धार/उज्जैन/इंदौर/भोपाल: मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल लाबराउदा गांव में रहने वाली 12 साल की धापू एक स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ती है. लेकिन बहुत जल्द ही उसकी जिंदगी बदल जाने वाली हैं.
उसकी मां सुशीला कहती हैं, “मिडिल स्कूल के बाद लड़कियों को गांव से कुछ किलोमीटर दूर भेजना पड़ता है और आजकल लड़कियों के साथ होने वाली घटनाओं ने हमारी चिंताएं बढ़ा दी हैं.” उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे लड़की बड़ी होती जाती है, हमारा डर और गहरा होता जाता है. हम शायद ही धापू को आगे पढ़ा पाएंगे.”
शायद उसके स्कूल छूटने में अभी समय लगे लेकिन पढ़ाई प्राथमिकताओं में नहीं है.
धापू कभी-कभार ही स्कूल जाती है और उसका अधिकांश समय घर और खेती में मदद करने में बीतता है.
धार जिले में आने वाले लबराउदा गांव की आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता सोना बाई ने कहा, “यहां लड़कियों को घर पर ही रखा जाता है ताकि काम कर के घर में अधिक पैसा आए.” उन्होंने कहा, “शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता और 18 साल की होते ही उनकी शादी कर दी जाती है.”
लबराउदा भले ही मध्य प्रदेश का सिर्फ एक गांव है, लेकिन इसकी दुर्दशा की गूंज पूरे राज्य में सुनाई देती है, जो महिलाओं और लड़कियों के लिए सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के मामले में सबसे खराब गांवों में से एक है.
2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में महिला साक्षरता 59.2 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 64.64 प्रतिशत है. मुख्य रूप से कृषि और श्रम से जुड़े 1,618 लोगों के गांव में पुरुषों की साक्षरता दर 83.06 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 50.86 प्रतिशत है.
मातृ मृत्यु दर और महिलाओं की स्कूली शिक्षा के वर्षों जैसे संकेतकों पर भी, राज्य राष्ट्रीय औसत और पड़ोसी राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात से बहुत पीछे है.
पिछले दो दशकों में मध्य प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में काफी विकास किया है. हालांकि अनुमान है कि 72 प्रतिशत आबादी खेती पर निर्भर है, लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि इसका लाभ महिलाओं को मिल रहा है.
सामाजिक विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य प्रदेश में महिलाओं की खराब जीवन स्थितियों के लिए समाज की पितृसत्तात्मक प्रकृति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अधिक न्यायसंगत समाज का निर्माण एक फोकस क्षेत्र रहा है लेकिन राज्य में कल्याण कार्यक्रमों को लागू करना बड़ी चुनौती है, जहां अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़ी आबादी रहती है.
दिप्रिंट से बात करते हुए रक्ता बाई, जो 2006 से आशा कार्यकर्ता हैं, ने कहा, “ग्रामीण स्तर पर बहुत पिछड़ापन है.”
उन्होंने कहा, “निश्चित रूप से लोगों के पास पहले की तुलना में अधिक पैसा है लेकिन महिलाएं अभी भी प्राथमिकता नहीं बन पाई हैं.”
“हम महिलाओं को उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी तो देते हैं लेकिन उनके पास खुद पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं होते हैं. पिछले कुछ महीनों से सरकार उन्हें हजार रुपये के लगभग दे रही है लेकिन यह केवल घरेलू राशन या बच्चों की शिक्षा पर ही खर्च किया जाता है.”
मौजूदा चुनावी मौसम के बीच, राज्य की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ-साथ विपक्षी कांग्रेस द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के तहत बड़े पैमाने पर महिलाओं को साधने की कोशिश हो रही है.
भाजपा सरकार ने मार्च 2023 में लाड़ली बहना योजना शुरू की जिसके तहत पात्र महिला लाभार्थियों (21-60 वर्ष की आयु, यदि वे घरेलू आय जैसे कुछ मानदंडों को पूरा करती हैं) को हर महीने उनके खातों में 1,250 रुपये दिए जाते हैं (सितंबर तक राशि 1,000 रुपये थी).
भाजपा ने सत्ता में लौटने पर राशि को और बढ़ाने का वादा किया है. इस बीच, कांग्रेस ने भी राज्य में महिलाओं को लुभाने की कोशिश की.
राज्य में शुक्रवार को अगली सरकार के लिए जनता ने मतदान किया है.
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महिलाओं की स्कूली शिक्षा
नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021, एनएफएचएस-5) के अनुसार, मध्य प्रदेश में 15 से 49 वर्ष की आयु की केवल 29 प्रतिशत महिलाओं ने 10 साल की स्कूली शिक्षा पूरी की है.
6-14 वर्ष के बच्चों के बीच असमानता नगण्य है, इस आयु वर्ग के 90 प्रतिशत बच्चे (लड़के और लड़कियां) स्कूल में नामांकित हैं. हालांकि, एनएफएचएस-5 डेटा से पता चलता है कि 15-17 साल की उम्र तक लड़कियों का नामांकन 50 प्रतिशत तक गिर जाता है.
उज्जैन के बोरमुंडला गांव के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक मोहम्मद रफीक खान ने कहा कि गांवों में स्थिति विशेष रूप से खराब है.
उन्होंने कहा, “ग्रामीण इलाकों में शुरुआती वर्षों में बच्चों को स्कूल भेजा जाता है, लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, वे पढ़ाई छोड़ देते हैं.”
उन्होंने कहा, “लड़के नौकरी की तलाश में शहर जाते हैं और लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है. मैं पिछले दो दशकों से इसे बहुत करीब से देख रहा हूं.”
खरगोन के झाड़ू बनाने वाले 40 साल के राधेश्याम ने कहा कि उनका एक बेटा और चार बेटियां हैं, जिनमें से दो की शादी कम उम्र में हो गई थी क्योंकि उन्हें शिक्षा देने के लिए परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी.
उन्होंने कहा, “हम झाड़ू बनाने का काम करते हैं और प्रतिदिन 200-250 रुपये कमाते हैं. ऐसी स्थिति में हमारी बेटियों को पढ़ाना संभव नहीं था.”
महिलाओं के बीच खराब शिक्षा दर का प्रभाव अन्य बातों के अलावा प्रजनन दर पर भी पड़ता है. एनएफएचएस-5 डेटा से पता चलता है कि कम पढ़ी-लिखी महिलाओं में प्रजनन दर अधिक है.
ग्रामीण भारत पर रिपोर्ताज का संग्रह ‘एक देश बारह दुनिया’ पुस्तक लिखने वाले लेखक शिरीष खरे ने कहा कि मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति दयनीय है.
उन्होंने कहा, “राज्य में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कभी भी उचित प्रयास नहीं किए गए. अगर कल्याणकारी योजनाओं को सामाजिक ढांचे से नहीं जोड़ा जाएगा तो सामाजिक संकेतक कैसे सुधरेंगे?”
माना जाता है कि मध्य प्रदेश की केवल 27.6 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है, जो 1911 में लगभग 8.2 प्रतिशत थी. इसे सरकारी अधिकारियों द्वारा कल्याणकारी उपायों के लागू करने में बाधा के रूप में माना जाता है.
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, “अभी भी, राज्य की 72 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और राज्य में 11 अलग-अलग जलवायु क्षेत्र हैं और प्रत्येक की एक अलग स्थलाकृति (टॉपोग्राफी) है.”
अधिकारी ने कहा, “तो, जनसंख्या सेटलमेंट के मामले में मध्य प्रदेश एक बहुत ही जटिल राज्य है, जो सामाजिक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सबसे बड़ी चुनौती है.”
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महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति
मध्य प्रदेश को नीति आयोग के 2019-20 स्वास्थ्य सूचकांक में 37 अंक मिले थे. मध्य प्रदेश का स्कोर काफी खराब है. सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश इससे पीछे थे.
इस बीच, इसके पड़ोसियों में महाराष्ट्र ने 69, गुजरात ने 64, राजस्थान ने 41 और छत्तीसगढ़ ने 51 अंक प्राप्त किये.
एक और चिंताजनक आंकड़ा यह है कि पिछले साल राज्य सभा में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में (15-49) आयु वर्ग की 52.9 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान एनीमिया “खराब मातृ एवं जन्म परिणामों से जुड़ा हुआ है”.
एनएफएचएस-5 डेटा से पता चलता है कि 2021 में मध्य प्रदेश में कम से कम चार प्रसवपूर्व देखभाल विजिट (व्यापक रूप से न्यूनतम आवश्यक के रूप में अनुशंसित) प्राप्त करने वाली माताओं का प्रतिशत 57.5 प्रतिशत था, जबकि गुजरात में 76.9 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 70.8 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 60.1 प्रतिशत था. राजस्थान के लिए यह आंकड़ा 55.3 फीसदी और यूपी के लिए 42.4 फीसदी था. 18 बड़े राज्यों (जनसंख्या के हिसाब से) में मध्य प्रदेश 13वें स्थान पर था.
मध्य प्रदेश में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर, एक निश्चित अवधि में प्रति 1 लाख जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु की संख्या) 173 है, जो राष्ट्रीय औसत 97 से कहीं अधिक है और असम (195) के बाद दूसरा सबसे खराब है. हालांकि, यह राज्य के 2007-09 के एमएमआर (269) की तुलना में सुधार को दर्शाता है.
आंकड़ों पर चर्चा करते हुए खरे ने कहा कि मध्य प्रदेश में समाज अपनी मूल प्रकृति में अभी भी सामंती है.
उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश और बिहार के विपरीत, मध्य प्रदेश में सामाजिक न्याय की कभी कोई बात नहीं हुई. न ही राज्य में सामाजिक संरचना ढहती दिख रही है.”
सागर स्थित हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी राजेश कुमार गौतम ने कहा कि कुल मिलाकर “मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति खराब है”. उन्होंने कहा कि यह महिलाओं के बीच देखे गए खराब संकेतकों का आधार है.
उन्होंने कहा, “इन दोनों क्षेत्रों में जितना निवेश होना चाहिए था, आवश्यकता के मुताबिक नहीं हुआ है.”
गौतम ने कहा कि सरकारी स्कूलों की हालत खराब होती जा रही है, जबकि राज्य में डॉक्टरों की भारी कमी है.
उन्होंने कहा, “शिक्षा और स्वास्थ्य में बेहतर निवेश करके ही सामाजिक संकेतकों में सुधार किया जा सकता है, लेकिन सरकारों का मकसद मानव विकास नहीं बल्कि वोट बैंक की राजनीति रही है.”
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महिलाओं के खिलाफ हिंसा
एनएफएचएस-5 डेटा से पता चलता है कि मध्य प्रदेश में 18 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 31 प्रतिशत महिलाओं का शारीरिक या यौन शोषण हुआ है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, जबकि मध्य प्रदेश की जनसंख्या पांचवीं सबसे अधिक है, यहां रेप के 6,462 मामले दर्ज हुए हैं.
पश्चिम बंगाल के बाद महिलाओं के लापता होने के मामले में भी मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य 2,830 नाबालिगों सहित 36,104 लापता महिलाओं का पता नहीं लगा सका है.
इंदौर स्थित अटल बिहारी वाजपेयी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ममता चंद्रशेखर ने कहा कि मध्य प्रदेश में सामाजिक और मानसिक रूप से बहुत पिछड़ापन है.
महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय से काम कर रही चंद्रशेखर ने कहा, “अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश की महिलाएं कई स्तरों पर पिछड़ती नजर आती हैं.”
उन्होंने कहा, “यहां निर्णय लेने में महिलाओं की संख्या बहुत कम है. मध्य प्रदेश में महिलाओं से संबंधित अपराध बढ़ रहे हैं. ऐसे में सामाजिक संकेतक कैसे ठीक होंगे?”
राज्य स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि और काम करने की जरूरत है लेकिन साथ ही कहा कि इस दिशा में प्रगति हुई है.
अधिकारी ने कहा, “कृषि विकास के अलावा हमारा ध्यान सामाजिक संकेतकों पर भी है.” उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि हमें देश और अन्य राज्यों की तुलना में महिलाओं से संबंधित संकेतकों में सुधार के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है. लेकिन पिछले दो दशकों में हमने इस दिशा में लगातार प्रगति की है और आंकड़ों में सुधार हुआ है.”
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सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाएं
2022-23 के मध्य प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य ने पिछले डेढ़ दशक में सामाजिक संरचना के भीतर समानता सुनिश्चित करने की दिशा में काफी निवेश किया है.
इसमें कहा गया है, “किए गए प्रयास और कार्य अब गरीबों, हाशिए पर मौजूद वर्ग और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के रूप में परिणाम दिखा रहे हैं.”
सर्वेक्षण में एनएफएचएस-5 के डेटा का हवाला देते हुए महिलाओं की स्थिति पर प्रभाव डालने के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना जैसी योजनाओं की भी सराहना की गई, जो नियमित वित्तीय सहायता के माध्यम से महिला सशक्तीकरण और शिक्षा सुनिश्चित करना चाहती है, और लड़कियों के लिए केंद्र सरकार की जमा योजना सुकन्या समृद्धि योजना भी शामिल है.
उदाहरण के लिए, इसमें कहा गया है, एनएफएचएस-5 (2019-21) के तहत लड़कियों का लिंग अनुपात एनएफएचएस-4 (2015-16) की अवधि के दौरान 927 से बढ़कर 956 हो गया है.
शिवराज सिंह चौहान सरकार अब 18 साल से मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने अपनी लाड़ली बहना योजना पर बड़ा दांव लगाया है, जो अनुमानित 1.25 करोड़ लाभार्थियों को लक्षित करती है.
शहरी से लेकर ग्रामीण इलाकों तक, योजना का प्रचार करने वाले पोस्टर और होर्डिंग राज्य भर में लगाए गए हैं, जिसमें लिखा है: “शिवराज भैया की मदद से बदल रहा बहनों का जीवन “.
हालांकि, लेखक शिरीष खरे ने कहा कि जब तक पैसे का सामाजिक आधार नहीं होगा, तब तक यह लोगों के जीवन को लाभ नहीं पहुंचा सकता है.
उन्होंने कहा, “सरकार लाड़ली बहना योजना के तहत पैसा देकर महिलाओं की स्थिति में सुधार की बात कर रही है, लेकिन मुफ्त पैसे से सामाजिक स्थिति नहीं बदलती है. इसके लिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है.”
खरे ने कहा कि नरेगा – ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना – एक सामाजिक आधार वाली योजना का एक बेहतरीन उदाहरण है क्योंकि इसमें काम के बदले पैसे का आश्वासन दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि लाड़ली बहना जैसी योजना “सिर्फ एक लाभार्थी वर्ग बनाने के लिए है”.
उन्होंने कहा, “राज्य में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए दीर्घकालिक नीतियों का अभाव दिखता है. लाड़ली बहना कोई दूरदर्शी योजना नहीं है.”
चंद्रशेखर ने इस योजना को “वोटबैंक की राजनीति” मानती है. उन्होंने कहा, “यह महिलाओं को सशक्त नहीं बनाएगा बल्कि कार्यबल को और भी आलसी बना देगा. अगर महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है तो सरकार को नीतिगत स्तर पर काम करना होगा.”
प्रोफेसर चंद्रशेखर ने कहा, “हालांकि पिछले कुछ वर्षों में बदलाव देखे गए हैं, लेकिन वे अपर्याप्त हैं.”
“महिलाओं को सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिए उन्हें बेहतर शिक्षा और अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है. मुफ्त चीज़ें अस्थायी फायदा पहुंचाती हैं लेकिन महिलाओं सहित समाज को दीर्घकालिक नुकसान उठाना पड़ता है.”
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