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Sunday, 22 December, 2024
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क्या सचमुच पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट के पास चेकअप के लिए जाने से हिचकिचाती हैं महिलाएं

जो महिला मरीज जानते बूझते पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट के पास जाती हैं वो उनके अजब गजब सवालों से परेशान हो जाती हैं. ऐसी ही एक महिला से हमने बात की.

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नई दिल्ली: क्या डॉक्टर का भी जेंडर होता है.यानी महिला और पुरुष? क्या महिलाएं पुरुष डॉक्टरों खासकर तब जब वो गायनोकोलॉजिस्ट हो तो उनके पास जाने से बचती हैं. क्या पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट को इसमें विशेषज्ञता हासिल करने से लेकर नौकरी पाने और शादी करने तक में हर कदम पर परेशानी होती है? ऐसे कई सवालों के साथ आ रही है अभिनेता आयुष्मान की फिल्म डॉक्टर जी.

डॉक्टर जी ने डॉक्टरों खासकर पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट की परेशानियों को उजागर किया है..क्या सचमें पुरुष गायनोकॉलिस्ट के साथ ऐसा होता है कि महिलाएं पुरुष डॉक्टरों को देख कर चिल्लाने लगती हैं या फिर परिवार के लोग डॉक्टरों को देख अपनी दर्द में तड़पती महिला को ले जाते हैं. इसी कड़ी में दिप्रिंट ने उन गायनोकॉलिजस्ट से बात की.

आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘डॉक्टर जी’ जिसके ट्रेलर में दिखाया गया है कि उनका हाल बहुत ही बेहाल है. हालांकि कई डॉक्टरों ने इसे बेवकूफी कहा है लेकिन कई ये मानते हैं कि नहीं उनके साथ भी ऐसा हुआ.


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लोग झूठे इलज़ाम लगाते है

हालांकि, महिला डॉक्टर हो या फिर पुरुष दोनों ही अपने साथ विपरीत जेंडर के डॉक्टर को जरूर रखते हैं. कई बार पुरुष डॉक्टरों को महिला डॉक्टरों या फिर सिस्टर को रखना होता है.

एटलांटिस हॉस्पिटल के गायनोकोलॉजिस्ट और आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ. मनन गुप्ता ने दिप्रिंट से कहा कि हमें हमेशा अपने साथ एक महिला नर्स को रखना चाहिए ताकी कोई महिला हमपर छेड़खानी या फिर गलत तरह से टच करने का आरोप न लगा सके.

साथ ही उन्होंने ये बताया की उनके साथ एकबार ऐसा हो चुका है जिसमें उन्हें पुलिस का सामना करना पड़ा था. उन्होंने बताया, ‘हमारे पास एक आईवीएफ का केस आया जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी प्रोसेस भी कहा जाता है. इस ट्रीटमेंट में 3 लाख तक का खर्चा आता है उस प्रोसेस में 40% से 50% सफलता की गारंटी होती है.

इस केस में सफलता न मिलने पर महिला और उनके परिवार वालों ने पुलिस थाने में हमारी शिकायत कर दी और इलज़ाम लगाया कि हमने महिला के साथ ‘छेड़खानी’ की है. ऐसा पहली बार नहीं है पहले भी कई बार हो चुका है. हमें ऐसी चीज़ों और लोगों के गुस्से का भी सामना करना पड़ता है और ये लोग झूठे इलज़ाम भी लगा देते हैं.

इसी के साथ उन्होंने एक और घटना का जिक्र किया जिसमें उन्होंने बताया, ‘कुछ समय पहले एक महिला आई थी जिसे व्हाइट डिस्चार्ज की दिक्कत थी. महिला जांच के लिए उसके पति को बाहर बिठाया गया. लेकिन उसके पति को मालूम नहीं था कि एक पुरुष डॉक्टर उसकी पत्नी को चेक कर रहा है.’

मनन बताते हैं, उस चेकअप के दौरान महिला स्टाफ वहां मौजूद थी. लेकिन पति को जब इस बारे में मालूम चला तो उसने हॉस्पिटल में ही अपनी पत्नी से झगड़ना शुरू कर दिया और वहां से चले गए. और फिर इस अस्पताल में चेकअप के लिए नहीं आए.’

हालांकि महिला मरीज जब पुरुष डॉक्टरों को अपनी परेशानी शर्म से नहीं बता पातीं हैं तो उन्हें पुरुष डॉक्टर उन्हें महिला डॉक्टर के पास भेज देते हैं.

अगर कोई महिला एक पुरुष डॉक्टर से चेकअप करवाती है तो उनके पति, मां-पापा , सास-ससुर को काफी दिकक्त होती है. परिवार को पता होता है कि ये पुरष गायनोकोलॉजिस्ट अच्छा डॉक्टर है तब भी वो अपनी बेटी, पत्नी का चेकउप उनसे नहीं करवाते. अगर सफलता से काम नहीं हुआ तो वो मरीज महिला खुद पुरष डॉक्टर के खिलाफ गलत आरोप लगा देती है.

ऐसे काफी केस है जिनमें गायनोकोलॉजिस्ट पुरुष के होने पर काफी बवाल हुआ. 2016 में राजस्थान के मेडिकल एंड हेल्थ सर्विसेज के एडिशनल डायरेक्टर की तरफ से सभी चीफ मेडिकल अफसरों के लिए ये ऑर्डर निकला कि महिलाओं का चेकअप केवल महिला गायनोकोलॉजिस्ट ही करें. विवाद बढ़ने के बाद स्टेट हेल्थ डिपार्टमेंट को ऑर्डर वापस लेना पड़ा.

वही दूसरी तरफ, साल 2020, बरेली में पुरुष डॉक्टर ने पेशेंट की नॉर्मल डिलीवरी करवाने पर आशा वर्कर्स ने शाहजहांपुर मेडिकल कॉलेज के बाहर इस बात पर प्रदर्शन किया कि जब महिला डॉक्टर्स मौजूद थीं तो पुरुष डॉक्टर से डिलीवरी क्यों कराई गई.

वही दूसरी तरफ एक ऐसे गायनोकोलॉजिस्ट और आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ.अनूप गुप्ता भी हैं जिन्होंने अभी तक 18 हजार बच्चों की डिलीवरी कराई हैं. उन्होंने बताया कि ये अलग लेवल की बहस है. पुरुष गायनोकॉलोजिस्ट पर बहस सिर्फ नॉर्थ इंडिया में ही है.

डॉ. गुप्ता कहते हैं कि साउथ इंडिया, मुंबई और कोलकाता में पुरुष गायनो ही हैं. कोलकाता में तो सिर्फ एक फीसदी ही महिला गायनो हैं. उन्होंने कहा, ‘कोलकाता में महिलाएं पुरुष गायनो को ही इलाज के लिए चुनती हैं और वहां महिलाओं को पुरुष डॉक्टरों से चेकअप कराने में कोई झिझक नहीं होती न उन्हें न उनके परिवार वालों को.’

डॉ. अनूप की 40% मरीज़ मुस्लिम महिलाएं हैं. डॉ. गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने जिसका भी इलाज किया है उन्हें कभी भी कोई दिकक्त नहीं हुई. उन्होंने अपनी परेशानियां खुल कर बताई हैं.

डॉ. गुप्ता ने दावा किया कि 80% महिला गायनोकोलॉजिस्ट सर्जरी खुद नहीं करतीं. उन्होंने कहा, ‘अगर आप महिला गायनोकोलॉजिस्ट के पास जाएंगे तो भी आपको उनके पास एक पुरष गायनोकोलॉजिस्ट मिलेगा जो सर्जरी करता है.

दिक्कत महिला पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट से नहीं सवालों से है

हालांकि, जो महिला मरीज जानते बूझते पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट के पास जाती हैं वो उनके अजब गजब सवालों से परेशान हो जाती हैं. ऐसी ही एक महिला से हमने बात की. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया, महिला और पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट होने से नहीं है. दिक्कत है उनके सवालों से जिसे सुन कर आप खुद से शर्मसार होने लग जाते हैं और ये हमारे मेंटल हेल्थ पर भी असर डालता है.

महिला मरीज जो खुद मेंस्ट्रुअल साइकिल की अनियमितता से गुजर रही है वह आगे कहती हैं कि, ‘उनके सवाल होते है क्या आप शादी शुदा हो और अगर नहीं हो तो क्यों नहीं हो ? आपका कोई सेक्शुअल रिलेशन है… नहीं है तो ये दिकक्त कैसे हुई ? और डॉक्टर हमें चेतावनी देते हैं कि आप सच बताइये हम अल्ट्रासाउंड करवाऐंगे और उसमें हमें सच पता चल जाएगा.’

अनपढ़, निरक्षर और ग्रामीण दबी कुचे परिवार से आने वाली महिलाएं छोड़िए ये डॉक्टर महिलाओं से ऐसे सवाल पूछते हैं कि कोई भी परेशान हो जाएगा. यहां पढ़े लिखे और ग्रामीण या छोटे इलाकों और कम पढ़े लिखे परिवारों से आने वाली महिलाओं या परिवार की बात ही नहीं है…गायनो ऐसे सवाल पूछते हैं कि मरीज ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि कहीं ये मेरे चरित्र पर उंगली तो नहीं उठा रहा है.

पिछले कुछ वक़्त से ये महिला 6 गायनोकोलॉजिस्ट से मिल चुकी है जिसमे 2 पुरुष और 4 महिला थीं. उनको हर गायनोकोलॉजिस्ट से दिक्कत नहीं हुई पर कुछ सवालों से काफी ज्यादा परेशान रही.


 

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