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Friday, 19 April, 2024
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भारत में सरकारी बॉण्ड्स वैश्विक सूचकांकों को छूने और ज्यादा फॉरेन फंड्स को लाने वाले हैं? फिलहाल तो नहीं

सरकार और आरबीआई ने जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स के साथ बातचीत की है, लेकिन इंडेक्स मैनेजर्स को निवेशक समितियों से अप्रुवल की जरूरत है. घोषणा होने में अभी कम से कम 2 तिमाहियों का समय लग सकता है.

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नई दिल्ली: भारत सरकार के बांडों को वैश्विक सूचकांक में जगह मिलने की उम्मीद तो काफी समय से की जा रही है, लेकिन यह बहुत जल्द पूरी होती नहीं दिख रही है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, इसमें अभी कम से कम दो तिमाहियों का समय लग सकता है.

शीर्ष सरकारी सूत्रों ने कहा कि जेपी मॉर्गन गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स-इमर्जिंग मार्केट्स (GBI-EM), सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत पूरी हो चुकी है और इंडेक्स मैनेजर्स से लिस्टिंग पर अंतिम निर्णय के इंतजार में है.

सूत्रों ने बताया कि सूचकांक प्रबंधक प्रस्ताव को अपनी रीजनल और ग्लोबल इन्वेस्टर कमेटी के पास ले जाएंगे और सूचकांक में भारत सरकार के बांडों को शामिल करने की मंजूरी मांगी जाएगी.

एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘इस मामले में घोषणा होने से पहले प्रक्रियात्मक रूप से कम से कम दो तिमाहियों का समय लगेगा.’

ग्लोबल बॉन्ड सूचकांकों पर भारत सरकार के बांडों को सूचीबद्ध करने से बड़े पूंजी प्रवाह को आकर्षित करने और भारत को अपने बड़े राजकोषीय घाटे के एक हिस्से के लिए धन जुटाने में मदद मिलने की उम्मीद है.

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नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2022 में अब तक 20.3 बिलियन डॉलर का शुद्ध कैपिटल आउटफ्लो देखा है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में अनुमान से अधिक सब्सिडी खर्च और ऑटो ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती से भारत सरकार की वित्तीय स्थिति भी प्रभावित हुई है.

पिछले महीने ग्राहकों को एक नोट में अमेरिकी निवेश बैंकिंग फर्म गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि भारतीय बॉन्ड 2023 में जेपी मॉर्गन के सूचकांक में शामिल किए जा सकते हैं. यह एक ऐसा कदम जो देश के ऋण बाजार में 30 बिलियन डॉलर के मूल्य का इनफ्लो ला सकता है.

यूरोक्लियर के साथ वार्ता विफल होने के बाद इस साल की शुरुआत में भारतीय बांडों को वैश्विक बांड सूचकांकों में शामिल करने को लेकर संदेह पैदा हो गया था. यूरोक्लियर एक ट्रेडिंग और सेटलमेंट प्लेटफॉर्म है, जिसका इस्तेमाल निवेशक उस अधिकार क्षेत्र में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के रूप में पंजीकृत किए बिना विदेशी ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए करते हैं.

सूचकांक प्रबंधकों की ओर से जेपी मॉर्गन इंडेक्स के माध्यम से खरीदे जाने वाले भारत के बॉन्ड में निवेशकों के लिए पूंजीगत लाभ कर से संभावित कर छूट के लिए अनुरोध किया गया था. पहले उद्धृत अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि सरकार इसे नहीं देने पर अडिग थी क्योंकि यह एक गलत मिसाल कायम करती है और राजस्व का संभावित नुकसान होता है.’

लेकिन जेपी मॉर्गन इंडेक्स से रूसी प्रतिभूतियों के बाहर हो जाने से भारतीय प्रतिभूतियों को शामिल करने के लिए सूचकांक प्रबंधकों के बीच एक नया उत्साह और जरूरत पैदा कर दी. सरकारी अधिकारी ने बताया कि उन्हें स्थिर माना जाता है और निवेशकों को लगभग 7 प्रतिशत का अच्छा रिटर्न मिलता है.


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इतना उत्साह क्यों?

जैसे इक्विटी में एमएससीआई इंडेक्स और एफटीएसई इंडेक्स जैसे वैश्विक सूचकांक होते हैं, वैसे ही बॉन्ड के लिए ग्लोबल सूचकांक भी होते हैं जो कई देशों से ऐसी प्रतिभूतियों को ट्रैक करते हैं. ये सूचकांक निवेश संबंधी निर्णय लेने के लिए ग्लोबल इन्वेस्टर्स के लिए एक प्रमुख मानदंड के रूप में काम करते हैं.

बॉन्ड के लिए कुछ प्रमुख वैश्विक सूचकांकों में जेपी मॉर्गन और ब्लूमबर्ग-बार्कलेज शामिल हैं. ये दोनों भारत सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं. ये संस्थान उभरते बाजारों से लेकर देश-विशिष्ट सूचकांकों तक व्यापक श्रेणी के सूचकांक प्रदान करते हैं, लेकिन इन सूचकांकों में शामिल होना आसान नहीं है क्योंकि इनके मानदंड बहुत सख्त होते हैं.

इन सूचकांकों में सूचीबद्ध होने के लिए भारत सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती एफपीआई भारतीय ऋण प्रतिभूतियों में कितना निवेश कर सकते हैं, इस सीमा को हटाना था. इन सूचकांकों में कहा गया है कि उनके प्लेटफॉर्म पर ट्रेड की जाने वाली प्रतिभूतियों की मात्रा पर कोई सीमा नहीं होनी चाहिए.

पिछले दो सालों में दो ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स – जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स और एफटीएसई रसेल – ने भारत को शामिल करने की संभावना के चलते एक निगरानी सूची में डाल दिया था और कहा कि देश को व्यापार और निपटान के मामले में अपने प्रतिभूति बाजारों तक अधिक पहुंच की अनुमति देने की आवश्यकता है.

इसे सुविधाजनक बनाने के लिए आरबीआई ने 2020 में एक पूरी तरह से सुगम रास्ता पेश किया था. इसके तहत विदेशी निवेशक और संस्थान बिना किसी प्रतिबंध या निवेश कैप के भारतीय बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं.


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सितंबर में सरकार और RBI की बैठक

ग्लोबल बॉन्ड सूचकांकों पर सरकारी बांड की सूची से बड़े पूंजी प्रवाह को आकर्षित करने की उम्मीद है जो भारत को अपने बड़े राजकोषीय घाटे के हिस्से को फंड करने में मदद करेगा. फिलहाल राजकोषीय घाटा 16.61 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 प्रतिशत है.

अनुमान है कि सरकार इस वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए 2022-23 में 14.31 लाख करोड़ रुपये उधार लेगी.

राजकोषीय घाटा तब बनता है जब सरकार का खर्च उसके राजस्व से अधिक होता है. यह घाटा आमतौर पर बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों, बहुपक्षीय एजेंसियों और राष्ट्रीय लघु बचत कोष से उधार लेकर पूरा किया जाता है.

चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के लिए उधार कैलेंडर को अंतिम रूप देने के लिए वित्त मंत्रालय और आरबीआई की 28 सितंबर को बैठक होने वाली है. कैलेंडर साप्ताहिक उधार की मात्रा को परिभाषित करता है. सरकार की अपनी योजनाओं पर खर्च करने के लिए धन जुटाने की है.

सरकार ने अब तक अप्रैल-सितंबर की अवधि में उधार लिए जाने वाले 8.45 लाख करोड़ रुपये में से 90 प्रतिशत जुटा लिया है. शेष राशि – 5.86 लाख करोड़ रुपये – चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में उधार ली जाएगी.

ब्याज दरों में वृद्धि और आरबीआई द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के लिए द्वितीयक बाजार में बांड का एक बड़ा हिस्सा नहीं लेने के साथ, जैसाकि उसने पिछले साल किया था, यह माना जा रहा है कि सरकार वर्ष की पहली छमाही के लिए अपने उधार कार्यक्रम को सुचारू रूप से पूरा करने में सक्षम नहीं होगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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