मुंबई, चार मई (भाषा) वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान राज्यों ने विभिन्न इकाइयों के जरिये अपने तय कार्यक्रम से अलग हटकर कर्ज लिया है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी देते हुए कहा गया है कि इससे राज्यों का इस तरह का ‘छुपा’ कर्ज एक प्रतिशत अंक बढ़कर राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 4.5 प्रतिशत हो गया है। राज्य इस तरह के कर्ज को अपने बही-खाते में नहीं दिखाते हैं।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी। यह रिपोर्ट तीन तिमाहियों में 11 राज्यों के जीएसडीपी के विश्लेषण पर आधारित है।
एजेंसी ने आगाह किया कि इस तरह का कर्ज राज्यों के जरूरी पूंजी विस्तार उपायों को प्रभावित करेंगे…..क्योंकि इन संसाधनों का इस्तेमाल कर्ज चुकाने के लिए किया जाएगा।
क्रिसिल ने कहा, “इस तरह का कर्ज राज्यों के स्वामित्व वाली संस्थाओं या कंपनियों द्वारा लिया गया है, जिनमें ऋण की गारंटी भी शामिल है। राज्यों के राजस्व का लगभग चार से पांच प्रतिशत चालू वित्त वर्ष में इस तरह की गारंटी ऋणों को चुकाने के लिए जाएगा।’’
एजेंसी ने कहा कि इस तरह के कर्ज पूंजीगत व्यय को वित्तपोषित करने के लिए राज्य सरकारों की क्षमता को कम करते हैं।
क्रिसिल ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती और राजस्व वृद्धि में कमी के चलते कई राज्यों ने अपनी क्षमता से बाहर जा कर यह कदम उठाया है।
रिपोर्ट के अनुसार इन दो कारणों से राज्यों का राजकोषीय घाटा बढ़कर जीएसडीपी का चार प्रतिशत हो गया है, जो पिछले दशक में दो से तीन प्रतिशत के मुकाबले काफी अधिक है।
भाषा जतिन अजय
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