नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) विमानन कंपनी एयर इंडिया को टाटा समूह को सौंपने के साथ देश में लगभग दो दशकों के बाद कर्ज में डूबी सरकारी कंपनियों के निजीकरण का कार्यक्रम फिर से शुरू हो गया है।
टाटा समूह द्वारा ‘महाराजा’ को खरीदने के लिए 18,000 करोड़ रुपये खर्च करने के साथ, यह देश में निजीकरण के जरिये सरकार को प्राप्त अब तक की सबसे अधिक राशि होगी। यह राशि 1999 से 2003-04 के बीच सरकारी कंपनियों की रणनीतिक बिक्री के माध्यम से जुटाई गई कुल राशि से भी अधिक है।
सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में टाटा समूह के साथ 18,000 करोड़ रुपये में राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया की बिक्री के लिए शेयर खरीद समझौता किया था।
सरकार ने 1999 से 2003-04 के दौरान 10 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) का निजीकरण करके लगभग 5,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की थी।
वर्ष 1999 में मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज लिमिटेड का 105 करोड़ रुपये में निजीकरण किया गया। वर्ष 2000-01 में बाल्को, लगन जूट मशीनरी कंपनी लिमिटेड का 554 करोड़ रुपये में विनिवेश हुआ।
सरकार ने वर्ष 2001-02 में वीएसएनएल, कंप्यूटरों का रखरखाव करने वाली कंपनी सीएमसी, हिंदुस्तान टेलीप्रिंटर्स लिमिटेड (एचटीएल), पारादीप फॉस्फेट लिमिटेड (पीपीएल), एचसीआई और आईटीडीसी की कुछ होटल संपत्तियों को बेचकर 2,089 करोड़ रुपये जुटाए।
इसके बाद वर्ष 2002-03 के दौरान हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल), इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन (आईपीसीएल), आईटीडीसी की कुछ होटल संपत्तियों को बेचकर 2,335 करोड़ रुपये जुटाए गए।
वही वर्ष 2003-04 में एचजेडएल (दूसरी शाखा), जेसप एंड कंपनी का 342 करोड़ रुपये में निजीकरण किया गया।
सरकार ने कुछ सीपीएसई में अपनी बहुलांश हिस्सेदारी भी उसी क्षेत्र में काम कर रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेच दी है। इस क्रम में इंडो बर्मा पेट्रोलियम कंपनी (आईबीपी) में 74 प्रतिशत सरकारी हिस्सेदारी को 2001-02 में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) को 1,153 करोड़ रुपये में बेचा गया।
वर्ष 2018 के दौरान तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में हिस्सेदारी 36,915 करोड़ रुपये में खरीदी।
वही वर्ष 2018-19 में आरईसी में सरकार की 52.63 फीसदी हिस्सेदारी पावर फाइनेंस कॉर्प को 14,500 करोड़ रुपये में बेची गई।
सरकार ने 2000-01 और 2019-20 के बीच नौ सीपीएसई में अपनी पूरी हिस्सेदारी अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को कुल 53,450 करोड़ रुपये में बेची।
गौरतलब है कि 2004 के बाद सार्वजनिक पेशकश (एफपीओ) और बिक्री पेशकश (ओएफएस) के जरिये सीपीएसई में अल्पांश हिस्सेदारी बेचने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ निजीकरण की प्रक्रिया में ठहराव देखा गया।
भाषा जतिन पाण्डेय
पाण्डेय
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