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Wednesday, 25 December, 2024
होमदेशपुलिस मुठभेड़ों में कानून की उचित प्रक्रिया का पालन हो रहा है: असम सरकार ने गौहाटी उच्च न्यायालय को बताया

पुलिस मुठभेड़ों में कानून की उचित प्रक्रिया का पालन हो रहा है: असम सरकार ने गौहाटी उच्च न्यायालय को बताया

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गुवाहाटी, नौ फरवरी (भाषा) असम सरकार ने गौहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में दावा किया है कि पिछले साल मई से असम में हुई पुलिस मुठभेड़ों के सभी मामलों में कानून की उचित प्रक्रिया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सभी दिशा-निर्देशों का पालन किया जा रहा है।

असम सरकार ने एक जनहित याचिका के संबंध में दाखिल हलफनामे में अदालत को सूचित किया कि पिछले साल मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के पदभार संभाले जाने के बाद 10 मई से इस साल 28 जनवरी तक पुलिस कार्रवाई में 28 लोग मारे गए हैं और 73 अन्य घायल हुए हैं। असम सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेशानुसार सात फरवरी को ‘‘विस्तृत हलफनामा’’ दाखिल किया, जिसकी एक प्रति पीटीआई-भाषा के पास उपलब्ध है।

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मुठभेड़ों से संबंधित जनहित याचिका की सुनवाई 10 फरवरी तक के लिए टाल दी है।

गृह एवं राजनीतिक विभाग के अतिरिक्त सचिव आशिम कुमार भट्टाचार्य ने हलफनामे में कहा, ‘‘जिला पुलिस कानून की उचित प्रक्रिया और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन कर रही है, इसमें एनएचआरसी द्वारा जारी दिशा-निर्देश शामिल हैं।’’

उन्होंने कहा कि एनएचआरसी के निर्देशों के अनुसार छह-मासिक ‘‘विवरण’’ भी नियमित रूप से जमा किए जा रहे हैं और इस तरह की आखिरी रिपोर्ट पिछले साल दो सितंबर को असम पुलिस ने प्रस्तुत की थी।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘…प्रत्येक मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है और मामलों में तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए जांच की जा रही है। मई 2021 से 28 जनवरी 2022 तक पुलिस कार्रवाई में कुल 28 लोगों की मौत हुई है और 73 घायल हुए हैं।’’ हलफनामे के साथ संलग्न तालिका में सरकार ने इन मुठभेड़ों का जिलेवार विवरण दिया है।

इससे पता चलता है कि पुलिस गोलीबारी की घटनाएं 27 जिलों में हुईं और सबसे ज्यादा 10 लोग कार्बी आंगलोंग में मारे गए, जबकि सबसे ज्यादा नौ लोग गुवाहाटी में मारे गए। हलफनामे में आगे कहा गया है कि गृह और राजनीतिक विभाग ने असम मानवाधिकार आयोग (एएचआरसी) के स्वत: संज्ञान लेने पर उसके आदेशानुसार जांच की और पिछले साल 30 अक्टूबर को संस्था को रिपोर्ट सौंपी गई।

इसमें कहा गया है, ‘‘…असम सरकार ने अब तक डिब्रूगढ़, जोरहाट, नागांव, तेजपुर, धुबरी, सिलचर, तिनसुकिया, उत्तरी लखीमपुर, मंगलदोई, गोलपारा, नलबाड़ी और बोंगईगांव में 12 सत्र अदालतों को इसके लिए नामित किया है।’’ इन अदालतों को 1996 और 1998 में डिब्रूगढ़, जोरहाट, नागांव, सोनितपुर, धुबरी, कछार, तिनसुकिया, लखीमपुर, दरांग, गोलपारा, नलबाड़ी और बोंगाईगांव जिलों के लिए मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधान के अनुसार नामित किया गया था।

जनहित याचिका के अधिवक्ता आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर ने दायर की है। याचिका में असम सरकार के अलावा, असम पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी), राज्य के कानून एवं न्याय विभाग, एनएचआरसी और एएचआरसी को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया है। जवादर ने अपनी याचिका में अदालत की निगरानी में किसी स्वतंत्र एजेंसी जैसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), विशेष जांच दल (एसआईटी) या अन्य राज्यों की पुलिस टीम से जांच कराने का अनुरोध किया है।

उन्होंने उच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश द्वारा घटनाओं की न्यायिक जांच कराने और पीड़ित परिवारों को उचित सत्यापन के बाद मुआवजा दिए जाने का भी अनुरोध किया है। जवादर ने जनहित याचिका में दावा किया कि 80 से अधिक ‘‘फर्जी मुठभेड़’’ हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप 28 लोग मारे गए और 48 लोग घायल हुए।

याचिका में कहा गया है कि मारे गए या घायल हुए लोग खूंखार अपराधी नहीं थे और सभी मुठभेड़ों में पुलिस का तौर-तरीका एक जैसा रहा है। याचिका में बताया गया है कि समाचार पत्रों में प्रकाशित पुलिस बयानों के अनुसार, आरोपियों ने पुलिस कर्मियों की सर्विस रिवॉल्वर छीनने की कोशिश की और आत्मरक्षा में पुलिस को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी जिसमें कथित अपराधी मारा गया या घायल हुआ।

इससे पहले याचिकाकर्ता ने 10 जुलाई को एनएचआरसी में कथित फर्जी मुठभेड़ की शिकायत दर्ज कराई थी। एनएचआरसी ने पिछले साल नवंबर में मामले को एएचआरसी को स्थानांतरित कर दिया था, जिसने कथित फर्जी मुठभेड़ों पर स्वत: संज्ञान लिया और असम सरकार से रिपोर्ट मांगी थी।

भाषा सुरभि अनूप

अनूप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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