नयी दिल्ली, 21 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दहेज की मांग भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत अपराध को स्थापित करने के लिए क्रूरता पूर्व शर्त नहीं है। यह धारा 1983 में विवाहित महिलाओं को पति और ससुराल वालों की ‘क्रूरता’ से बचाने के लिए लागू की गई थी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने 12 दिसंबर, 2024 को कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए का सार क्रूरता के कृत्य में निहित है और दोषी पतियों और ससुराल वालों के खिलाफ इस प्रावधान को लागू करने के लिए दहेज की मांग आवश्यक नहीं है।
पीठ ने कहा, “इसलिए, दहेज की मांग से स्वतंत्र क्रूरता का कोई भी रूप, धारा 498 ए आईपीसी के प्रावधानों को आकर्षित करने और कानून के तहत अपराध को दंडनीय बनाने के लिए पर्याप्त है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि दहेज की अवैध मांग भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत “क्रूरता” की श्रेणी में आने के लिए पूर्वापेक्षित तत्व नहीं है।
पीठ ने कहा, “यह पर्याप्त है कि आचरण प्रावधान के खंड (ए) या (बी) में उल्लिखित दो व्यापक श्रेणियों में से किसी एक के अंतर्गत आता है, अर्थात् जानबूझकर किया गया आचरण जिससे गंभीर चोट या मानसिक नुकसान पहुंचने की संभावना हो (खंड ए), या महिला या उसके परिवार को किसी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करने के इरादे से किया गया उत्पीड़न (खंड बी)।”
धारा 498ए (पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिला के साथ क्रूरता) को 1983 में भारतीय दंड संहिता में शामिल किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य विवाहित महिलाओं को उनके पति या ससुराल वालों की ‘क्रूरता’ से बचाना था।
वर्तमान मामले में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति और अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आरोपियों के खिलाफ आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता का अपराध नहीं बनते, क्योंकि दहेज की मांग नहीं की गई थी।
कई निर्णयों का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत ने पत्नी की अपील पर गौर करने के बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया।
भाषा प्रशांत मनीषा
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