नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) दिव्यांग अधिकार संगठनों ने इस वर्ष के केंद्रीय बजट की कड़ी आलोचना की है तथा सरकार पर भारत की दिव्यांग आबादी की आवश्यकताओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है।
दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) के लिए समग्र आवंटन में मामूली वृद्धि के बावजूद, कार्यकर्ताओं का तर्क है कि यह अब भी अपर्याप्त है।
दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के लिए कोष में मामूली वृद्धि हुई है, जिसका कुल आवंटन 1,275 करोड़ रुपये है।
‘नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर राइट्स ऑफ डिसएबल्ड’ (एनपीआरडी) ने मोदी सरकार द्वारा दिव्यांग नागरिकों के प्रति निरंतर उपेक्षा के खिलाफ अपना ‘कड़ा विरोध’ व्यक्त किया।
इसने एक बयान में कहा, “नोडल विभाग को किए गए कुल आवंटन में चार प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, लेकिन यह उस राशि से बहुत कम है जिसकी मांग दिव्यांग अधिकार संगठन और कार्यकर्ता लंबे समय से कर रहे हैं।”
एक प्रमुख चिंता यह है कि दिव्यांग अधिनियम के अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए योजना (एसआईपीडीए) के वास्ते कोष में उल्लेखनीय कमी आई है। यह सुगम्य भारत अभियान जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का समर्थन करती है।
आवंटन 2022-23 में 240.39 करोड़ रुपये से घटकर इस वर्ष 115.10 करोड़ रुपये हो गया है।
एनपीआरडी ने कहा, “विभिन्न केन्द्रीय सेक्टर योजनाओं/परियोजनाओं के लिए कुल आवंटन में भी कटौती की गई है, जिससे संकट और बढ़ गया है।”
इसने कहा कि सरकार ने दिव्यांगता पहल के लिए निर्धारित धनराशि का पूर्ण उपयोग नहीं किया है।
एनपीआरडी ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य वित्तपोषण भी जांच के दायरे में आ गया है।
आर्थिक सर्वेक्षण में बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट के बारे में बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद, कार्यकर्ताओं का तर्क है कि सरकार पर्याप्त कार्रवाई करने में विफल रही है।
कुछ संस्थानों के लिए कोष में मामूली वृद्धि हुई, लेकिन ‘टेलीमेंटल’ स्वास्थ्य कार्यक्रम का बजट 90 करोड़ रुपये से घटकर 79.60 करोड़ रुपये कर दिया गया। एनपीआरडी ने चेतावनी दी, ‘सरकार उस बड़े संकट से बेखबर है जो मंडरा रहा है।’
एनपीआरडी ने 10 फरवरी को ‘सरकारी उदासीनता’ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है, जिसमें दिव्यांग व्यक्ति पेंशन का अधिकार अधिनियम को लागू करने, मौजूदा पेंशन को बढ़ाकर 5,000 रुपये प्रति माह करने की मांग करेगी।
‘नेशनल सेंटर फॉर प्रोमोशन ऑफ एम्लॉयमेंट फॉर डिसएबल्ड पीपुल’ (एनसीपीईडीपी) के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने भी अपनी निराशा व्यक्त की और कहा कि समावेशिता के दावों के बावजूद बजट में ‘भारत की दिव्यांग आबादी की अनदेखी की गई है।’
भाषा नोमान रंजन
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