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Friday, 26 April, 2024
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दलदली सड़कें, भूस्खलन- केवल अफवाहें ही मणिपुर के इस जिले में वैक्सीनेशन के लिए अकेली बाधा नहीं है

वैक्सीनेशन के मामले में तामेंगलोंग मणिपुर में सबसे खराब प्रदर्शन वाले जिलों में से एक है. जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि स्थिति में सुधार के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है.

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तामेंगलोंग, मणिपुर: मणिपुर में तामेंगलोंग के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ सुनील कामेई शहर के छोटे से मेडिकल ऑफिस के परिसर में खड़े होकर एक 16 सीटर मिनी बस को थोड़ी परेशानी के साथ देख रहे हैं. इस मिनी बस से जिले की स्वास्थ्य टीम के नौ सदस्यों को मुख्यालय से 21 किमी दूर संगलुंगपांग गांव तक टीकाकरण के लिए जाना-आना है. डॉ कामेई को यह भरोसा नहीं है कि इस मिनी बस से यह काम संभव हो पाएगा.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘21 किलोमीटर कोई ज्यादा दूरी नहीं है लेकिन जब आप इन सड़कों की स्थिति को देखते हैं, तो लगता है कि इन कारों को इन पर चल पाने की स्थिति में तो होना चाहिए.’

कार्यालय परिसर की छोटी-सी पार्किंग में खड़ी कुछ बदहाल कारें यह बताने के लिए काफी हैं कि जिले की स्वास्थ्य टीम यहां की आबादी के टीकाकरण का काम किन परिस्थितियों में कर रही है. जिला मुख्यालय में ही ‘पक्की’ सड़कें नजर आती है. जिले के बाकी हिस्सों की बात करें तो कहीं चिकनी और ऊपर से काली दिखने वाली सड़कें नहीं हैं. हर जगह मिट्टी पर चलते रहने के कारण बन गए रास्ते नजर आते हैं या फिर वे सड़के हैं जो दशकों पहले बनी थीं और एकदम जर्जर अवस्था में पहुंच गई हैं.

लेकिन खराब सड़कें तो समस्या का सिर्फ एक पहलू भर हैं.

कामेई ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह मणिपुर का सबसे दूरस्थ जिला है. हमारे लिए मैनपॉवर और बुनियादी ढांचे का अभाव बड़ी समस्या है. कहीं पहुंचने में हमें दोगुना समय और पैसा खर्च करना पड़ता है और यह काम हम आधी वर्कफोर्स के साथ करते हैं.’

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डॉ. सुनील कामेई ने मणिपुर में ग्रामीणों को कोविड वैक्सीन के बारे में परामर्श दिया | सिमरिन सिरूर/दिप्रिंट

इन समस्याओं के अलावा टीके को लेकर हिचकिचाहट ने भी जिले में कोविड-19 टीकाकरण अभियान को बुरी तरह प्रभावित किया है. जब कोविड-19 वैक्सीन कवरेज की बात आती है, तो तामेंगलोंग पांच सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले जिलों में से एक है- 1.56 लाख (2011 की जनगणना) आबादी वाले इस जिले में 9 जुलाई तक केवल 12,169 पहली खुराक ही दी जा सकी है.

मणिपुर में कोविड-19 की स्थिति को देखते हुए मामला और अधिक गंभीर हो जाता है. हालांकि, तामेंगलोंग में सक्रिय मामले कम हैं- केवल 60 केस- लेकिन मणिपुर में एक महीने से ज्यादा समय से पॉजिटिविटी रेट 10 प्रतिशत से अधिक बना हुआ है, यह दर्शाता है कि यहां महामारी और फैलने की संभावना है.

वैक्सीन पर हिचकिचाहट दूर करने के लिए नकद प्रोत्साहन

दिप्रिंट भी स्वास्थ्य टीम के साथ जिले को इम्फाल से जोड़ने वाले तामेंगलोंग-खोंगसांग राजमार्ग पर स्थित गांव संगलुंगपांग में पहुंचा और इस पूरी कवायद में 10 घंटे से अधिक का समय लगा. इस दौरान छह घंटे यात्रा में बीते, दो जगह भूस्खलन के कारण फैला मलबा हटाए जाने का इंतजार करने में और मुख्यालय तक सुरक्षित वापसी के लिए एक तूफान गुजरने की प्रतीक्षा में.

राजमार्ग का 38 किलोमीटर लंबा स्ट्रेच, जिसे ठीक करने का काम अभी केवल आधा ही पूरा हुआ है, जगह-जगह कीचड़ और चट्टानी दलदल से घिरा था, जिसने मानसून के मौसम में स्थिति को और बदतर कर दिया है. मानसून का असर इस क्षेत्र में साल के छह महीने रहता है. जिन जगहों पर सड़क संकरी होती है, वहां सड़क के किनारे खड़ी ढलान नजर आती है.

जोखिम भरे या फिर बिना किसी सड़क वाले रास्ते पर यात्रा करना स्वास्थ्य टीम और जिला प्रशासन के लिए एक आम बात हो चुकी है.

ऑक्सीलरी नर्स मिडवाइफ (एएनएम) आर.के. रीटा ने हाईवे की तरफ संकेत करते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘यह तो बेहतर मार्गों में से एक है. एक दिन तो एक दूरवर्ती गांव में गए थे जहां पहुंचने में चार घंटे का समय लगा. कार खराब हो गई और हमें कीचड़ में उसे धक्का देकर ले जाना पड़ा.’

तमाम कवायद के बावजूद संगलुंगपांग में 733 में से केवल 77 लोगों ने ही टीका लगवाया.

मणिपुर में स्वास्थ्य कर्मियों से भरी मिनी बस राजमार्ग पर भूस्खलन हटने का इंतजार करते हुए | सिमरिन सिरूर/दिप्रिंट

गांव के पूर्व सचिव, ताडुआनलोंग गोनमेई ने कहा, ‘गलत खबरें और दुष्प्रचार लोगों को टीकाकरण से रोक रहे हैं. शुरू में हम भी झिझक रहे थे लेकिन डॉक्टरों और नर्सों के यहां आने और हमें टीके के फायदे समझाने के बाद हमने उन्हें एक शिविर लगाने को कहा.’

स्वास्थ्य टीम के कुछ सदस्य एक से अधिक बार गांवों का दौरा करते हैं, पहले तो ग्रामीणों को टीकाकरण के लिए मनाने के उद्देश्य से एक तरह का ओरिएंटेशन प्रोग्राम करते हैं. फिर बाद में भी स्वास्थ्य विभाग की टीम को गांव का दौरा करना पड़ता है क्योंकि पहली बार में पर्याप्त संख्या में लोग टीके नहीं लगवाते.

संगलुंगपांग की आशा कार्यकर्ता गैबांगनेई ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब मैं वैक्सीन लेने के लिए मनाने की कोशिश करती हूं तब लोग कतई सहयोग नहीं करते. उनका कहना होता है कि यह जनसंख्या नियंत्रण का एक तरीका है, और मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर लूं, उन्हें समझाना आसान नहीं होता.’

अधिकांश गांवों में, जहां कोई कार नहीं जा सकती, स्वास्थ्य कार्यकर्ता कोविड के टीके लगाने के लिए 5 किमी तक पैदल चलकर जाते हैं. अन्यथा, जो भी छोटे-मोटे साधन उपलब्ध कराए जाते हैं, उसी से काम चलाते हैं. संगलुंगपांग में काम होने के बाद टीम ने कुछ समय के लिए राजमार्ग के एक बस स्टॉप पर आसपास के कुछ गांवों के लिए एक अस्थायी टीकाकरण शिविर लगाया, वो भी ऐसी स्थिति में जब वहां पर बारिश हो रही थी.

डॉ. कामेई ने बताया, ‘अगर कहीं पर थोड़े-बहुत लोग भी होंगे तो हम रुककर उन्हें टीके लगा देंगे.’

तामेंगलोंग में एक दिन में सबसे अधिक खुराक 30 जून को दी गई थी जिनकी संख्या 629 थी. तबसे (1-8 जुलाई) टीकाकरण का औसत प्रतिदिन 303 रहा है.


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डिप्टी कमिश्नर आर्मस्ट्रांग पामे का कहना है कि वह लोगों को टीका लगवाने और चिकित्सा टीम की मदद करने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश कर रहे हैं- जिसमें जिला अस्पताल में संसाधनों की व्यवस्था करना, टीकों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करना, और टेढ़े-मेढ़े रास्तों के कारण क्षतिग्रस्त होने वाले वाहनों को ठीक कराने के लिए पैसे देना आदि शामिल है.

पामे ने दुकानों को फिर से खोलने के इच्छुक सभी विक्रेताओं और व्यापारियों के लिए टीकाकरण अनिवार्य कर दिया है. उन्होंने उन गांवों को 50,000 रुपये नकद प्रोत्साहन की भी पेशकश की है, जहां टीकाकरण की दर सबसे ज्यादा रहती है. हालांकि, थोड़ा विवादास्पद कदम उठाते हुए वह केवल उन गांवों में नरेगा के तहत काम कराने का आदेश जारी कर रहे हैं जहां 50 प्रतिशत या उससे अधिक टीकाकरण हो चुका है, और जिले की बैंक में प्रवेश के लिए भी टीकाकरण को एक आवश्यक मानदंड बनाने की तैयार में हैं.

पामे ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे कुछ तरीके सख्त लग सकते हैं, लेकिन लोगों को आगे लाने और टीका लगवाने का यही एकमात्र तरीका है.’

उन्होंने कहा, ‘अगले 15 दिनों में हमने अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण करा चुके हैं. मुझे इसका पूरा भरोसा है.’

जटिल बुनियादी ढांचा

तामेंगलोंग में स्वास्थ्य संबंधी अधिकांश बुनियादी ढांचा पिछले डेढ़ महीने में एक साथ जोड़ा जा चुका है. कई गैर सरकारी संगठनों की तरफ से ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर और बिजली के लिए सौर पैनल दान किए गए है, और राज्य सरकार के अनुरोध पर अकेले मई में जिला अस्पताल में 10 नए डॉक्टरों को तैनात किया गया है.

अस्पताल में अभी तक एक भी आईसीयू नहीं है, जो इस समय निर्माणाधीन है और उसी तरह एक ऑक्सीजन संयंत्र भी शुरू किया जा रहा है जिसे पिछले महीने स्थापित किया गया था.

राज्य सरकार ने जिले को एक और एम्बुलेंस भी दी है, जिससे इसकी संख्या बढ़कर छह हो गई है.

मणिपुर के संगलुंगपांग गांव में टीकाकरण शिविर | सिमरिन सिरूर/दिप्रिंट

हालांकि, सड़कों की खराब स्थिति के कारण बदहाल हो चुकी इनमें से तीन एम्बुलेंस इस समय वर्कशॉप में मरम्मत का इंतजार कर रही हैं. तामेंगलोंग में स्पेयर पार्ट्स मंगाना भी एक मुश्किल भरा काम है. खराब कनेक्टिविटी के कारण पहले से ही राज्य के बाकी हिस्सों से लगभग कटा रहने वाला यह जिला इस समय लॉकडाउन (इम्फाल सहित मणिपुर के कुछ हिस्से में अभी कोविड लॉकडाउन चल रहा है) के कारण और भी अलग-थलग हो गया है.

जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. जी. माजाचुंगलू ने दिप्रिंट को बताया, ‘जिला प्रशासन हमें पूरा सहयोग दे रहा है. लेकिन हमारे पास एकदम बुनियादी ढांचे का ही अभाव है. हमारे पास ब्लड बैंक या डायलिसिस मशीन नहीं है, और हमारे पास पूरे जिले के लिए केवल एक ही एनेस्थेटिस्ट है. हम मामलों को इम्फाल रेफर करने को मजबूर हैं, लेकिन वहां जाने में लगने वाला समय एक और जोखिम ही है. अब इम्फाल से भी कहा जाता है कि किसी को मत भेजो क्योंकि उनके बेड भरे हुए हैं.’

4,391 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले जिले में केवल तीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं, हर सब-डिवीजन में एक. आशा कार्यकर्ता गैबांगनेई ने कहा कि परिवहन का साधन उपलब्ध न होने पर वह कभी-कभी गर्भवती महिलाओं को निकटतम पीएचसी या फिर कभी-कभी तो जिला मुख्यालय तक ले जाती है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के डाटा से पता चलता है कि जिले में निचले स्तर तक स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के साथ-साथ स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच की स्थिति भी कमजोर है.

उदाहरण के तौर पर केवल 32.3 प्रतिशत माताओं को प्रसव के दो दिनों के अंदर स्वास्थ्य कर्मियों की तरफ से प्रसवोत्तर देखभाल की सुविधा मिली, जबकि राष्ट्रीय औसत 62.4 प्रतिशत था. इसी तरह, जिले में केवल 33.3 प्रतिशत बच्चों का जन्म स्वास्थ्य केंद्रों में हुआ, जबकि राष्ट्रीय औसत 78.9 प्रतिशत है.

जिला अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नीसन ने दिप्रिंट को बताया, ‘आमतौर पर जब पहाड़ के दुर्गम इलाकों से मरीज हमारे पास आते हैं, तो वे गंभीर स्थिति में होते हैं और हमें उनका तत्काल इलाज करना पड़ता है. असल में बहुत ज्यादा दूरी के कारण कम ही लोग अस्पताल आते हैं.’

लंबी दूरी के कारण कई बार टीके की बर्बादी भी होती है, क्योंकि इसकी शीशियों को एक निर्धारित अवधि से अधिक समय तक आइस बॉक्स में नहीं रखा जा सकता. जिले में टीके बर्बाद होने का औसत 5.8 फीसदी है.

डॉ. मजाचुंगलू ने कहा, ‘हमें लोगों के इलाज और अधिक प्रभावी ढंग से टीकाकरण के लिए बहुत कुछ चाहिए. लेकिन जो परिस्थितियां हैं उनमें हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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