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Monday, 23 December, 2024
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VHP ने UP सरकार से जनसंख्या नीति के ड्राफ्ट से वन-चाइल्ड नॉर्म हटाने को कहा

VHP ने बिल के सेक्शन 5, 6(2) और 7 पर ऐतराज़ जताया है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों और अन्य लोगों को, एक बच्चे के लिए प्रोत्साहन देने की बात कही गई है.

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नई दिल्ली: शुक्रवार को राज्य विधि आयोग की ओर से जारी उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के मसौदे पर चिंता व्यक्त करते हुए विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने पैनल को मसौदे से एक बच्चे का नॉर्म हटाने के लिए कहा है.

यूपी विधि आयोग को लिखे एक पत्र में वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021 का अध्ययन किया है, जिसमें संशोधन के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. पत्र में कहा गया है, ‘बिल की प्रस्तावना में कहा गया है कि ये एक विधेयक है जिसका लक्ष्य जनसंख्या को स्थिर करना और (ii) और दो बच्चों के नियम को बढ़ावा देना है. विश्व हिंदू परिषद दोनों विषयों से सहमत है.’

लेकिन, वीएचपी ने बिल के अनुच्छेद 5, 6(2) और 7 पर ऐतराज़ जताया है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों और अन्य लोगों को परिवार में एक बच्चे के लिए प्रोत्साहन देने की बात कही गई है.

पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नीति का एक उद्देश्य है कुल प्रजनन दर (टीएफआर) को एक निर्धारित अवधि में 1.7 पर लाना. हमारा सुझाव है कि विधेयक के अनुच्छेद 5, 6(2) और 7 और टीएफआर को 1.7 पर लाने के उद्देश्य पर, पुनर्विचार की आवश्यकता है’. उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को ‘यूपी जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021’ का पहला मसौदा जारी किया, और 19 जुलाई तक लोगों से सुझाव आमंत्रित किए हैं.

प्रस्तावित क़ानून में दो बच्चों के मानदंड का पालन करने वाले परिवारों के लिए कई तरह के प्रोत्साहनों की बात कही गई है. इनमें सरकारी कर्मचारियों के लिए सेवा के दौरान दो अतिरिक्त वेतन वृद्धियां, प्लॉट या मकान की ख़रीद में सब्सीडी, और ईपीएफ में तीन प्रतिशत वृद्धि शामिल हैं.

उन लोगों के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन हैं जिनके केवल एक बच्चा है. इनमें दो अतिरिक्त वेतन वृद्धियां और बच्चे के 20 वर्ष की आयु को पहुंचने तक, उसके लिए मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल शामिल हैं. सभी शिक्षा संस्थाओं में अकेले बच्चे को दाख़िले में प्राथमिकता दी जाएगी.

‘बढ़ता असंतुलन’

पत्र में ये भी कहा गया है कि ‘उत्तर प्रदेश के मामले में एक बच्चे की नीति के नतीजे में, विभिन्न समुदायों के बीच असंतुलन और बढ़ सकता है, क्योंकि ऐसा देखा गया है कि परिवार नियोजन और गर्भ-निरोध से जुड़े प्रोत्साहन और निरुत्साहन की, इन समुदायों में अलग अलग प्रतिक्रियाएं होती हैं.

उसमें कहा गया है कि भारत के कई सूबों में ये संतुलन बढ़ रहा है. ‘असम और केरल जैसे राज्यों में ये असंतुलन चिंताजनक स्तर को छू रहा है, जहां आबादी की कुल वृद्धि में कमी आई है. उन दोनों सूबों में हिंदुओं की टीएफआर 2.1 की प्रतिस्थापन दर से काफी नीचे आ गई है, लेकिन मुसलमानों की टीएफआर असम में 3.16 और केरल में 2.33 है. इस तरह इन राज्यों में एक समुदाय संकुचन के दौर में दाख़िल हो गया है, जबकि दूसरा अभी विस्तारशील है’.


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वीएचपी आगे तर्क देती है कि उत्तर प्रदेश को ‘उस स्थिति में आने से बचना चाहिए’. ‘पॉलिसी को असंतुलन को दूर करने के हिसाब से बदला जाना चाहिए, वरना एक बच्ची की नीति अंत में उल्टा ही काम करेगी’.

पत्र में कुमार कहते हैं: ‘किसी समाज में आबादी तब स्थिर होती है, जब किसी महिला के प्रजनन जीवन में (जिसे कुल प्रजनन दर कहते हैं), उसके द्वारा जन्मे गए बच्चों की औसत संख्या दो से कुछ ऊपर रहती है. ऐसा तब होता है जब टीएफआर 2.1 होती है. इस दर को प्रतिस्थापन दर भी कहा जाता है. टीएफआर के इस स्तर पर दो बच्चे होते हैं, जो दो पेरेंट्स की जगह लेने के लिए होते हैं, और अतिरिक्त 0.1 बच्चा उस संभावना की भरपाई के लिए होता है जिसमें कोई बच्चा प्रजनन आयु को पहुंचने से पहले मर जाए, या ऐसी ही कोई बर्बादी हो जाए.

इसलिए, जनसंख्या-स्थिरता को हासिल करने के लिए दो बच्चों की नीति को वांछनीय समझा जाता है. प्रति महिला औसतन दो बच्चों से कम का लक्ष्य रखने वाली नीति के नतीजे में, आगे चलकर आबादी का संकुचन होने लगता है. ऐसे संकुचन के कई नकारात्मक सामाजिक और आर्थिक परिणाम सामने आते हैं’. उसमें आगे कहा गया, ‘संकुचित होती आबादी में काम करने की आयु और निर्भर आबादी के बीच का अनुपात गड़बड़ा जाता है. ऐसे लोगों की संख्या बढ़ जाती है, जिनका काम करने की आयु वाले हर व्यक्ति को ख़याल रखना होता है. चरम मामले में, एक बच्चे की नीति ऐसी स्थिति में पहुंचा देगी, जहां दो पेरेंट्स और चार ग्राण्ड पेरेंट्स की देखभाल के लिए, काम करने की आयु वाला केवल एक वयस्क होगा.’

चीन की मिसाल देते हुए कुमार अपने पत्र में कहते हैं, ‘चीन में, जिसने 1980 में एक बच्चे की नीति को अपनाया था, उसे 1-2-4 घटना कहा जाता था. उससे पार पाने के लिए चीन को ऐसे पेरेंट्स के लिए अपनी एक बच्चे की नीति में ढील देनी पड़ी, जो ख़ुद अपने पेरेंट्स की इकलौती संतान थे. कहा जाता है कि चीन में आधे से अधिक माता-पिताओं पर, एक बच्चे की नीति कभी लागू नहीं की गई. लगभग तीन दशक के भीतर उसे पूरी तरह वापस लेना पड़ा.’

पत्र में ये भी कहा गया है कि इकलौते बच्चे ‘सामाजिक रूप से उतने समझौता परक नहीं होते’. ‘आंशिक रूप से ऐसा इसलिए है कि वो भाई-बहनों से साझा करना नहीं सीखते, और दूसरा ये कि मां-बाप उनको ज़्यादा लाड़-प्यार से पालते हैं और उनके नख़रे उठाते हैं. इसे ‘बाल सम्राट’ सिण्ड्रोम भी कहा गया है’.

पत्र में सुझाव दिया गया है कि अनुभाग 5 और परिणामस्वरूप अनुच्छेद 6 (2) और 7 को हटा दिया जाए, जिससे ‘जनसंख्या संकुचन तथा एक बच्चा नीति के अवांछनीय सामाजिक और आर्थिक परिणामों से बचा जा सके, और मां-बाप की जगह बच्चे को पुरस्कृत या दण्डित करने की विसंगति को दूर किया जा सके’. वीएचपी ने अपने अभिवेदन की मौखिक सुनवाई में शरीक होने का भी सुझाव दिया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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