सांगली, महाराष्ट्र: पश्चिमी महाराष्ट्र के सांगली जिले के कई किसानों ने अब पारंपरिक फसलों जैसे गन्ना, अंगूर, सोयाबीन और अन्य सब्जियों की खेती से अधिक विदेशी फल ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती की ओर रुख कर लिया है.
सांगली महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है, लेकिन इसके बावजूद, जिले का एक बड़ा क्षेत्र गन्ने की खेती के अधीन है, जो पानी की ज्यादा खपत वाला पौधा तो है, पर काफी अधिक उपज भी देता है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल राज्य में गन्ने की फसल का रकबा पिछले साल के 12.32 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 14.87 लाख हेक्टेयर हो गया है जो कि 2.55 लाख हेक्टेयर अधिक है.
राज्य के कृषि अधिकारियों का कहना है कि वैसे ड्रैगन फ्रूट की खेती की मांग तो है, पर, अब तक उनमें से कुछ ही लोगों ने वास्तव में इस खेती को चुना है.
सांगली के कृषि अधीक्षक, प्रकाश सूर्यवंशी, ने दिप्रिंट को बताया, ‘फिलहाल सांगली में बहुत कम किसान हैं जो ड्रैगन फ्रूट उगा रहे हैं. लेकिन किसान इसे लेकर आशान्वित हैं.’
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में ‘ड्रैगन फ्रूट’ का उत्पादन 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था और पहले-पहल इसे होम गार्डन के रूप में उगाया गया था. हाल के वर्षों में अपने उच्च निर्यात मूल्य के कारण विदेशी ‘ड्रैगन फ्रूट’ तेजी से देश भर में लोकप्रिय हो गया है और विभिन्न राज्यों के किसानों द्वारा इसे खेती के लिए अपनाया गया है.’
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क्यों आ रहा है यह बदलाव?
स्थानीय किसानों का कहना है कि सांगली के तड़सर और वांगी गांवों के लगभग 10-15 किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू कर दी है.
तड़सर में पिछले छह वर्षों से ड्रैगन फ्रूट उगा रहे किसान आनंदराव पवार ने कहा कि केवल कुछ ही किसानों द्वारा पारंपरिक फसलों की तुलना में ड्रैगन फ्रूट को चुने जाने का कारण यह भी हो सकता है कि इसमें शुरुआती निवेश काफी अधिक है.
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने पहली बार ड्रैगन फ्रूट उगाना शुरू किया तो मुझे इसके लिए लगभग 15 लाख रुपये लगाने पड़े. लेकिन अब, मैं इसका लाभ उठा रहा हूं. मैंने पहले साल में ही अपने निवेश की आधी लागत वसूल कर ली थी.’
वांगी गांव के एक किसान राजाराम देशमुख ने कहा, ‘अब अधिक से अधिक संख्या में किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. मैंने पहले ही दो एकड़ में यह फल लगाया हुआ है. मैं अब अपने गन्ने के खेती को एक और एकड़ कम करने और वहां भी ड्रैगन फ्रूट उगाने की सोच रहा हूं.‘
देशमुख ने कहा कि यह क्षेत्र परंपरागत रूप से सूखे से प्रभावित रहा है, लेकिन चूंकि ड्रैगन फ्रूट को कम पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए इसकी खेती इस परेशानी से मुक्त है.
ड्रैगन फ्रूट कैक्टि से उगाए जाने वाले कई फलों में से एक है. इसमें अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है और यह उस मिट्टी में उगता है जिसमें उच्च धारण क्षमता होती है. ड्रैगन फ्रूट की तीन मुख्य किस्में हैं: गुलाबी छिलके के साथ सफेद गूदा, गुलाबी छिलके के साथ लाल गूदा और पीले छिलके के साथ सफेद गूदा.
आनंदराव पवार और राजाराम देशमुख दोनों ही देश के पहले कुछ किसानों में से थे, जिन्होंने साल 2021 में अपनी ड्रैगन फ्रूट किस्म का दुबई को निर्यात किया था. पवार और देशमुख दोनों ही बड़े आकार वाली लाल और गुलाबी तथा सफेद और गुलाबी किस्मों को उगाते हैं.
देशमुख का कहना है कि गन्ना उन्हें लगभग 2 टन प्रति एकड़ की उपज देता है लेकिन ड्रैगन फ्रूट से उन्हें लगभग 15-18 टन प्रति एकड़ मिलता है, जो प्रति वर्ष 12-13 लाख रुपये की कीमत वाला होता है.
उन्होंने कहा, ‘अगर मैं गन्ने में होने वाले खर्च को निकाल देता हूं, तो मुझे मुश्किल से 1 लाख रुपये का मुनाफा होता है. मगर, ड्रैगन फ्रूट से होने वाला मेरा फायदा लगभग 8-9 लाख रुपये प्रति वर्ष है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह पौधा काफी कम रखरखाव की जरूरत वाला है और मुझे सूखा या ओलावृष्टि होने पर भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. इसके लिए किसी रासायनिक कीटनाशक की भी जरूरत नहीं पड़ती है.’
देशमुख ने इस साल न्यूजीलैंड को लगभग 50 किलोग्राम ड्रैगन फ्रूट का निर्यात किया, जबकि घरेलू स्तर पर उन्होंने हैदराबाद, बेंगलुरु और यहां तक कि गुवाहाटी को भी ये फल बेचे.
पवार ने भी अपना कुछ गन्ने का खेत खाली किया और उसकी जगह ड्रैगन फ्रूट लगा लिया. उन्होंने कहा, ‘इस फल को गर्मी के मौसम में भी पानी की आवश्यकता नहीं होती है. यह बहुत सारा पानी बचाता है. ‘
पवार और देशमुख से प्रेरित होकर, वांगी के एक अन्य किसान नानासाहेब माली ने भी दो एकड़ में लगा अपना अंगूर का खेत हटा दिया और साल 2021 में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने का विकल्प चुना. वह इसकी खेती को और दो एकड़ में बढ़ाने की योजना बना रहे हैं.
माली ने कहा, ‘मैंने अंगूर के पौधे हटा दिए क्योंकि वे सूखे की स्थिति और असमान बारिश में नष्ट हो रहे थे. कोविड -19 महामारी (2020 में) ने मेरे संकट को और बढ़ा दिया और मुझे अपने अंगूरों के लिए अच्छी कीमत भी नहीं मिली. इसलिए मैं एक बदलाव चाहता था.’
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सिर्फ विश्वास पर आधारित कदम या सोचा समझा फैसला?
पवार ने बताया कि साल 2013 में उनके एक साथी ने उन्हें सोलापुर के एक ऐसे किसान के बारे में बताया था, जिसे ड्रैगन फ्रूट की डेढ़ एकड़ वाली खेती से साल भर में 27 लाख रुपये की आमदनी होती थी.
वे कहते हैं, ‘इसने मुझे सोच में डाल दिया. अगले तीन सालों तक मैंने इस बारे में शोध किया और अपने गांव तथा आसपास के किसानों से इस पर चर्चा की. फिर मैंने साल 2016 में पहली बार अपने खेत में ड्रैगन फ्रूट की खेती की.’
उन्होंने बताया कि पहले साल (साल 2017) में उन्हें 200 किलोग्राम उत्पादन मिला, फिर साल 2018 में यह बढ़कर 1,500 किलोग्राम हो गया, तीसरे वर्ष (साल 2019) में यह 3,700 किलोग्राम तक पहुंच गया. पवार को साल 2020 में 7,500 किलोग्राम और पिछले साल 8,500 किलोग्राम की उपज मिली.
पवार ने कहा, ‘इस साल, मुझे पहले ही लगभग 7 टन (7,000 किग्रा) की उपज मिल चुकी है और इस महीने 2 टन से अधिक उपज की उम्मीद है. अगले साल, मुझे कुल 18 टन (18,000 किलो) उत्पादन की उम्मीद है. इसलिए मुझे उम्मीद है कि यह और बढ़ेगा.’
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