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नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत और रूस को जटिल भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए रचनात्मक और अभिनव दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
जयशंकर ने यह बात ऐसे में कही जब रूसी कच्चे तेल की खरीद के लिए भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को दोगुना करके 50 प्रतिशत करने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले के बाद भारत और अमेरिका के संबंधों में तनाव आ गया है।
जयशंकर ने यह टिप्पणी मॉस्को में रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव के साथ एक बैठक में की।
विदेश मंत्री ने टेलीविजन पर प्रसारित अपने भाषण में कहा कि भारत और रूस को द्विपक्षीय व्यापार में विविधता लाकर और अधिक संयुक्त उद्यमों के माध्यम से अपने सहयोग के ‘‘एजेंडे’’ में निरंतर विविधता लानी चाहिए और उसका विस्तार करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘अधिक काम करना और अलग तरीके से काम करना हमारा मंत्र होना चाहिए।’’
जयशंकर ने मंगलवार को रूस की तीन दिवसीय यात्रा की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य भारत-रूस की ‘‘समय की कसौटी पर खरी उतरी’’ साझेदारी को और मजबूत करना है।
जयशंकर-मंटुरोव की वार्ता भारत-रूस अंतर-सरकारी व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सांस्कृतिक सहयोग आयोग (आईआरआईजीसी-टीईसी) के ढांचे के तहत आयोजित की गई।
इस बैठक का उद्देश्य इस वर्ष के अंत में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के लिए आधार तैयार करना था।
वर्तमान भू-राजनीतिक उथल-पुथल के संदर्भ में भारत-रूस संबंधों के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए जयशंकर ने विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में संबंधों को और मजबूत करने के लिए विशिष्ट सुझाव दिए।
उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न कार्य समूह और उप-समूह अपने-अपने एजेंडे के प्रति अधिक रचनात्मक और नवीन दृष्टिकोण अपना सकते हैं। मैंने जिन व्यापक परिदृश्यों का उल्लेख किया है, उनसे उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए हमारा ऐसा करना आवश्यक है।’’
विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों को आपसी परामर्श के माध्यम से अपने एजेंडे में निरंतर विविधता लानी चाहिए और उसका विस्तार करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘इससे हमें अपने व्यापार और निवेश संबंधों की पूरी क्षमता का दोहन करने में मदद मिलेगी। हमें एक ही रास्ते पर अटके नहीं रहना चाहिए।’’
जयशंकर ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने के लिए ‘‘मापे जा सकने वाले लक्ष्य और विशिष्ट समय-सीमा’’ निर्धारित करने का भी आह्वान किया।
जयशंकर ने विचारों के दो-तरफा प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए व्यापार मंच और आईआरआईजीसी के विभिन्न कार्य समूहों के बीच एक ‘‘समन्वय तंत्र’’ की भी वकालत की।
भाषा सिम्मी सुरेश
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