा असर है, उनमें अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर, फाज़िल्का, फ़िरोज़पुर, मोगा, कपूरथला और मानसा शामिल हैं. ये क्षेत्र तीन नदियों—रावी, ब्यास और सतलुज—के किनारे हैं, जो इस समय ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं और जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण उफान पर हैं.

पंजाब का हमेशा से PDS में बड़ा योगदान
पंजाब में 32 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन पर धान की खेती होती है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 64% है. राष्ट्रीय स्तर पर पंजाब का योगदान कुल धान उत्पादन में 12% है और यह भारत के PDS में अहम भूमिका निभाता है.
अमृतसर और गुरदासपुर ज़िले अपनी उच्च गुणवत्ता वाली बासमती किस्मों के लिए मशहूर हैं. अन्य प्रमुख धान उत्पादक ज़िलों में लुधियाना, पटियाला, फ़िरोज़पुर और संगरूर शामिल हैं. इस साल सुगंधित धान की किस्में 6,81,000 हेक्टेयर में बोई गईं, जिनमें से लगभग 2,65,000 हेक्टेयर (लगभग 40%) अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर, फ़िरोज़पुर और पठानकोट में लगाए गए.
पिछले एक दशक में पंजाब में धान की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है. यह रुझान तब भी जारी रहा जब भूजल बचाने के लिए विविधीकरण की चिंताएं और मांगें बढ़ती गईं. 2023 की बाढ़ के बावजूद किसानों ने 210 लाख मीट्रिक टन उत्पादन किया, जो 2022 के 205 लाख मीट्रिक टन से अधिक था.
भारतीय चावल निर्यातक महासंघ के अनुसार पंजाब देश का तीसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक राज्य है और 2024-25 में 118.2 लाख टन धान का उत्पादन किया.
लेकिन इस साल क्या होगा?
भुल्लर ने समझाते हुए कहा, “अगर कुछ फसलें बच भी गईं तो उनकी गुणवत्ता प्रभावित होगी. इसके अलावा, जैसे ही बाढ़ का पानी घटेगा, फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाएगी.”
“कमज़ोर फसल का असर इस साल उत्पादन और ख़रीद दोनों पर पड़ेगा,” पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के एग्रोनॉमिस्ट बुटा सिंह ढिल्लों ने कहा. उन्होंने बताया कि इस साल की बाढ़ 2023 से भी बदतर रही है.
उन्होंने बताया कि पंजाब में उगाई जाने वाली धान की किस्में लंबे समय तक पानी में डूबने पर अच्छी नहीं रहतीं. “बाढ़ को देखते हुए PAU ने पानी उतरने के बाद विभिन्न फसलों के नुकसान को कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं,” सिंह ने आगे कहा.

1988 और 2023 की यादें
पंजाब ने कई बाढ़ें देखी हैं, लेकिन लोगों की सामूहिक यादों में 1988 सबसे खराब अनुभव था. लेकिन सिंह का कहना है कि हाल की बाढ़ ने शायद उससे भी ज्यादा नुकसान किया है.
2023 में 10 जिलों के 1,400 से अधिक गांव प्रभावित हुए थे. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के एक अध्ययन ‘पंजाब फ्लड्स 2023: कॉज़ेज़, इम्पैक्ट्स एंड लर्निंग्स’ के अनुसार लगभग 2.21 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि, जो ज़्यादातर धान के खेत थे, को नुकसान पहुंचा था.
पिछले खरीफ सीजन में पंजाब के किसानों से लगभग 172 LMT धान की ख़रीद हुई थी, जैसा कि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने दिसंबर 2024 में बताया था. यह आंकड़ा 2020 के बाद से सबसे कम था, जब केंद्र ने 204.83 LMT धान ख़रीदा था.
फिर भी, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि पंजाब में धान की फसलों को हुआ नुकसान राष्ट्रीय स्तर पर असंतुलन नहीं पैदा करेगा.
“केंद्रीय पूल में कई सालों से चावल का ज़्यादा स्टॉक है. पंजाब की बाढ़ का असर इस साल केंद्रीय पूल पर मामूली ही होगा,” भारत के पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा. उन्होंने जोड़ा कि अगर खेत कई दिनों तक पानी में डूबे रहे तो धान का उत्पादन ज़रूर घटेगा.
“सरकार गलत तरीके से FCI स्टॉक से चावल इथेनॉल के लिए दे रही है. पंजाब में चावल की फसल को नुकसान होने के कारण इस नीति को जारी रखना संभव नहीं होगा,” उन्होंने कहा.
मोदी सरकार ने 2024-25 में इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल (EBP) पहल के तहत इथेनॉल उत्पादन के लिए 2.8 मिलियन टन FCI चावल मंज़ूर किया था.
हुसैन ने पंजाब में फसल बीमा योजना की अनुपस्थिति पर भी ज़ोर दिया. “पंजाब ने कभी फसल बीमा योजना में हिस्सा नहीं लिया. अब इस फैसले पर फिर से विचार करने का समय है क्योंकि केंद्र सरकार इस योजना के तहत बड़ी सब्सिडी देती है,” उन्होंने कहा.
मोहाली के कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि गन्ने जैसी फसलें इस स्थिति से उबर सकती हैं, लेकिन धान नहीं. “इससे फसलों के दाम बढ़ेंगे,” उन्होंने जोड़ा और कहा कि नुकसान का पूरा अंदाज़ा लगाना अभी जल्दबाज़ी होगी.

‘उम्मीद नहीं छोड़ी’
लेकिन तबाही के बावजूद पंजाब के किसानों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है. वे पानी उतरने के बाद देर से खरीफ सीजन की धान की फसल बोने का इंतज़ार कर रहे हैं.
अमृतसर के अजनाला तहसील के रहने वाले मंजीत सिंह की 2 हेक्टेयर ज़मीन पर धान की फसल बर्बाद हो गई. “मैं राजस्व विभाग की गिरदावरी (फसल निरीक्षण) का इंतज़ार कर रहा हूं. आकलन के बाद शायद सरकार हमें हुए नुकसान का कुछ मुआवज़ा दे,” उन्होंने कहा.
“अगर सरकार कोई मुआवज़ा देती है तो मैं फिर से अपने खेतों में बुवाई करूंगा ताकि कुछ आमदनी हो सके. और कोई विकल्प नहीं है,” मंजीत ने कहा. बहुत से किसान ‘गिरदावरी’ प्रक्रिया का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन यह अभी शुरू नहीं हुई है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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