नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह नहीं चाहते कि मणिपुर जातीय संघर्ष के संबंध में कानूनी कार्यवाही का इस्तेमाल पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा बढ़ाने के मंच के रूप में किया जाए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने यह टिप्पणी मणिपुर ट्राइबल फोरम द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की- जो मणिपुर की कुकी जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक समूह है. याचिका में स्थिति से निपटने के केंद्र सरकार के आश्वासन को “झूठा” बताते हुए राज्य के आदिवासी इलाकों में अधिक सैन्य कर्मियों की तैनाती की मांग की गई है.
गैर-आदिवासी मेइतेई और आदिवासी कुकी के बीच शुरू हुई लड़ाई के कारण अब तक राज्य में 150 लोग मारे गए हैं और 50,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं. यह हिंसा 3 मई को शुरू हुई थी.
पिछले हफ्ते, शीर्ष अदालत ने मणिपुर सरकार को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था, जिसे बाद में रविवार रात सरकार ने जवाब दाखिल किया गया.
राज्य सरकार द्वारा दी गई 16 पन्नों की स्टेटस रिपोर्ट ने अदालत को याचिका में “एकतरफा तर्कों” से प्रभावित होने से आगाह किया, जिसमें कहा गया कि “लाइव रिपोर्टिंग (अदालत की कार्यवाही) के कारण” मणिपुर में सार्वजनिक व्यवस्था “प्रभावित” हो सकती है.
रिपोर्ट को देखने के बाद, पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील, वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस से कहा कि वे अदालत को ठोस सुझाव दें कि मणिपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति कैसे सुधारी जा सकती है.
पीठ ने गोंसाल्वेस से कहा, “हम वहां (मणिपुर) कानून और व्यवस्था या सुरक्षा तंत्र नहीं चला रहे हैं, लेकिन हम निश्चित रूप से इसकी सुविधा देने वाले हैं.” उन्होंने आरोप लगाया कि सशस्त्र मेइती राज्य में खुलेआम घूम रहे हैं.
पीठ ने आगे कहा, “आपका संदेह हमें कानून और व्यवस्था का कार्यभार संभालने नहीं दे सकता. हमें कुछ विशिष्ट, रचनात्मक सुझाव दें जैसे कि क्या आप चाहते हैं कि राहत शिविरों को बढ़ाया जाए या राहत शिविरों को कैसे बेहतर बनाया जाए.”
न्यायाधीशों ने इसके समक्ष पक्षों को सलाह दी कि वे इस मामले पर पक्षपातपूर्ण तरीके से बहस न करें क्योंकि यह एक मानवीय समस्या है. पीठ ने कहा, “हम नहीं चाहते कि इन कार्यवाहियों का इस्तेमाल हिंसा और राज्य की अन्य समस्याओं को और बढ़ाने के मंच के रूप में किया जाए.”
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अब तक किए गए उपाय
जबकि गोंसाल्वेस ने अदालत को बताया कि वह सशस्त्र हमलावरों के खुलेआम घूमने को लेकर चिंतित हैं, मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मौजूदा स्थिति और इसके कारणों को समझने के महत्व पर प्रकाश डाला.
चूंकि राज्य सरकार की रिपोर्ट प्रारंभिक हिंसा के दौरान पुलिस स्टेशनों से चुराए गए हथियारों की बरामदगी पर चुप थी, इसलिए पीठ ने मेहता से मंगलवार तक उन विवरणों के साथ एक नई रिपोर्ट दायर करने को कहा. अदालत ने कहा कि वह मामले की सुनवाई तब करेगी.
पीठ ने सॉलिसिटर से पूछा, “हमने पिछली सुनवाई में इसके बारे में पूछताछ की थी और रिपोर्ट्स में भी पढ़ा था. जो हथियार छीन लिये गये थे उनका क्या हुआ? आपने कितना हथियार वापस लिया है.”
इस बीच, सरकार की स्टेटस रिपोर्ट में सुरक्षा और वित्तीय उपायों का विवरण दिया गया है जो राज्य और केंद्र सरकारों ने मणिपुर में सामान्य स्थिति वापस लाने के लिए उठाए हैं. सरकार ने कहा कि कृषि गतिविधियों और मणिपुर के जिरीबाम से राजधानी इंफाल तक आवश्यक वस्तुओं के परिवहन के लिए सुरक्षा कवर प्रदान किया गया है.
इसके अलावा, रिपोर्ट्स में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 32 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक्री के लिए 30,000 मीट्रिक टन चावल भी आवंटित किया था. स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि बाजार में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए भी कदम उठाए गए हैं, जबकि प्याज और आलू की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की गई है.
राज्य प्रशासन ने कहा कि उसने स्कूलों में उनकी वापसी की सुविधा के लिए राहत शिविरों में स्कूली बच्चों की पहचान करने के प्रयास किए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 96 को छोड़कर सभी स्कूल जो अभी भी राहत शिविरों के रूप में काम कर रहे हैं, उन्हें “स्थानीय स्थिति के आकलन के आधार पर” फिर से खोलने के लिए कहा गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि राहत शिविरों के लिए केंद्र सरकार की 101 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के अलावा, राज्य ने अपनी आकस्मिकता निधि के उपयोग को भी मंजूरी दे दी है. राहत शिविर में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एकमुश्त सहायता देने के लिए धन निर्धारित किया गया है.
साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अधिकारी लोगों को उनके खोए हुए दस्तावेज़ जैसे आधार, स्वास्थ्य कार्ड और बैंक पासबुक वापस लाने में भी मदद कर रहे हैं. राहत शिविरों में रहने वाले लोग उन गतिविधियों में लगे हुए हैं जो उन्हें अपनी आजीविका बनाए रखने में मदद कर सकते हैं.
(संपादन: ऋषभ राज)
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