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Friday, 22 November, 2024
होमदेशप्लास्टिक के रेनकोट के सहारे कोरोनावायरस के मरीजों का इलाज कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के डॉक्टर

प्लास्टिक के रेनकोट के सहारे कोरोनावायरस के मरीजों का इलाज कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के डॉक्टर

पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सरकार की तमाम सक्रियता के बावजूद कोरोनावायरस से अग्रिम मोर्चे पर लड़ने वाले डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को पीपीई यानी निजी सुरक्षा उपकरणों के नाम पर प्लास्टिक के बने रेनकोट मुहैया कराए जा रहे हैं.

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कोलकाता: यह कुछ उसी तरह का मामला है जैसे मोर्चे पर लगे सैनिकों को पुराने हथियारों के साथ युद्ध के मैदान में उतार दिया जाए. पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सरकार की तमाम सक्रियता के बावजूद कोरोनावायरस से अग्रिम मोर्चे पर लड़ने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को पीपीई यानी निजी सुरक्षा उपकरणों के नाम पर प्लास्टिक के बने रेनकोट मुहैया कराए जा रहे हैं. उनको जो मास्क मिला है वह भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानकों के अनुरूप नहीं है. इस वजह से इन लोगों में भारी नाराज़गी है.

कोलकाता में संक्रामक बीमारियों के एकमात्र अस्पताल के अलावा सिलीगुड़ी स्थित उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि अपनी जान को लेकर हमेशा शंकित रहने वाले यह लोग कोरोना से निपटने में कितने कारगर साबित होंगे.

कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के एक डाक्टर अर्चिस्मान भट्टाचार्य कहते हैं, ‘हाल में कोरोना से निपटने के लिए इंटर्नों को भी काम पर लगाया गया है. पहले मास्क की समस्या थी. जो सर्जिकल मास्क मिले थे वह सुरक्षित नहीं थे. इसके बाद डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों को जो पीपीई मिले वह दरअसल प्लास्टिक के रेनकोट थे. लेकिन कोरोना से बचाव के लिए जो सूट देना चाहिए, वह नहीं मिला है. मौजूदा हालात में इन लोगों पर संक्रमण का भारी खतरा है.’

डॉक्टरों ने जब प्रबंधन को यह बात बताई तो उसने हाथ खड़े करते हुए कहा कि फिलहाल इससे ज्यादा कुछ उपलब्ध नहीं है. विडंबना यह है कि सरकार अगले सप्ताह से इस मेडिकल कॉलेज में ही कोरोना के मरीजों के लिए 22 सौ बिस्तरों वाला अस्पताल बना रही है.

मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉ. इंद्रनील विश्वास बताते हैं कि उन्होंने सरकार को लिखित रूप से और बेहतर क्वॉलिटी के सूट भेजने को कहा है. इससे पहले बुधवार को कोलकाता के बेलियाघाटा स्थिति संक्रामक बीमारियों के अस्पताल में कोरोना वार्ड की नर्सों ने हैंड सैनिटाइजर और मास्क उपलब्ध नहीं होने के विरोध में प्रदर्शन किया था.


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कोलकाता के एक निजी अस्पताल में माइक्रोबायोलाजिस्ट भास्कर चौधरी कहते हैं, ‘पीपीई भी प्लास्टिक के ही बने होते हैं. लेकिन उनमें मोटे और बेहतर क्वॉलिटी के प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. रेनकोट पतले प्लासिटक के बने होते हैं और इनमें संक्रमण रोकने की क्षमता नहीं होती.’

फोटो : प्रभाकर मणि तिवारी

एक अन्य माइक्रोबायोलाजिस्ट सुमन पोद्दार कहते हैं, ‘रेनकोट पीपीई का विकल्प नहीं हो सकते. लेकिन मौजूदा हालत में हमारे पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं. हमें इनसे ही काम चलाना पड़ रहा है.’

मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमें पता है कि पीपीई की कमी है. लेकिन अगर कोरोना के मरीजों का इलाज करने वाला कोई भी डॉक्टर इसकी चपेट में आ गया तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं. इससे स्वास्थ्य विभाग के तमाम कर्मचारियों का मनोबल गिर जाएगा.’

सरकार ने इसी सप्ताह दार्जिलिंग जिले के उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी कोरोना की जांच की व्यवस्था शुरू की है. वहां कालिम्पोंग की एक महिला मरीज की मौत हो गई है. लेकिन बावजूद इसके डाक्टरों को प्लास्टिक के रेनकोट औऱ दस्तानों से ही काम करना पड़ रहा है. डॉक्टरों का आरोप है कि उनको पीपीई के नाम पर बेडशीट से बने मास्क और प्लास्टिक के रेनकोट व चश्मे दिए गए हैं.

मेडिकल कॉलेज के एक रेजिडेंट डॉ. शहरियार आलम ने बताया, ‘हमने मेडिकल सुपरिटेंडेंट-सह-वाइस प्रिंसिपल से मुलाकात की थी. लेकिन उनका कहना था कि पर्याप्त मात्रा में पीपीई उपलब्ध नहीं है. हमारे दबाव डालने पर उन्होंने हमें ड्यूटी पर नहीं आने को कहा. हमें रेनकोट दिए गए हैं और धोकर इनका इस्तेमाल करने को कहा गया है.’

दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के विधायक और राज्य मेडिकल काउंसिल के चेयरमैन डॉ. मनिर्मल माजी ने इन आरोपों को निराधार बताया है. उन्होंने कहा कि यह खबरें सही नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग कोरोना से मुकाबले के लिए हरसंभव उपाय कर रहा है. ऐसे आरोप लगाने वाले लोग ममता बनर्जी सरकार की छवि खराब करने का प्रयास कर रहे हैं. सरकार ने स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी इंतजाम किए हैं. साथ ही उनका दस लाख रुपए का बीमा भी कराया गया है.


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तृणमूल कांग्रेस सांसद और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के प्रमुख डॉ. शांतनु सेन ने यह कहते हुए इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया कि उनकी जानकारी में ऐसी कोई सूचना नहीं है. स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य और स्वास्थ्य सेवा निदेशक अजय चक्रवर्ती से तमाम कोशिशों के बावजूद बात नहीं हो सकी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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