झारखंड/गढ़वा : खुदाजा बीबी (55) पिछले पांच साल से बिस्तर पर पड़ी हैं. उनके पैर आपस में सट गए हैं. उनका शरीर सीधा नहीं होता. पूरे शरीर में 24 घंटे बेतहाशा दर्द रहता है. विद्यावती देवी (27) पांच साल पहले शादी करके बिहार से झारखंड के गढ़वा आईं तो वह सब देख पा रही थीं, अब पूरी तरह अंधी हो चुकी हैं.
बुधनी देवी (35) को कुबड़ेपन के कारण उनके पति ने छोड़ दिया है. प्रभा देवी (53) के जांघ में सूजन है, पहले एक हाथ में झुनझुनी थी, अब पूरे शरीर में जकड़न सी हो गई है. यहां तक कि वह चप्पल भी नहीं पहन पाती हैं. सवीता देवी (30) कभी घुटने मोड़ कर बैठ नहीं पाती हैं.
ये कुछ गिनती के लोग नहीं हैं. झारखंड के गढ़वा जिले के चार गांवों के हर घर में एक विकलांग है. अधिकतर घरों में कोई न कोई बिस्तर पर सालों से पड़ा है. 30 से अधिक उम्र वाले हर शख्स में हड्डी रोग से जुड़ी कोई न कोई समस्या है. लोगों के कमर और हड्डियों में अभी से दर्द है. दांत झड़ रहे हैं. उनके पैर आपस में नहीं सट रहे हैं. यहां तक कि मुड़ भी नहीं पा रहे हैं.
ये जानकार आप चौंक जाएंगे कि इसकी वजह पानी है. साफ पानी नहीं, फ्लोराइड से भरा पानी. ये जहर जिले के पतरिया कला, पतरिया खुर्द, हुलहुला कला, हुलहुला खुर्द, बभनी गांव, प्रतापपुर मैनाहाटोला के लोग सालों से पी रहे हैं. गांव के ही समाजसेवी मोहन कुमार का कहना है कि बीते 10 सालों में 70 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
हालात का अंदाजा इस बात से लगाइए कि प्रतापपुर मैनाहाटोला में इस साल अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है. एक अस्पताल में भर्ती हैं, जिनके बचने की उम्मीद बहुत कम हैं. तीन लोग अभी भी बिस्तर पर अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं.
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कोई सालों से बिस्तर पर तो कोई घुटना तक नहीं मोड़ सकता
रांची से 206 किलोमीटर दूर गढ़वा जिले में दर्द और मौत का यह सिलसिला दशकों से चल रहा है. आजाद भारत में इन्हें आज तक साफ पानी मुहैया नहीं कराया जा सका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1-1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तय की है. वहीं इन गांवों में 7.8 मिलीग्राम प्रति लीटर है.
गढ़वा जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर पतरिया कला गांव के चमार टोला में घुसते ही साफ दिख रहा था कि लोग अपना काम तो कर रहे हैं, लेकिन हर एक चेहरा दर्द से परेशान है. हरीराम (65) और मंगरू राम (63) खाट पर लेटे थे. पूछने पर बताया कि कमर से नीचे इतना दर्द और कमजोरी है कि उठना मुश्किल है. बुधनी देवी की कमर पूरी तरह झुक चुकी है. अधिकतर काम वह बेटे का कंधा पकड़ कर ही करती है. हाल ही में विजयनाथ तिवारी (63) का निधन हुआ है. उनके बेटे संजीत तिवारी ने बताया कि पिताजी का स्पाइनल कोर्ड पूरी तरह सड़ चुकी थी.
वह बताते हैं कि 2005 में पानी की टंकी और फिल्टर प्लांट निर्माण शुरू हुआ जिसमें पास के कुमा डैम से पानी आना है. अभी तक चारदीवारी का भी निर्माण नहीं हो पाया है. उसी साल सभी घरों में फिल्टर दिया गया था, लेकिन दो माह बाद वह भी खराब हो गया.
हुलहुला खुर्द गांव के रमजान अंसारी बताते हैं कि चापाकल से पानी भरने के चार घंटे बाद वह पीला और दुर्गंधयुक्त हो जाता है. प्यास से मरने से ज्यादा जरूरी है इस जहर वाले पानी को पी लेना. नईमुद्दीन बताते हैं लगभग 150 घर हैं गांव में, सभी का यही हाल है.
गांव में आज तक कोई मेडिकल कैंप नहीं लगा है. पेशे से किसान जबार अंसारी के जोड़ों में दर्द है, उनका दांत कमजोर होकर गिर रहा है. गांव की सुबेदा खातून (16) बचपन से अंधेपन का शिकार हो गईं हैं.
मरने की राह देख रहे बीमारों में अधिकतर महिलाएं
गढ़वा जिले से 12 किमी दूर प्रतापपुर गांव में हालात और भी खराब हैं. यहां हर घर में एक इंसान बिस्तर पर पड़ा हुआ है. सभी को लगभग एक ही बीमारी. ऊषा कुमारी का 9वीं की परीक्षा इसलिए छूट गई कि वह अपनी मां का इलाज कराने रांची में 20 दिन रह गई. मां कौशिल्या देवी बीते पांच सालों से उठ नहीं पाती हैं. बिदेसी राम पिछले 10 साल से बीमार हैं. बीमारों में अधिकतर लोग चमार जाति के हैं.
गांव के समाजसेवी मोहन कुमार अपना सिर दिखाते हुए कहते हैं अभी 10 दिन पहले बिगन राम (चाचा) मरे हैं, देख नहीं रहे हैं, बाल छिलाए हुए हैं. बिदेसी राम की तरफ इशारा करते हुए- अब ये मरने वाले हैं, फिर बाल छिलाना होगा.
कहते हैं, यहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा 7.85 मिलीग्राम प्रति लीटर तक चली जाती है. लगभग नौ करोड़ रुपए की लागत वाली पानी की टंकी बीते तीन सालों से बन रही है. अगर कुछ सालों में यह बन भी जाता है तो गांव में अभी तक बिजली नहीं आई है, पानी कहां से सप्लाई किया जाएगा.
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यह हाल तब है जब राज्य बनने के बाद से अब तक जिले को दो-दो नेता स्वास्थ्य मंत्री बन चुके हैं. वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी का घर इसी जिले में है. भवनाथपुर (गढ़वा जिले का विस क्षेत्र) के विधायक भानु प्रताप शाही स्वास्थ्य मंत्री का पद संभाल चुके हैं.
जल संसाधन मंत्री को मामले की जानकारी तक नहीं
जल संसाधन मंत्री रामचंद्र सहिस ने बताया कि उन्हें अब तक इसकी जानकारी नहीं है. गांव के नामों से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि इलाके के विधायक से वह जानकारी लेते हैं. विभाग के इंजीनियर को फोन कर पूछते हैं कि निर्माण धीमा क्यों है. रामचंद्र सहिस ने बीते मार्च में ही मंत्री पद की शपथ ली है. इससे पहले बीते चार सालों से चंद्रप्रकाश चौधरी विभाग के मंत्री थे.
बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटी) की ओर से इन इलाकों की स्थिति पर साल 2005 में ही एक रिसर्च किया गया था. रिसर्च टीम के प्रमुख डॉ. गोपाल पाठक बताते हैं कि पूरी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई थी. उस पर एक्शन प्लान बना कि नहीं इसकी जानकारी उन्हें नहीं है.
केंद्रीय जल संसाधन बोर्ड के मुताबिक गढ़वा के अलावा पलामू, रांची, बोकारो, गिरिडीह, गोड्डा, गुमला में भी फ्लोराइड की मात्रा तय मानक से अधिक है. बोर्ड की वेबसाइट पर धनबाद का नाम दर्ज नहीं है, लेकिन इस जिले में भी कई गांव इससे प्रभावित हैं.
वहीं फ्लोराइड इंडिया नाम की वेबसाइट के मुताबिक देशभर के एक लाख गांव और एक करोड़ से अधिक लोग इससे प्रभावित हैं. इसमें 22 राज्यों के 200 से अधिक जिले शामिल हैं.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी स्थिति जस की तस
राज्य जल संसाधन विभाग की ओर से 2016 में जारी किए गए एक आंकड़े के मुताबिक 12 जिलों के पानी में फ्लोराइड (1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर लिमिट है) की मात्रा, 11 जिलों में नाइट्रेट (45 मिलीग्राम प्रति लीटर लिमिट है), 1 जिले के पानी में आर्सेनिक (0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर लिमिट है) और 6 जिलों के पानी में आयरन (1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर लिमिट है) अधिक है.
अखबारों में खबर छपने के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने 16 जून 2016 में पूरे मसले पर स्वतः संज्ञान लिया था. गढ़वा जिले के सेशन और डिस्ट्रिक्ट जज को रिपोर्ट सौंपने को कहा. रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि इन जगहों पर फ्लोराइड की मात्रा तय सीमा से अधिक है, साथ ही 12 में 9 फिल्ट्रेशन प्लांट काम नहीं कर रहे हैं. पीआईएल संख्या 3113 में कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि फिल्टर प्लांट सुधारें. जब तक इसकी व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक साफ पानी की वैकल्पिक व्यवस्था करें.
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2011 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मसले पर स्वतः संज्ञान लिया था. आयोग की ओर से जारी प्रेस रिलीज में राज्य के मुख्य सचिव को पूरे मसले पर जांच और कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपने को कहा था.
हर घर नल, हर घर जल योजना की शुरुआत सीएम रघुवर दास 2017 में ही कर चुके हैं. इन दो सालों में भी इस योजना का छंटाक भर फायदा अगर इन चार गावों को नहीं मिलता दिख रहा है. लिहाजा विकलांगता का भय बना रहता है जिससे मुक्त होने की फिलहाल कोई संभावना नहीं दिख रही है.
(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.)