(राधा रमण मिश्रा)
नयी दिल्ली, चार मई (भाषा) पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के बीच देश में हरित इमारतों की मांग तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, परंपरागत मकानों के मुकाबले इन घरों की कीमत थोड़ी अधिक होती है। रियल एस्टेट क्षेत्र के विशेषज्ञों ने यह बात कही है।
हरित इमारत आमतौर पर कम ऊर्जा खपत, पानी और अन्य संसाधनों के बेहतर उपयोग के हिसाब से तैयार की जाती है। इसमें वर्षा जल संचयन, सौर ऊर्जा के उपयोग के साथ ‘हेम्पक्रीट’ जैसे पर्यावरण अनुकूल निर्माण सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। इससे इन मकानों में स्वास्थ्य के मोर्चे पर लाभ के साथ बिजली, पानी का कुशल उपयोग होता है और अतत: रहन-सहन के खर्च में कमी आती है।
आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले रियल एस्टेट क्षेत्र के शीर्ष निकाय नारेडको (नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी हरि बाबू ने कहा, ‘‘देश में खासकर दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद जैसे शहरों में हरित रिहायशी परियोजनाएं धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही हैं। दिल्ली-एनसीआर के प्रमुख शहरों में नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद जैसे शहर हरित आवास के सक्रिय केंद्र के रूप में उभरे हैं। यहां कई प्रमुख कंपनियां ने आईजीबीसी (इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल), गृह (ग्रीन रेटिंग फॉर इंटिग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट) और ईडीजीई (अधिक दक्षता के लिए डिजाइन में उत्कृष्टता) प्रमाणन को अपनाया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हरित इमारतों की कीमतें आमतौर पर पारंपरिक इमारतों की तुलना में पांच से 10 प्रतिशत अधिक होती हैं। इसका कारण पर्यावरण-अनुकूल सामग्री, ऊर्जा-दक्ष प्रणाली के उपयोग और हरित प्रमाणन प्रक्रियाओं में होने वाला शुरुआती निवेश है। हालांकि, इस अतिरिक्त लागत की समय के साथ ऊर्जा और पानी में 20 से 30 प्रतिशत तक की बचत के जरिये भरपाई हो जाती है। इससे इन इमारतों की लंबी अवधि में कुल लागत कम हो जाती है।’’
रियल एस्टेट कंपनियों के प्रमुख संगठन क्रेडाई (कॉन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष शेखर जी पटेल ने कहा, ‘‘बढ़ती जागरूकता और पर्यावरण अनुकूल उपायों के साथ रहने की बढ़ती मांग से देश में हरित मकानों के क्षेत्र में निरंतर तेजी देखी जा रही है। दिल्ली-एनसीआर, विशेष रूप से, बेंगलुरु, मुंबई और हैदराबाद जैसे शहर इस बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। इन शहरों में हरित-प्रमाणित आवासीय परियोजनाओं का चलन तेजी से बढ़ रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हरित मकान परंपरागत घरों के मुकाबले थोड़े महंगे जरूर हैं लेकिन ये न केवल रहन-सहन की लागत को कम करते हैं, स्वास्थ्य के लिहाज से रहन-सहन की अच्छी स्थिति सुनिश्चित करते हैं बल्कि 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शुद्ध रूप से शून्य स्तर पर लाने के भारत के बड़े जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप भी हैं।’’
पटेल ने कहा, ‘‘हालांकि, छोटे बाजारों में लागत, जागरूकता और हरित निर्माण प्रौद्योगिकियों तक पहुंच को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं। लेकिन पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या और पर्यावरण प्रभाव, सामाजिक जिम्मेदारी और कंपनी संचालन (ईएसजी) से जुड़ी परिसंपत्तियों में निवेशकों की रुचि से हरित आवास की मांग में और तेजी आने की उम्मीद है…।’’
विशेषज्ञों के अनुसार, आज के घर खरीदार ऐसे आवास की तलाश कर रहे हैं जहां बिजली, पानी का कुशलता के साथ उपयोग हो, वायु गुणवत्ता बेहतर हो और कुल मिलाकर स्वस्थ वातावरण हो। मानसिकता में इस बदलाव के साथ देश के प्रमुख शहरों में वर्षा जल संचयन, अपशिष्ट पुनर्चक्रण और दूषित जल शोधन जैसी पर्यावरण के प्रति जागरूक गतिविधियों को अपनाया जा रहा है।
पटेल ने कहा, ‘‘रियल एस्टेट कंपनियां इन उभरती अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कदम उठा रही हैं और नई आवासीय परियोजनाओं में अधिक हरित सुविधाएं शामिल कर रही हैं। भारत में पहले ही 21 लाख से अधिक हरित-प्रमाणित घर और 60 से अधिक प्रमाणित टाउनशिप विकसित हो चुके हैं, जो मजबूत और बढ़ते बाजार की गति का संकेत देते हैं। जैसे-जैसे घर खरीदने में पर्यावरण अनुकूल उपाय एक प्रमुख विचार बन रहा है, हरित मकानों की मांग और भी बढ़ने की उम्मीद है।
हालांकि कुल हरित परियोजनाओं को देखा जाए तो रिहायशी क्षेत्र के मुकाबले वाणिज्यिक क्षेत्र इसमें आगे है।
हरि बाबू ने कहा, ‘‘महानगरों में हरित इमारतों के प्रति आकर्षण अब सामान्य बात है, लेकिन आवासीय क्षेत्र, हरित मानकों को अपनाने में
व्यावसायिक क्षेत्र से पीछे हैं। इसका प्रमुख कारण इसमें मकानों की लागत कुछ अधिक होती है और लोग कीमत को लेकर संवेदनशील होते हैं। इसके अलावा खासकर मझोले और छोटे शहरों (टियर-2 और टियर-3) शहरों में जागरूकता की कमी है।’’
पटेल ने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में भारत में हरित-प्रमाणित वाणिज्यिक स्थानों में महत्वपूर्ण तेजी आई है। इसका कारण कंपनियां दफ्तरों के लिए उस जगह को तरजीह दे रही हैं, जो ऊर्जा दक्ष, कार्बन उत्सर्जन और कर्मचारियों की बेहतरी के संबंध में वैश्विक पर्यावरण अनुकूल मानकों के अनुरूप हैं। यह बदलाव हरित-प्रमाणित कार्यस्थलों के लिए मांग को बढ़ावा दे रहा है।’’
क्रेडाई और कोलियर्स की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में छह प्रमुख शहरों में लिए गये ‘ग्रेड ए’ कार्यालय स्थलों में लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा हरित-प्रमाणित इमारतों का रहा। इनमें दिल्ली-एनसीआर और पुणे का प्रदर्शन अन्य प्रमुख बाजारों की तुलना में बेहतर है। इस साल कुल कार्यालय स्थान की मांग का 80 से 85 प्रतिशत हरित-प्रमाणित स्थानों से आने की उम्मीद है, जो हरित रियल एस्टेट विकास की ओर निरंतर बदलाव को दर्शाता है।
भाषा रमण अजय
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