(बिजय कुमार सिंह)
नयी दिल्ली, 24 मई (भाषा) विश्वबैंक के पूर्व अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने मंगलवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद हालांकि मजबूत है, लेकिन ‘विभाजन’ और ‘ध्रुवीकरण’ बढ़ने से देश की वृद्धि की ‘नींव’ को नुकसान पहुंच रहा है।
बसु ने यह भी कहा कि भारत की बड़ी चुनौती बेरोजगारी है। देश में बेरोजगारी 24 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गयी है, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘किसी देश की वृद्धि अकेले आर्थिक नीति पर निर्भर नहीं करती। इस बात के काफी प्रमाण हैं कि किसी राष्ट्र की आर्थिक सफलता का एक महत्वपूर्ण कारक लोगों के बीच भरोसा है।’’
जाने-माने अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘भारतीय समाज में विभाजन और ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। यह न केवल अपने-आप में दुखद है बल्कि यह देश की वृद्धि की बुनियाद को भी नुकसान पहुंचा रहा है।’’
बसु के अनुसार, एक बड़े उद्यमी वर्ग, अधिक कुशल कामगार और जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात में उच्च निवेश की वजह से भारत की नींव मजबूत है। हालांकि, कुशल श्रमिकों की संख्या पिछले कुछ साल से घट रही है।
उच्च मुद्रास्फीति को लेकर एक सवाल के जवाब में बसु ने कहा कि भारत में महंगाई की ऊंची दर का कारण वैश्विक है। यह कोविड-19 महामारी और यूक्रेन में युद्ध के कारण उत्पन्न आपूर्ति व्यवस्था की बाधाओं का नतीजा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, मुद्रास्फीति का कारण भारत के नियंत्रण से बाहर है। लेकिन मेरे लिये चिंता की बात यह है कि हम गरीबों और मध्यम वर्ग को इससे बचाने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं।’’
फिलहाल अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बसु ने कहा कि हालांकि खुदरा मुद्रास्फीति इस साल फरवरी में बढ़कर आठ साल के उच्चस्तर 7.8 प्रतिशत पर पहुंच गयी है, लेकिन थोक कीमत आधारित महंगाई दर 15.08 प्रतिशत पर है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने पिछले 24 साल में इतनी ऊंची थोक महंगाई दर नहीं देखी है…अभी जो हो रहा है वह 1990 के दशक के उत्तरार्ध की स्थिति की याद दिलाता है। उस समय पूर्वी एशियाई संकट का असर भारत में होने लगा था।’’
बसु ने कहा कि थोक मुद्रास्फीति पिछले 13 महीने से दहाई अंक में बनी हुई है। यह खराब स्थिति का संकेत है। इसका मतलब है कि मौजूदा उच्च मुद्रास्फीति पिछले साल से ही बढ़ती आ रही है।
उन्होंने कहा कि भारत को पूर्वी एशियाई संकट से मिली सीख को भूलना नहीं चाहिए। खुदरा मुद्रास्फीति थोक महंगाई दर की तरह और ऊपर जा सकती है।
बसु ने कहा, ‘‘मेरा अनुमान है कि भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति नौ प्रतिशत को पार करेगी। हमें निश्चित तौर पर यह सुनिश्चित करना है कि यह दहाई अंक में नहीं पहुंचे।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या भारतीय रिजर्व बैंक नीतिगत दर बढ़ाने के मामले में देरी की है, उन्होंने कहा कि आरबीआई की नीति मुख्य रूप से खुदरा महंगाई पर ही केंद्रित रही है।
बसु ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि आरबीआई ने देरी की है … भारत की अबतक की बड़ी चुनौती थोक मुद्रास्फीति थी। भारत को सबसे ज्यादा नुकसान बेरोजगारी से है। आरबीआई ने सतर्क रुख के साथ वृद्धि को गति देने के लिये हरसंभव कदम उठाया है।’’
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के दायरे में रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।
यह पूछे जाने पर कि क्या आरबीआई के नीतिगत दर को कड़ा करने से मुद्रास्फीति में नरमी आएगी, बसु ने कहा कि यह समय इस प्रकार के कदम उठाने का है।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमें आरबीआई के अलावा अन्य नीतिगत कदम उठाने की भी जरूरत है। वहां हस्तक्षेप करने की जरूरत है, जहां आपूर्ति व्यवस्था बाधित है और उसे बेहतर बनाने की जरूरत है…।’’
बसु ने यह भी कहा कि उन छोटे कारोबारियों, कामगारों और किसानों को सीधे मदद देने की जरूरत है, जो उत्पादन लागत बढ़ने से काफी प्रभावित हुए हैं।
भाषा रमण अजय
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