नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) एक नवीनतम अध्ययन में खुलासा हुआ है कि देश में वर्ष 2012 से 2019 के बीच गधों की आबादी में 61 प्रतिशत की कमी आई है और इसके कारणों में उनकी उपयोगिता में कमी, चोरी, गैर कानूनी तरीके से वध, चारागाहों की कमी शामिल है।
यह अध्ययन ब्रिटेन स्थित अंतरराष्ट्रीय अश्व धर्मार्थ संस्था ‘ब्रुक’ की भारत में इकाई ब्रुक इंडिया (बीआई)ने किया है जिसका उद्देश्य भारत में गधों की खाल के व्यापार की मौजूदगी को समझना था।
अध्ययन के लिए महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के इलाकों का दौरा किया गया और लोगों का साक्षात्कार लिया गया। ये वे इलाके हैं जहां पर जीविकोपार्जन गणना के मुताबिक वर्ष 2012 से 2019 के बीच गधों की आबादी में कमी आई है।
अध्ययन में रेखांकित किया गया कि साक्षरता दर में वृद्धि, ईंट भट्टों में मशीनीकरण और सामान ढोने के लिए गधों के बजाय खच्चर के इस्तेमाल भी इनकी आबादी में कमी आने के कारणों में शामिल हैं।
अध्ययन के मुताबिक महाराष्ट्र में इन आठ सालों के दौरान गधों की आबादी में 39.69 प्रतिशत की कमी आई है जबकि आंध्रप्रदेश में गधों की आबादी में 53.22 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
इसी प्रकार, राजस्थान में वर्ष 2012-2019 के बीच गधों की आबादी में 71.31 प्रतिशत, गुजरात में 70.94 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 71.72 प्रतिशत और बिहार में 47.31 प्रतिशत की कमी आई है।
अध्ययन में कहा गया कि नेपाल की खुली सीमा और गधों की खरीद-बिक्री के लिए मेला का आयोजन भी इस धारणा को खारिज करता है कि देश गधों की अवैध हत्या से मुक्त है।
अध्ययन में पाया गया कि जिंदा गधों, उनकी खाल और मीट का अवैध निर्यात सीमापार आसान रास्तों से हो रहा है।
अध्ययन में रेखांकित किया गया, ‘‘ गधों के कारोबारी और उनके पालक दावा करते हैं कि वे गधों की अवैध परिवहन और खरीद-बिक्री के बारे में जानते हैं। वे निश्चित हैं कि गधों का सामान्य इस्तेमाल जैसे सामान या लोगों को ढोने में नहीं होगा।’’
जांच में पता चला कि गधों की खाल की तस्करी अन्य देशों, खासतौर पर चीन में इजियाओ के लिए की जाती है जिसका इस्तेमाल विभिन्न बीमारियों के इलाज में होता है।
एक गधा कारोबारी को उद्धृत करते हुए अध्ययन में कहा गया कि उसे एक चीनी व्यक्ति ने कुछ साल पहले प्रति माह 200 गधे खरीदने के लिए संपर्क किया था।
अध्ययन में कहा गया, ‘‘चीनी व्यक्ति ने उसे महाराष्ट्र के स्थानीय व्यक्ति के जरिये संपर्क किया और कहा कि केवल गधों की खाल की जरूरत है।’’
भाषा धीरज उमा
उमा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.