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Sunday, 22 December, 2024
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अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद वाकयुद्ध में बदला, कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं

अडाणी ग्रुप ने हिंडनबर्ग के आरोपों को निराधार, अनैतिक और कानून का उल्लंघन बताया, जबकि फर्म का कहना है कि अडाणी सच्चाई को झुठला रहे हैं और धोखाधड़ी के वास्तविक मुद्दों से बच रहे हैं.

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नई दिल्लीः अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद इस वीकेंड वाकयुद्ध में तब्दील हो गया. अडाणी एंटरप्राइजेज ने रविवार देर रात हिंडनबर्ग रिसर्च के मूल आरोपों पर 413 पन्नों का जवाब जारी किया, जिसमें कंपनी को “मैनहट्टन का मैडॉफ” कहा गया. बयान में ग्रुप ने कहा कि रिसर्च फर्म की रिपोर्ट “चुनिंदा गलत सूचनाओं का एक दुर्भावनापूर्ण संयोजन है. इसमें एक गुप्त उद्देश्य को चलाने के लिए निराधार और बदनाम आरोपों से संबंधित छिपे हुए तथ्य हैं.”

हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी के जवाब पर तुरंत प्रतिक्रिया दी. सोमवार की सुबह अडाणी के आरोपों का खंडन करते हुए इसने कहा कि “अडाणी के ‘413 पेज’ के जवाब में केवल हमारी रिपोर्ट से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित लगभग 30 पेज शामिल थे.”

हिंडनबर्ग ने कहा, अदालत के रिकॉर्ड के 330 पेज और उच्च स्तरीय वित्तीय, सामान्य जानकारी के 53 पन्ने और “अप्रासंगिक कॉर्पोरेट पहलों पर विवरण, जैसे कि यह महिला उद्यमिता और सुरक्षित सब्जियों के उत्पादन को कैसे प्रोत्साहित करता है, शामिल है.”

अडाणी ने हिंडनबर्ग पर अनैतिक होने और प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया है, जिसका खुलासा हिंडनबर्ग ने अपनी मूल रिपोर्ट में किया था. हालांकि, रिसर्च फर्म का कहना है कि अडाणी ग्रुप ने अपने द्वारा लगाए गए सबसे गंभीर आरोपों को दरकिनार कर दिया है – जो चेयरमैन गौतम अडाणी के बड़े भाई विनोद अडाणी, उनकी कथित शेल कंपनियों और अडाणी समूह की फर्मों के साथ उनके कथित लेन-देन से संबंधित हैं.

हिंडनबर्ग रिसर्च की पिछले हफ्ते की रिपोर्ट के बाद यह मुद्दा इस मोड़ पर पहुंच गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि अडाणी ग्रुप कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार में लिप्त था, जिसके परिणामस्वरूप शेयर की कीमत बहुत अधिक बढ़ गई और ग्रुप की कंपनियों को अत्यधिक लाभ हुआ. अडाणी ने इस पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए, आरोपों को खारिज कर दिया और हिंडनबर्ग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी. इस पर हिंडनबर्ग का मानना है कि ग्रुप सभी सवालों के जवाब नहीं दे पाएगा.

इस बीच, अडाणी ग्रुप की सूचीबद्ध संस्थाओं ने मूल रिपोर्ट जारी होने के एक दिन बाद, बुधवार को अपने शेयर की कीमतों में तेज़ी से गिरावट देखी. गणतंत्र दिवस की छुट्टी के बाद जब बाज़ार दोबारा खुले तो यह गिरावट और बढ़ गई. दो दिनों के कारोबार में, सूचीबद्ध अडाणी कंपनियों को बाजार पूंजीकरण में संयुक्त रूप से 4.17 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

मामले का प्रभाव सिर्फ स्टॉक की कीमतों से परे जाता दिखाई दे रहा है. इसके परिणामस्वरूप अडानी एंटरप्राइजेज के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) में खराब प्रतिक्रिया मिली. इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी को मोदी सरकार के खिलाफ उसके कथित करीबी रिश्तेदार और अडाणी ग्रुप के मौन समर्थन के खिलाफ हमले का एक और मौका मिल गया.


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‘भारत’ पर सोचा-समझा हमला

रविवार को अपनी प्रतिक्रिया में, अडाणी ग्रुप ने दावा किया कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट केवल एक विशिष्ट कंपनी के खिलाफ एक हमला नहीं था, बल्कि “भारत, भारतीय संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, और भारत की विकास की कहानी और महत्वाकांक्षा पर एक सुनियोजित हमला था.”

इस पर हिंडनबर्ग ने कहा कि ग्रुप अपने अध्यक्ष, गौतम अडाणी के उदय को भारत की सफलता के साथ मिलाने की कोशिश कर रहा था.

हिंडनबर्ग ने कहा, “स्पष्ट तौर पर हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है.”

इसने आगे कहा, वो यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने “देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को भारतीय ध्वज में लपेट लिया है.”

हिंडनबर्ग ने कहा, “हम यह भी मानते हैं कि धोखा तो धोखा ही है, भले ही यह दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक द्वारा किया गया हो.”

आरोपों पर इधर-उधर

कुल मिलाकर, अडाणी की ओर से दी गई प्रतिक्रिया का कहना है कि हिंडनबर्ग द्वारा उठाए गए अधिकांश मुद्दों का पहले ही अडाणी कंपनियों द्वारा खुलासा किया जा चुका है, जबकि बाकी या तो असंबंधित कंपनियों से संबंधित हैं या निराधार आरोप हैं.

अडाणी ग्रुप की प्रतिक्रिया के मुताबिक, “हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उन ‘88 सवालों’के जवाब मांगे गए हैं – इनमें से 65 उन मामलों से संबंधित हैं, जिनका खुलासा अडाणी पोर्टफोलियो कंपनियों ने अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध अपनी वार्षिक रिपोर्ट में किया है, जो समय-समय पर मेमोरेंडम, वित्तीय विवरण और स्टॉक एक्सचेंज के खुलासे करते रहते हैं.”

इसने आगे कहा, “शेष 23 प्रश्नों में से 18 सार्वजनिक शेयरधारकों और तीसरे पक्ष (अडाणी पोर्टफोलियो कंपनियों से नहीं) से संबंधित हैं, जबकि शेष 5 काल्पनिक तथ्य पैटर्न पर आधारित निराधार आरोप हैं.”

हालांकि, ग्रुप ने कहा कि वह सभी 88 सवालों के जवाब देने की कोशिश करेगा, जिस पर हिंडनबर्ग का मानना है कि ग्रुप ऐसा करने में विफल रहेगा.

हिंडनबर्ग ने कहा, “हमारी रिपोर्ट में अडाणी ग्रुप से 88 सवाल पूछे गए हैं. अपनी प्रतिक्रिया में, अडाणी उनमें से 62 का जवाब देने में विफल रहे हैं. इसके बजाय, वह मुख्य रूप से सवालों को कैटेगरी में बांट रहा है और सामान्यीकृत जानकारी प्रदान कर रहा है.”

हिंडनबर्ग ने आगे कहा, अन्य मामलों में, अडाणी ने केवल अपनी खुद की फाइलिंग की ओर इशारा किया और सवालों या प्रासंगिक मामलों को सुलझाया, वह दोबारा उठाए गए मुद्दों को हल करने में विफल रहे. “ग्रुप ने कुछ सवालों के जवाब दिए, और उन जवाबों ने हमारे निष्कर्षों की पुष्टि की, जैसा कि हमने विस्तार से रिपोर्ट में बताया है.”


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भाई के साथ व्यवहार के मुद्दे

हिंडनबर्ग ने कहा कि अडाणी ग्रुप विशेष रूप से उनकी रिपोर्ट में लगाए गए सबसे गंभीर आरोप से संबंधित सवालों का जवाब देने में विफल रहा – ग्रुप ने गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी के साथ अरबों डॉलर के संदिग्ध सौदे किए थे, जिसमें कई शेल कंपनियां शामिल थीं. इन सौदों पर हिंडनबर्ग ने “स्टॉक और लेखा हेरफेर के बारे में गंभीर सवाल उठाए”.

रिपोर्ट में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं जहां मॉरीशस में स्थित कथित रूप से विनोद अडाणी के स्वामित्व वाली कंपनियों ने अडाणी समूह के हिस्से के साथ सौदे किए थे, जिनका खुलासा नहीं किया गया था.

उदाहरण के लिए, सवाल संख्या 40, 42, 48, और 50 (और कई अन्य) में, हिंडनबर्ग उन लेन-देन के बारे में पूछ रहा है जो कथित रूप से अडाणी कंपनियों और क्रुनाल ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट, वकोदर, रेहवर इन्फ्रास्ट्रक्चर, माइलस्टोन ट्रेडलिंक और गार्डेनिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट के बीच हुए थे. यह सभी कंपनियां मॉरीशस में हैं और सभी लेन-देन जो कथित तौर पर भारतीय रेगुलेटर्स के सामने ज़ाहिर नहीं किए गए थे.

अडाणी ने अपने बयान में कहा, “क्रुनाल ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट, वाकोडर, रेहवर इंफ्रास्ट्रक्चर, माइलस्टोन ट्रेडलिंक, गार्डेनिया ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट और ‘निजी अडाणी संस्थाओं’ के साथ उपरोक्त उद्धृत लेनदेन भारतीय कानूनों या लेखा मानकों के तहत‘संबंधित पार्टी का लेनदेन’नहीं हैं. नतीजतन, हमें उनके ‘धन के स्रोत’के बारे में जानकारी नहीं है और न हमें इसके बारे में जागरूक होने की ज़रूरत है.”

हिंडनबर्ग ने तर्क दिया और प्रमुख मुद्दों को उठाते हुए दावा किया कि ग्रुप ने विनोद अडाणी के स्वामित्व वाली कई शेल कंपनियों के अस्तित्व का विस्तृत प्रमाण प्रदान किया था, अडाणी ग्रुप की प्रतिक्रिया ने लेन-देन से इनकार करने के बजाय केवल पारिवारिक संबंधों को दरकिनार कर दिया.

रिपोर्ट में कहा गया है, “दूसरे शब्दों में, हमें यह मान सकते हैं कि गौतम अडाणी को इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि उनके भाई विनोद ने अडाणी की संस्थाओं को भारी रकम क्यों उधार दी, और यह भी नहीं पता कि पैसा कहां से आया.”

इसने कहा, “अगर इनमें से कोई भी सच होता, तो गौतम आसानी से अपने भाई को फोन करके, या डिनर के समय उनसे पूछकर रहस्य को स्पष्ट कर सकते थे कि वह अपारदर्शी शेल कंपनियों के नेटवर्क के जरिए अडाणी-नियंत्रित संस्थाओं को अरबों डॉलर क्यों दे रहा है. वह अपने स्वयं के परिवार के निवेश कार्यालय के प्रमुख को भी बुला सकते थे और वही बात पूछ सकते थे.”

हिंडनबर्ग पर हमला

अपनी प्रतिक्रिया में, अडाणी ग्रुप ने भी रिसर्च फर्म पर हमला किया. ग्रुप ने दावा किया कि एक लघु-विक्रेता के रूप में, इसके गुप्त उद्देश्य थे जो अनैतिक थे. लघु-विक्रेता मूल रूप से एक स्टॉक मार्केट ऑपरेटर होता है, जो ऐसी स्थिति में रहता है कि उन्हें किसी विशेष स्टॉक की कीमत में गिरावट से लाभ होता है, जैसे कि अडाणी शेयरों के साथ क्या हुआ.

हिंडनबर्ग ने अडाणी ग्रुप पर अपनी मूल रिपोर्ट में खुलासा किया था, “व्यापक रिसर्च के बाद, हमने यू.एस.-ट्रेडेड बॉन्ड और गैर-भारतीय-ट्रेडेड डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स के माध्यम से अडाणी ग्रुप की कंपनियों में शॉर्ट पोजीशन ली है.”

इस पर ग्रुप ने जवाब दिया, “हिंडनबर्ग ने इस रिपोर्ट को किसी परोपकारी कारणों से प्रकाशित नहीं किया है, बल्कि विशुद्ध रूप से स्वार्थी उद्देश्यों से और लागू प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा कानूनों के खुले उल्लंघन के लिए प्रकाशित किया है.”

इसमें कहा गया है कि रिसर्च फर्म ने ‘शॉर्ट पोजिशन’ली और फिर, शेयर की कीमत को प्रभावित करने और गलत लाभ कमाने के लिए, हिंडनबर्ग ने स्टॉक की कीमत में हेरफेर करने और उसे कम करने और एक झूठा बाज़ार बनाने वालों पर एक दस्तावेज प्रकाशित किया.

ग्रुप ने कहा,“आरोप और कटाक्ष, जो तथ्य के रूप में प्रस्तुत किए गए थे, आग की तरह फैल गए, बड़ी मात्रा में निवेशकों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और हिंडनबर्ग ने इससे लाभ कमाया. शुद्ध परिणाम यह है कि सार्वजनिक निवेशक हार गए और हिंडनबर्ग ने लाभ कमाया है. इस प्रकार, रिपोर्ट न तो ‘स्वतंत्र’है और न ही इसका ‘उद्देश्य’ है और न ही ‘अच्छी तरह से रिसर्चड’ है.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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