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Friday, 22 November, 2024
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जहरीली हवाः सुप्रीम कोर्ट ने 5 राज्यों से प्रदूषण को लेकर उठाए गए कदमों के बारे में मांगी रिपोर्ट

केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए गठित आयोग द्वारा जारी किये गए निर्देशों के कार्यान्वयन में कुछ कमियां पाई गईं हैं.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार को ‘न्याय के हित’ और ‘वायु गुणवत्ता में सुधार की तेजी से उभरती जरूरत’ के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की और साथ ही उसने शीर्ष अदालत से पांच राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों – दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान – से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के लिए गठित एक आयोग द्वारा जारी निर्देशों के संदर्भ में अनुपालन रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिए जाने का भी आग्रह भी किया.

कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट का गठन सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त इप्का [एनवायरनमेंट पोल्युशन प्रिवेंशन एन्ड कंट्रोल) अथॉरिटी – पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण] को अक्टूबर 2020 में भंग किए जाने के बाद किया गया था. इप्का का उद्देश्य दिल्ली के पड़ोसी राज्यों और करीब के राज्यों के साथ बेहतर समन्वय करना और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता के मुद्दों के लिए समाधान खोजना था.

दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के मुद्दे पर 19 वर्षीय आदित्य दूबे द्वारा दर्ज याचिका के जवाब में दायर किये गए एक हलफनामे में, पर्यावरण मंत्रालय ने पांच राज्यों को आयोग द्वारा दिए गए निर्देशों के ‘प्रभावी कार्यान्वयन’ के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की. इसमें कहा गया है कि इन पांच राज्यों ने या तो इन आदेशों का पालन ही नहीं किया है या फिर केवल आंशिक रूप से पालन किया है.

केंद्र द्वारा पेश की गयी दलीलों पर ध्यान देते हुए, अदालत ने इन पांच राज्यों को आयोग के आदेशों के अनुपालन को दिखाने के लिए अपना-अपना हलफनामा दाखिल करने को कहा. कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए इस आरोप पर केंद्र से स्पष्टीकरण भी मांगा था कि दिल्ली में निर्माण सम्बन्धी गतिविधियों पर रोक लगाए जाने के शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद सेंट्रल विस्टा का निर्माण कार्य जारी है.


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‘कुछ कमियां दिख रहीं हैं’

इस हलफनामे में दिसंबर 2020 से शुरू कर के पिछले दस महीनों के दौरान आयोग द्वारा जारी ‘45 दिशा-निर्देशों और सात सलाहों’ को सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें इन पांच राज्यों से वायु गुणवत्ता में हो रही गिरावट को रोकने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ‘महत्वपूर्ण कदम’ शुरू करने के लिए कहा गया है.

केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि इन निर्देशों की अनुपालन स्थिति की निगरानी के दौरान संबंधित राज्यों द्वारा इसके कार्यान्वयन में कुछ कमियां पाई गईं. केंद्र सरकार ने अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आयोग ‘नियमित रूप से और पूरी ईमानदारी के साथ’ निगरानी का कार्य कर रहा है और अपने निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कर रहा है. हलफनामे में आयोग द्वारा चिन्हित क्षेत्रों के तहत स्थानीय अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई पर विभिन्न राज्यों से प्राप्त आंकड़ों की भी गणना की गई है.

लेकिन, इस हलफनामे में कहा गया है, कि जमीनी स्तर पर, ‘कुछ कमियों’ की खबरें आई हैं. हलफनामे में यह भी कहा गया है कि, ‘इस प्रकार, न्याय के हित में और इस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता में सुधार की आकस्मिक आवश्यकता के हित में, यह सम्मानपूर्वक निवेदित किया जाता है कि संबंधित राज्य सरकारों को इसकी अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है,’

केंद्र सरकार के अनुसार, इस साल अगस्त में, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों को एनसीआर में आने वाले अपने जिलों में संचालित उद्योगों को स्वच्छ ईंधन या फिर पीएनजी के रूप में बदलाव करने के लिए कहा गया था. हलफनामे में कहा गया है, ‘यह निवेदित किया जाता है कि आयोग द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उक्त निर्देशो का या तो आंशिक रूप से अनुपालन किया गया है या फिर उनका अभी भी अनुपालन किया जाना बाकी है.’

इसके अलावा, जिन उद्योगों के पास पहले से ही गैस की आपूर्ति की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन फिर भी वे अभी भी अन्य प्रदूषणकारी ईंधन का ही उपयोग कर रहे हैं, उन्हें जल्द-से-जल्द स्वच्छ ईंधन में बदलाव करने का भी निर्देश दिया गया है. इस संबंध में भी, केंद्र सरकार ने दावा किया है कि राज्यों ने या तो इस निर्देश का आंशिक रूप से अनुपालन किया है या बिल्कुल भी अनुपालन नहीं किया है.

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से आयोग के अन्य निर्देशों, जिसमें डीजल जनरेटर सेट के उपयोग पर प्रतिबंध, और पेट्रोल एवं डीजल के उन वाहनों को जब्त करना शामिल है जो क्रमशः 15 वर्ष और 10 वर्ष से अधिक पुराने हैं और अभी भी एनसीआर में चल रहे हैं, की कार्यान्वयन स्थिति पर जानकारी प्राप्त करने के लिए भी कहा.

इस दस्तावेज़ को देखने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की: ‘यह आयोग प्रदूषण को रोकने के उद्देश्य से गठित है. लेकिन ऐसा लगता है कि यह आयोग केवल राज्यों को अदालती आदेश ही भेज रहा है.’

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि पांच राज्यों की ओर से निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है. अदालत ने मौखिक रूप से कहा, ‘हम उनसे इस बारे में जवाब मांगेंगे, अन्यथा हम एक स्वतंत्र कार्य बल (टास्क फोर्स) बनाएंगे.’

केंद्र सरकार ने कहा कि दिल्ली को अपने बसों के बेडे के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए.

दिल्ली के संबंध में केंद्र ने कहा कि यहां की सरकार से हरियाली और वृक्षारोपण कार्य योजना के कार्यान्वयन पर एक वर्तमान स्थिति रिपोर्ट मांगी जानी चाहिए.

हलफनामें में कहा गया है कि दिल्ली में बसों के बेड़े को बढ़ाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जो कि 2010 में संचालित बसों की तुलना में 50 प्रतिशत तक कम हो गयी है.

इस हलफनामें के अनुसार दिल्ली में बसों की संख्या 2010 में 6,000 से घटकर पिछले एक दशक में 3,000 हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक, इसे बढ़ाकर 11,000 किया जाना चाहिए था.

दिल्ली में अंतिम गंतव्य तक की दूरी तय करने वाले व्यवस्था (लास्ट मील कनेक्टिविटी) में सुधार और परिवहन व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए मशवरा देते हुए केंद्र ने कहा कि नए ऑटो रिक्शा के पंजीकरण की सीमा को हटाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के पहले के एक आदेश के मुताबिक, दिल्ली में एक लाख से ज्यादा ऑटो रिक्शा का पंजीकरण नहीं हो सकता है.

बसों की संख्या पर केंद्र के आकलन के जवाब में, दिल्ली सरकार के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह ‘खतरनाक रूप से गलत’ है. उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि यह केंद्र शासित प्रदेश अपने एक अलग हलफनामे के रूप में अदालत को सभी विवरण प्रदान करेगा और दावा किया कि उनकी सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए एक विशेष बस सेवा शुरू की है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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